कोरोना वायरस: कोलकाता से पलायन क्यों कर रही हैं मणिपुर की नर्सें
मणिपुर की नर्सें पश्चिम बंगाल से पलायन के लिए मजबूर क्यों हैं?
"हमें कभी कोरोना कहा जाता था तो कभी चीनी. समय पर वेतन नहीं मिल रहा था और काम का दबाव बहुत ज़्यादा हो गया था. इसके अलावा हमें एक ही निजी सुरक्षा किट (पीपीई) को बार-बार इस्तेमाल करने को कहा जाता था. ऐसे में नौकरी छोड़कर घर लौटने के सिवा हमारे सामने कोई विकल्प नहीं था."
यह आरोप है कोलकाता के निजी अस्पतालों की नौकरी छोड़कर लौटने वाली मणिपुरी नर्सों का.
पूर्वोत्तर की नर्सों के इस सामूहिक पलायन ने पहले से ही जर्जर स्वास्थ्य तंत्र को और कमजोर कर दिया है.
कोरोना महामारी के बीच कथित रंगभेद और तमाम दूसरी समस्याओं से जूझने वाली नर्सों के भारी तादाद में काम छोड़कर जाने के फैसले ने राज्य सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नर्सों के पलायन से उपजे संकट से निपटने के लिए निजी अस्पतालों को सात दिनों की ट्रेनिंग के बाद हेल्परों से काम चलाने की सलाह दी है.
राज्य स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक़, कोलकाता के निजी अस्पतालों में काम करने वाली लगभग साढ़े छह हजार में से 80 फीसदी नर्सें दूसरे राज्यों की हैं. इनमें मणिपुर की लगभग 1200 नर्सें शामिल हैं.
पलायन जारी
बीते दस दिनों के दौरान इनमें से लगभग छह सौ नर्सें वापस अपने घर लौट चुकी हैं. इनकी गुहार पर मणिपुर सरकार ने वापसी के लिए बसों का इंतजाम किया था.
कोलकाता स्थित मणिपुर भवन के डिप्टी रेजिडेंट कमिश्नर जे.एस. जॉयरिता बताते हैं, "इस सप्ताह लगभग तीन सौ नर्सें नौकरी छोड़ कर इंफाल चली गई हैं. इससे पहले भी दो सौ से ज्यादा नर्सें लौट गई थीं."
दूसरी ओर, निजी अस्पतालों ने नर्सों के सामूहिक इस्तीफों से पैदा हुई स्थिति पर गहरी चिंता जताई है.
निजी अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन आफ हॉस्पिटल ऑफ़ ईस्टर्न इंडिया (एएचईआ) के उपाध्यक्ष रूपक बरुआ कहते हैं, "नर्सों के लगातार नौकरी छोड़ कर जाने की वजह से गंभीर संकट पैदा हो गया है. फिलहाल कोरोना की वजह से अस्पतालों में मरीजों की तादाद कम है. लेकिन कामकाज सामान्य होने के बाद इन अस्पतालों को भारी संकट का सामना करना होगा."
एक निजी अस्पताल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "पश्चिम बंगाल में नर्सिंग कालेजों की कमी के चलते यहां नर्सों का हमेशा अभाव रहा है. इससे मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है. ऐसे में हम विशेषत: मणिपुर समेत दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों और केरल से आने वाली नर्सों पर ही निर्भर हैं."
रंगभेद और जातीय भेदभाव
एक सरकारी अस्पताल में काम करने वाली 34 साल की स्टेला (बदला हुआ नाम) बताती हैं, "मेरी कई परिचित नर्सें मणिपुर लौट गई हैं. कोरोना महामारी के बाद जान हथेली पर लेकर काम करने के बावजूद अगर हमें रंगभेद, जातीय भेदभाव और अपमान का शिकार होना पड़े तो आखिर हम काम कैसे कर सकते हैं?"
कोलकाता में मणिपुर के लोगों के संगठन 'मणिपुरीज़ इन कोलकाता' (एमआईके) ने भी नर्सों के साथ होने वाले भेदभाव का मुद्दा निजी अस्पताल प्रबंधन के समक्ष उठाया है.
