क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कोरोना वायरस: दुनिया की चीन से नाराज़गी भारत के लिए वरदान साबित होगी?

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में भारतीय मीडिया से कहा कि दुनिया का चीन से नाराज़ होना भारत के लिए वरदान की तरह है. उनका मतलब यह था कि चीन से नाराज़ देश और कंपनियां अपनी फ़ैक्टरियों को चीन से बाहर लाकर दूसरे देशों में लगाने की कोशिश करेंगी और भारत के लिए ये एक बड़ा मौक़ा होगा. कोरोना वायरस से दुनियाभर में हुई तबाही के बाद से

By ज़ुबैर अहमद
Google Oneindia News
मोदी और शी जिनपिंग
Getty Images
मोदी और शी जिनपिंग

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में भारतीय मीडिया से कहा कि दुनिया का चीन से नाराज़ होना भारत के लिए वरदान की तरह है.

उनका मतलब यह था कि चीन से नाराज़ देश और कंपनियां अपनी फ़ैक्टरियों को चीन से बाहर लाकर दूसरे देशों में लगाने की कोशिश करेंगी और भारत के लिए ये एक बड़ा मौक़ा होगा.

कोरोना वायरस से दुनियाभर में हुई तबाही के बाद से भारत की राष्ट्रवादी मीडिया और सत्तारुढ़ पार्टी के क़रीबी अर्थशास्त्री इस तरह की उम्मीदें जगाते आ रहे हैं.

इस मुहीम को इस बात से भी बल मिलता है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के ख़िलाफ़ आलोचना तेज़ कर दी है.

अमरीका ने चीन के ख़िलाफ़ ये गंभीर आरोप लगाया है कि इसने शुरुआत में अपने देश में कोरोना वायरस के फैलाव को दुनिया वालों से छिपाए रखा जिससे हज़ारों लोग मारे जा रहे हैं और विश्व अर्थव्यवस्था तबाह हो रही है.

हाल के एक सर्वे के मुताबिक़ दो तिहाई अमरीकी चीन को ही कोरोना महामारी का ज़िम्मेदार मानते हैं.

ऐसे में भारत में ये उम्मीद करना कि चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियां भारत का भी रुख़ करेंगी स्वाभाविक लगता है.

चीन की ख़ासियत

लेकिन इस तरह की ख़बरें सच से दूर हैं. भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के एक सूत्र ने बीबीसी को बताया कि चीन से बड़ी कंपनियों के पलायन की ख़बर जुमलेबाज़ी है.

दो सप्ताह पहले शंघाई में अमरीकी चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष केर गिब्स ने कहा, "हमारे सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि कंपनियां अपनी व्यावसायिक रणनीति में लचीलापन लाने पर विचार कर रही हैं, लेकिन कोविड-19 के कारण कंपनियों का कोई सामूहिक पलायन नहीं हुआ है."

फ़िलहाल अमरीका और यूरोप महामारी की चपेट में हैं. भारत भी इससे अभी जूझ रहा है. दुनिया की सभी बड़ी अर्व्यवस्थाएँ लॉकडाउन में हैं.

उधर चीन इस महामारी से लगभग बाहर निकल चुका है और इसकी इकोनॉमी दोबारा पटरी पर लौट रही है. तो ज़ाहिर है चीन में मौजूद विदेशी कंपनियां चीन की इस तैयारी का स्वागत कर रही होंगी.

ट्रंप और शी जिनपिंग
AFP
ट्रंप और शी जिनपिंग

वास्तव में कोरोना वायरस के फैलने के बाद चीन से केवल जापानी मोटर कंपनी मज़्दा ने अपनी फ़ैक्ट्री का एक हिस्सा चीन के जिआंगसु क्षेत्र से हटाकर 13,000 किलोमीटर दूर मेक्सिको में लगाया है. इसकी वजह चीन से नाराज़गी नहीं थी बल्कि जिआंगसु में कोरोना के कारण वहां की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई थी.

