कोरोना वायरस: बंदी से टूटेगी अर्थव्यवस्था की कमर
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लॉकडाउन की घोषणा की गई है. इसमें ज़रूरी सेवाओं के अलावा सभी सेवाएं बंद कर दी गई हैं. कारोबार थम गया है, दुकानें बंद हैं, आवाजाही पर रोक है. पहले से मुश्किलें झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस का हमला एक बड़ी मुसीबत लेकर आया है.
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भारत के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लॉकडाउन की घोषणा की गई है.
इसमें ज़रूरी सेवाओं के अलावा सभी सेवाएं बंद कर दी गई हैं. कारोबार थम गया है, दुकानें बंद हैं, आवाजाही पर रोक है.
पहले से मुश्किलें झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस का हमला एक बड़ी मुसीबत लेकर आया है.
पिछले साल की ही बात करें तो ऑटोमोबाइल सेक्टर, रियल स्टेट, लघु उद्योग समेत असंगठित क्षेत्र में सुस्ती छाई हुई थी. बैंक एनपीए की समस्या से अब तक निपट रहे हैं.
सरकार निवेश के ज़रिए, नियमों में राहत और आर्थिक मदद देकर अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने की कोशिश कर रही थी.
लेकिन, इस बीच कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए हालात ने जैसे अर्थव्यवस्था का पहिया जाम कर दिया है. ना तो कहीं उत्पादन है और ना मांग, लोग घरों में हैं और दुकानों पर तले लगे हैं.
घटा जीडीपी वृद्धि का अनुमान
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने एक अप्रैल से शुरू हो रहे वित्तीय वर्ष (2020-21) के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के वृद्धि दर अनुमान को घटाकर 5.2 प्रतिशत कर दिया गया है.
इससे पहले 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया था था. ये रेटिंग्स सोमवार को जारी की गई हैं.
इससे अगले साल 2021-22 के लिए रेटिंग एजेंसी ने 6.9 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया है. इससे पहले ये अनुमान 7 प्रतिशत था.
स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के मुताबिक़, एशिया-प्रशांत क्षेत्र को कोविड-19 से क़रीब 620 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है.
सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए की है. इससे लोग अपने घरों में रहेंगे, सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहेगी जिससे वायरस कम से कम फैलेगा.
लॉकडाउन का गंभीरता से पालन कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जीत तो दिला सकता है लेकिन ये भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या असर डालेगा, ये देखना होगा.
थमा कारोबार, थमी अर्थव्यवस्था
वरिष्ठ बिज़नेस पत्रकार पूजा मेहरा कहती हैं, "लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर अनौपचारिक क्षेत्र पर पड़ेगा और हमारी अर्थव्यवस्था का 50 प्रतिशत जीडीपी अनौपचारिक क्षेत्र से ही आता है. ये क्षेत्र लॉकडाउन के दौरान काम नहीं कर सकता है. वो कच्चा माल नहीं ख़रीद सकते, बनाया हुआ माल बाज़ार में नहीं बेच सकते तो उनकी कमाई बंद ही हो जाएगी."
"हमारे देश में छोटे-छोटे कारखाने और लघु उद्योगों की बहुत बड़ी संख्या है. उन्हें नगदी की समस्या हो जाएगी क्योंकि उनकी कमाई नहीं होगी. ये लोग बैंक के पास भी नहीं जा पाते हैं इसिलए ऊंचे ब्याज़ पर क़र्ज़ ले लेते हैं और फिर क़र्ज़जाल में फंस जाते हैं. "
अनौपचारिक क्षेत्रों में फेरी वाले, विक्रेता, कलाकार, लघु उद्योग और सीमापार व्यापार शामिल हैं. इस वर्ग से सरकार के पास टैक्स नहीं आता.
लॉकडाउन के इतर कोरोना वायरस के प्रभाव से भी कंपनियों को नुक़सान पहुंच सकता है.
पूजा मेहरा के मुताबिक़ जो लोग बीमार हैं वो काम नहीं कर सकते. कितने ही लोग सेल्फ़ आइसोलेशन में हैं. जिनका अपना कारोबार या दुकान है वो बीमारी के कारण उसे चला नहीं पाएंगे. जो ख़र्चा बीमारी के ऊपर होगा वो बचत से ही निकाला जाएगा. अगर ये वायरस नियंत्रण में नहीं आया तो ये असर और कहीं ज़्यादा हो सकता है.
वहीं, अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं, "लॉकडाउन से लोग घर पर बैठेंगे, इससे कंपनियों में काम नहीं होगा और काम न होने से व्यापार कैसे होगा और अर्थव्यवस्था आगे कैसे बढ़ेगी. लोग जब घर पर बैठते हैं, टैक्सी बिज़नेस, होटल सेक्टर, रेस्टोरेंट्स, फ़िल्म, मल्टीप्लेक्स सभी प्रभावित होते हैं. जिस सर्विस के लिए लोगों को बाहर जाने की ज़रूरत पड़ती है उस पर बहुत गहरा असर पड़ेगा."