संगठन के अध्यक्ष के. श्यामकेशो सिंह कहते हैं, "नर्सों के काम छोड़कर लौटने की एक से अधिक वजहें हैं. इनमें सुरक्षा, सामाजिक अलगाव, वेतन नहीं मिलना या बहुत देरी से मिलना, क्वारंटीन अवधि के दौरान खाने-पीने का अभाव, कामकाजी माहौल, निजी सुरक्षा, मानसिक दबाव, अवसाद और मकान मालिकों का सौतेला रवैया शामिल है."
क्या कहती हैं मणिपुर लौटने वालीं नर्सें
सिंह बताते हैं कि कोलकाता से मणिपुर लौटने वाली सैकड़ों नर्सों से बातचीत में यही वजहें सामने आई हैं.
कोलकाता से मणिपुर की राजधानी इंफाल लौटने वाली एक नर्स ने वहां पत्रकारों से बातचीत में कहा, "जिस निजी अस्पताल में वह काम करती थी वहां उनको बार-बार एक ही पीपीई का इतेमाल करने को कहा जाता था. हमसे 12 घंटे काम कराया जाता था. एक बार खोलने के बाद उस पीपीई को फेंक दिया जाता है. लेकिन हम दोबारा उसे ही पहनने पर मजबूर थे."
उसने इस आरोप का भी खंडन किया कि मणिपुर सरकार ने बेहतर पैकेज का ऑफ़र देकर नर्सों को कोलकाता से बुलाया है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह बीते सप्ताह ही निजी अस्पतालों के इस आरोप का खंडन कर चुके हैं.
एक अन्य नर्स कहती हैं, "मकान मालिक और पड़ोसी हमें काफ़ी हेय निगाहों से देखते थे और मुंह पर ही हमें कोरोना कह कर पुकारा जाता था."
मणिपुर लौटने वाली एक अन्य नर्स सोमिचोन का कहना था, "हमें सड़क पर देख कर लोग रास्ता बदल लेते थे. हमें न तो समय पर वेतन मिल रहा था और न ही पर्याप्त सुरक्षा उपकरण. आखिर हम यह सब कब तक सहते?"
मणिपुरी नर्सों का कहना है कि नहाने और कपड़े धोने के लिए उनको पर्याप्त पानी नहीं मिलता था.
नियमों के मुताबिक सात दिनों तक ड्यूटी करने के बाद नर्सों को 14 दिनों के लिए क्वारंटीन में भेजा जाना था.
लेकिन इस दौरान उनको बाकी नर्सों के साथ हॉस्टल में रहने पर मजबूर किया जाता था. इससे दूसरों को भी ख़तरा हो सकता था.
नर्सों का पलायन रोकने की कोशिशें जारी
निजी अस्पतालों के संगठन (एएचईआई) ने राज्य सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की है.
संगठन के उपाध्यक्ष बरुआ कहते हैं, "हमने मणिपुर समेत कई राज्य सरकारों और नर्सिंग काउंसिल आफ़ इंडिया से भी इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया है ताकि नर्सों का पलायन रोका जा सके. ऐसा नहीं हुआ तो निजी अस्पतालों का ढांचा ढह जाएगा."
इसी बीच, नर्सों के वापसी से बढ़ते संकट से निपटने के लिए ममता ने स्थानीय लोगों को सात दिनों की ट्रेनिंग के बाद काम पर लगाने का सुझाव दिया है.
ममता बनर्जी का कहना है, "हम स्थानीय लोगों को सात दिनों में से लाइन लगाने, ऑक्सीज़न देने और तापमान मापने का प्रशिक्षण देंगे. नर्सें ही नहीं रहेंगी तो अस्पतालों में काम कैसे होगा? इसके साथ ही पुरुषों को भी नर्स के तौर पर नियुक्त करने पर विचार किया जा रहा है."
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्वोत्तर की नर्सों के साथ भेदभाव तो पहले भी था. लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान यह खुल कर सामने आ गया है. ऐसे में चौतरफ़ा समस्याओं से जूझ रही नर्सों ने घर वापसी को ही बेहतर विकल्प माना है.
एक विशेषज्ञ डा. कुणाल दासगुप्ता कहते हैं, "इस मामले में सरकार को निजी अस्पतालों के साथ मिल कर काम करना होगा ताकि इन अमानवीय परिस्थितियों को सुधारा जा सके. जल्द ही इस दिशा में पहल नहीं की गई तो निजी अस्पतालों का ढांचा पूरी तरह ढहने का ख़तरा है."