सच तो ये है कि कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां केवल चीन पर ही निर्भर नहीं रहना चाहती हैं मगर उनकी मजबूरी ये है कि विश्व में कोई भी ऐसा देश नहीं है जो प्रोडक्शन में दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफ़ैक्चरिंग गढ़ का मुक़ाबला कर सके.

बड़ी कंपनियां चीन को इसलिए चुनती हैं क्योंकि ये एक 'वन-स्टॉप शॉप' है यानी कच्चे माल से लेकर तैयार माल और इसके निर्यात तक की सारी सुविधाएं यहाँ उपलब्ध हैं.

इसका मतलब ये नहीं है कि कंपनियां चीन से दूसरे देशों में नहीं जा रही हैं. ऐसा पहले से ही हो रहा है. तीन साल पहले ये सिलसिला उस समय शुरू हुआ जब चीन में लेबर कॉस्ट काफ़ी बढ़ गया. अमरीका और चीन के बीच ट्रेड वॉर के कारण इस में तेज़ी आई.

चाइना प्लस वन

विदेशी कंपनियों का फ़िलहाल फॉर्मूला है 'चाइना प्लस वन' यानी चीन में जमे रहो मगर एक क़दम किसी दूसरी जगह भी रखो.

इसका फ़ायदा वियतनाम को हो रहा है. भारत के नाम केवल एप्पल का आईफ़ोन -एक्सआर आया जिसकी असेम्बलिंग (प्रोडक्शन नहीं) चैन्नई में पिछले साल से शुरू हो गई है.

भारत के आर्थिक विशेषज्ञ ये मानते हैं कि भारत के पास अमरीका और चीन के बीच ट्रेड वॉर के समय चीन में विदेशी कंपनियों को लुभाने का सबसे अच्छा मौक़ा था. लेकिन ये अवसर हाथ से निकल गया.

अमरीका और चीन
BBC
अमरीका और चीन

हैरानी इस बात पर है कि भारत का वाणिज्य मंत्रालय और दुनियाभर में भारतीय दूतावास पिछले ढाई-तीन सालों से चीन और इससे बाहर सक्रिय विदेशी कंपनियों को भारत में लाने की कोशिश कर रहे हैं इसके बावजूद ये अवसर हाथ से निकल गया.

वाणिज्य मंत्रालय की 'इन्वेस्ट इंडिया' एक अलहदा बॉडी इसीलिए बनाई गई है.

मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 200 से अधिक कंपनियों ने भारत में कारखाने लगाने में दिलचस्पी दिखाई थी लेकिन कोरोना के फैलने के बाद अब 'अगले 18 महीनों तक इसमें कोई गतिविधि नहीं होने की संभावना है.'

कोरोना वायरस से चीन की बदनामी को भी एक अवसर के तौर पर देखा जा रहा है, मगर मोदी सरकार जानती है कि फ़िलहाल कोई बड़ी कंपनी चीन से भारत आने का इरादा नहीं रखती.

चीन के स्तर का बुनियादी ढांचा मज़बूत करने का, वैल्यू चेन का निर्माण करने का और सिंगल विंडो क्लीयरेंस की व्यवस्था को बनाने के लिए मोदी सरकार के छह साल और इससे पहले यूपीए सरकार के 10 साल काफ़ी थे.

विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर ऐसा होता तो कोरोना और ट्रेड वॉर जैसे अवसरों के बिना भी कंपनियां भारत में प्रोडक्शन यूनिट्स लगातीं.

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 15 अगस्त को लाल क़िले से अपने पहले भाषण में विदेशी कंपनियों से कहा था, "कम, मेक इन इंडिया." लेकिन अब तक मेक इन इंडिया एक कामयाब मुहीम नहीं रही है.

सच तो ये है कि विदेशी कंपनियां अब भी भारत में आने से हिचकती हैं. उनके लिए भारत के पक्ष में कुछ बातें हैं जैसे कि स्किल्ड वर्क फ़ोर्स की एक बड़ी संख्या, विशाल घरेलू बाज़ार, लोकतंत्र और सस्ती ज़मीनें.