"जो घर के इस्तेमाल की चीज़ें हैं जैसे आटा, चावल, गेहूं, सब्ज़ी, दूध-दही वो तो लोग ख़रीदेंगे ही लेकिन लग्ज़री की चीज़ें हैं जैसे टीवी, कार, एसी, इन सब चीज़ों की खपत काफ़ी कम हो जाएगी. इसका एक कारण तो ये है कि लोग घर से बाहर ही नहीं जाएंगे इसलिए ये सब नहीं खरीदेंगे. दूसरा ये होगा कि लोगों के दिमाग़ में नौकरी जाने का बहुत ज़्यादा डर बैठ गया है उसकी वजह से भी लोग पैसा ख़र्च करना कम कर देंगे. "
सबसे ज़्यादा प्रभावित सेक्टर
जानकारों की मानें तो लॉकडाउन और कोरोना वायरस के इस पूरे दौर में सबसे ज़्यादा असर एविएशन, पर्यटन, होटल सेक्टर पर पड़ने वाला है.
विवेक कॉल बताते हैं, "एविएशन सेक्टर का सीधा-सा हिसाब होता है कि जब विमान उड़ेगा तभी कमाई होगी लेकिन फ़िलहाल अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर रोक लगा दी गई है. घरेलू उड़ानें भी सीमित हो गई हैं. लेकिन, कंपनियों को कर्मचारियों का वेतन देना ही है. भले ही वेतन 50 प्रतिशत कम क्यों न कर दो. हवाई जहाज़ का किराया देना है, उसका रखरखाव भी करना है और क़र्ज़ भी चुकाने हैं."
"वहीं, पर्यटन जितना ज़्यादा होता है हॉस्पिटैलिटी का काम भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ता है. लेकिन, अब आगे लोग विदेश जाने में भी डरेंगे. अपने ही देश में खुलकर घूमने की आदत बनने में ही समय लग सकता है. ऐसे में पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र को बहुत बड़ा धक्का पहुंचेगा. सबसे बड़ी बात है कि ये महीने बच्चों की छुट्टियों के हैं लेकिन लोग कहीं घूमने नहीं जाएंगे."
विवेक कौल के मुताबिक़ बैंकिंग सेक्टर की बात करें तो जो अच्छा बैंक है उसे ज़्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए. बैंक का कोराबार ये होता है कि वो पैसा जमा करते हैं और लोन देते हैं. लेकिन, अभी बहुत ही कम लोग होंगे जो बैंक से लोन ले रहे होंगे. इससे कमज़ोर बैंकों का बिज़नेस ठप्प पड़ सकता है. कई लोगों का क़र्ज़ लौटान भी मुश्किल हो सकता है जिससे बैंकों का एनपीए भी बढ़ जाए.
नौकरियों पर ख़तरा
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन ने कहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ़ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं रहा, बल्कि ये एक बड़ा लेबर मार्केट और आर्थिक संकट भी बन गया है जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा.
आईएलओ के अनुसार कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में ढाई करोड़ नौकरियां ख़तरे में हैं.
पूजा मेहरा इस बात से नौकरियों पर ख़तरे की बात से सहमति जताती हैं.
वो कहती हैं, "जो सेक्टर इस बुरे दौर से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे वहीं पर नौकरियों को भी सबसे ज़्यादा ख़तरा होगा. एविएशन सेक्टर में 50 प्रतिशत वेतन कम करने की ख़बर तो पहले ही आ चुकी है. रेस्टोरेंट्स बंद हैं, लोग घूमने नहीं निकल रहे, नया सामान नहीं ख़रीद रहे लेकिन, कंपनियों को किराया, वेतन और अन्य ख़र्चों का भुगतान तो करना ही है. ये नुक़सान झेल रहीं कंपनियां ज़्यादा समय तक भार सहन नहीं कर पाएंगी और इसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ेगा. हालांकि, सरकार ने कंपनियों से नौकरी से ना निकालने की अपील है लेकिन इसका बहुत ज़्यादा असर नहीं होगा."
2009 की मंदी से तुलना
दुनिया ने 2008 की मंदी का दौर भी देखा था जब कंपनियां बंद हुईं और एकसाथ कई लोगों को बेरोज़गार होना पड़ा.
क्या ये दौर 2008 की मंदी जैसा है? पूजा मेहरा इससे साफ़ इनकार करते हुए कहती हैं, ये उससे भी ख़राब दौर हो सकता है. उस समय एयर कंडिशन जैसी चीज़ों पर टैक्स कम हुए थे. तब सामान की कीमत कम होने पर लोग उसे ख़रीद रहे थे लेकिन लॉकडाउन में अगर सरकार टैक्स ज़ीरो भी कर दे तो भी कोई ख़रीदने वाला नहीं है.
जानकार इन स्थितियों को सरकार के लिए भी बहुत चुनौतीपूर्ण मान रहे हैं. अचानक ही उसके सामने एक विशाल समस्या आ खड़ी हुई है. 2008 के दौर में कुछ कंपनियों को आर्थिक मदद देकर संभाला गया. लेकिन, आज अगर सरकार ऋण दे तो उसे सभी को देना पड़ेगा. हर सेक्टर में उत्पादन और ख़रीदारी प्रभावित हुई है.
कोरोना वायरस का असर पूरे दुनिया पर पड़ा है. चीन और अमरीका जैसे बड़े देश और मज़बूत अर्थव्यवस्थाएं इसके सामने लाचार हो गए हैं. इससे भारत में विदेशी निवेश के ज़रिए अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने की कोशिशों को भी धक्का पहुंचेगा. विदेशी कंपनियों के पास भी पैसा नहीं होगा तो वो निवेश में रूचि नहीं दिखाएंगी.
हालांकि, जानकारों का कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा ये दो बातों पर निर्भर करेगा. एक तो ये कि आने वाले वक़्त में कोरोना वायरस की समस्या भारत में कितनी गंभीर होती है और दूसरा कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है.