लेकिन चीन की तुलना में भारत कई क्षेत्रों में काफ़ी पीछे है.

MEA/TWITTER

वैल्यू चेन के अपग्रेडेशन में कमी

कच्चे माल को प्राप्त करने से लेकर बने माल को बाज़ार में लाने तक की प्रक्रिया को वैल्यू चेन कहते हैं. इसमें चीन का मुक़ाबला दुनिया की कोई इकोनॉमी नहीं कर सकती.

उदाहरण के तौर पर आप रेडीमेड कपड़े को ले लें जिसमें कच्चे माल की ख़रीदारी से लेकर तैयार माल के सप्लाई करने तक सात चरणों से गुज़रना पड़ता है.

लिवाइस जैसे बड़े गारमेंट ब्रांड के कपड़ों को शो रूम तक लाने के लिए इन सात चरणों से होकर गुज़रते हैं. भारत, वियतनाम, बांग्लादेश में वैल्यू चेन के इन सातों चरणों से दो या तीन मौजूद हो सकते हैं लेकिन चीन में ये सातों एक जगह मजूद हैं. तो अगर लिवाइस जैसी कंपनी हैं तो चीन में सामान पैदा करना आसान भी होगा और सस्ता भी.

दिल्ली के फ़ॉर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट में चीनी मामलों के विशेषज्ञ फ़ैसल अहमद कहते हैं कि चीन से बड़े उत्पादों और फ़ैक्टरियों को हटाने के लिए दुनिया के दूसरे देशों में मुकम्मल वैल्यू चेन है ही नहीं.

वो कहते हैं, "फ़िलहाल दुनिया की कोई भी ऐसी अर्थव्यवस्था नहीं है जहाँ या तो बड़े पैमाने पर उत्पाद के साधन हों या निर्यात का पूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर."

उनके अनुसार भारत को अपनी वैल्यू चेन को मज़बूत करने और टेक्नोलॉजी के आधुनिकीकरण की सख़्त ज़रूरत है.

श्रम, बिजली और भूमि सुधार

सरकार के नज़दीक माने जाने वाले आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों ने सुझावों में विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए लैंड, पावर और लेबर के क्षेत्रों में सुधार पर ज़ोर दिया है, "हमें उग्र गति से, जीएसटी परिषद के समान एक भूमि परिषद, एक श्रम परिषद और एक ऊर्जा परिषद बनाने की ज़रूरत है. ये उन विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता आसान करेगा जो कारखानों को स्थापित करना चाहते हैं या एक नया व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं या फिर एक ग्रीनफ़ील्ड प्रोजेक्ट लाना चाहते हैं."

भारत में औद्योगिक बिजली टैरिफ़ दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ़ में से एक माना जाता है. इसे कम करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच कोई समझौता होना चाहिए.

सिंगल विंडो क्लीयरेंस

इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री ने एज ऑफ डूइंग बिज़नेस पर काफ़ी ज़ोर दिया है और इसमें बेहतरी भी हुई है लेकिन बाहर की कंपनियां अब भी शिकायत करती हैं कि उन्हें योजनाओं की मंज़ूरी में कई सरकारी दफ़्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं.

सरकार को दिए सुझाव में एक सुझाव ये है कि सिंगल विंडो क्लीयरेंस का निर्माण प्रधानमंत्री के दफ़्तर में हो और विदेशी कंपनियों को पीएमओ के आलावा कहीं और जाने की ज़रूरत न पड़े.

सुझाव ये भी है कि अगर चीन से मुक़ाबला करना है तो इन क्षेत्रों में काम बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से करना होगा. विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री को देश को पांच खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाना है और कोरोना के बाद वाली दुनिया में आगे बढ़ना है तो मौक़ा है. वो कहते हैं, "अभी करो, तेज़ी से करो."

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Coronavirus: Will the world's heartburn from China prove a boon for India?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X