कोरोना वायरस: यूपी में क्वारंटीन सेंटर से क्यों भाग रहे हैं लोग?
उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार कोरोना संक्रमण से लड़ने में जिन प्रमुख हथियारों का इस्तेमाल कर रही है, उनमें एक अहम कड़ी हैं क्वारंटीन सेंटर. ये क्वारंटीन सेंटर अलग-अलग ज़िलों में गांव से लेकर ज़िला स्तर तक उन लोगों के लिए बनाए गए हैं जो दूसरे राज्यों या अन्य जगहों से आए हैं. ये सेंटर इन लोगों को कम से कम 14 दिनों तक रखने के लिए बनाए गए हैं.
उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार कोरोना संक्रमण से लड़ने में जिन प्रमुख हथियारों का इस्तेमाल कर रही है, उनमें एक अहम कड़ी हैं क्वारंटीन सेंटर. ये क्वारंटीन सेंटर अलग-अलग ज़िलों में गांव से लेकर ज़िला स्तर तक उन लोगों के लिए बनाए गए हैं जो दूसरे राज्यों या अन्य जगहों से आए हैं. ये सेंटर इन लोगों को कम से कम 14 दिनों तक रखने के लिए बनाए गए हैं.
क्वारंटीन सेंटर सरकारी भवनों, कुछ प्राइवेट कॉलेजों, स्कूलों और ग्रामीण स्तर पर ज़्यादातर प्राइमरी स्कूलों में बनाए गए हैं और यहां रहने वालों के लिए खाने-पीने की सुविधा सरकार की ओर से दी जा रही है. लेकिन क्वारंटीन सेंटर न सिर्फ़ अव्यवस्थाओं को लेकर चर्चा में बने हुए हैं बल्कि इन्हीं अव्यवस्थाओं के चलते कई बार लोग इन सेंटर से भाग जा रहे हैं. हालांकि ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर कार्रवाई भी की गई है.
ताज़ा मामला बुलंदशहर का है जहां डिबाई तहसील मुख्यालय में बने क्वारंटीन सेंटर में कथित तौर पर समय से भोजन न मिलने से परेशान 16 लोग कमरे की खिड़की तोड़कर फ़रार हो गए. 11 लोगों को पकड़कर फिर से क्वारंटीन सेंटर पहुंचा दिया गया लेकिन इस घटना ने क्वारंटीन सेंटर की बदहाली सामने ला दी. बुलंदशहर के ज़िलाधिकारी ने आपदा प्रबंधन के रूप ने तैनात दो एडीओ और चार पंचायत सचिवों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज कराई है.
बीबीसी से बातचीत में बुलंदशहर के ज़िलाधिकारी रवींद्र कुमार ने बताया, "इस मामले में लापरवाही पाई गई थी और दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी की गई है लेकिन यह बात भी सामने आई है कि कुछ लोगों ने जानबूझकर इस तरह का हंगामा किया ताकि उन्हें 14 दिन से पहले ही घर भेज दिया जाए. हमने क़रीब सात हज़ार लोगों को क्वारंटीन सेंटर में रखा हुआ है और कोशिश की जा रही है कि कोई दिक़्क़त न हो लेकिन यहां रहने वालों को भी यह समझना होगा कि यह सब उन्हीं की सुरक्षा के लिए किया जा रहा है. पुलिस की व्यवस्था हर जगह संभव नहीं है."
कई सेंटर से लोगों के भागने की शिकायत
ज़िलाधिकारी रवींद्र कुमार का कहना था कि जो लोग भागे थे, उन लोगों को पहले उनके गांव में क्वारंटीन किया गया था लेकिन वहां ये लोग अक्सर भाग जाते थे. उसके बाद सभी को तहसील स्तर पर बने क्वारंटीन सेंटर में लाया गया. इस मामले में दस लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज की गई है.
क्वारंटीन सेंटर से भागने की शिकायतें सुल्तानपुर, लखीमपुर, कुशीनगर, आज़मगढ़, रायबरेली, नोएडा और कुछ अन्य जगहों से भी आई हैं. क्वारंटीन सेंटर से भागने और वहां हो रही अनियमितताओं की शिकायतें सबसे ज़्यादा गांवों से आ रही हैं. गांवों में ज़्यादातर क्वारंटीन सेंटर या शेल्टर होम्स पंचायत भवनों या फिर सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बने हैं. इन जगहों पर रहने वाले भी गांव वाले हैं और व्यवस्था करने वाले भी गांव के प्रधान और कुछ सरकारी कर्मचारी हैं. कई जगहों से शिकायतें आईं कि लोग अपने घरों को चले जाते हैं और क्वारंटीन सेंटर में मिल रहे खाने को भी नहीं खाते हैं.
सीतापुर की महोली तहसील के पिपरी शादीपुर गांव में बीस मज़दूरों को गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में क्वारंटीन किया गया था. ये लोग चौदह दिन पूरा करके अब घर जा चुके हैं. उन्हें में से एक मज़दूर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "सभी लोगों को एक ही कमरे में रखा गया था. कभी खाना मिलता था तो कभी नहीं मिलता था. सिर्फ़ एक शौचालय था जिसकी हालत बहुत ख़राब थी. स्कूल में एक और शौचालय था लेकिन उसे बंद करके रखा गया था. एक साबुन रखा हुआ था, उसी से सब को हाथ धोना था. जेल की कोठरी से भी बदतर थी ज़िंदगी."
हालांकि इस बात की जानकारी मीडिया में आने के बाद गांव के प्रधान समेत कई लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई लेकिन यह स्थिति अकेले एक गांव की नहीं बल्कि कई गांवों में है. महोबा ज़िले में पचपहाड़ गांव के प्रधान तेज प्रताप कहते हैं, "हमारे यहां तो ऐसी कोई शिकायत नहीं आई. अब केवल तीन लोग रह गए हैं लेकिन कई जगहों से ऐसी शिकायतें आई हैं. इसमें किसी एक व्यक्ति को दोष नहीं दिया जा सकता है. सुविधाएं सरकार ने दे रखी हैं लेकिन वो पर्याप्त नहीं हैं."
कौन है अव्यवस्था का दोषी?
अयोध्या ज़िले के कुमारगंज में एक क्वारंटीन सेंटर में रुके लोगों की ओर से आए दिन की जा रही शराब और मांस पार्टी की ख़बर से प्रशासन के आला अधिकारी भी हैरान रह गए. ऐसी ही ख़बर आंबेडकर नगर ज़िले के भी एक क्वारंटीन सेंटर से आई थी.
प्रतापगढ़ ज़िले में एक गांव के प्रधान नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "क्वारंटीन सेंटर की तो छोड़िए, तमाम सख़्ती के बावजूद गांवों में लोग बिना सूचना दिए पहुंच गए. लोगों को पता भी है लेकिन कहीं शिकायत करने का मतलब है गांव में दुश्मनी मोल लेना. हमारे गांव में भी ऐसे कई लोग आए हैं. पंचायत सचिव से लेकर बीडीओ तक को यह पता है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. मेरे ही गांव में नहीं बल्कि कई गांवों में ऐसा है. सारी अनियमितता का दोषी सीधे प्रधान को ठहरा दिया जाता है लेकिन कोई यह समझने की कोशिश नहीं करता कि जब लोग ज़बरन क्वारंटीन सेंटर से भाग रहे हैं तो प्रधान उन्हें कैसे रोक लेगा?"
शहरों में बने क्वारंटीन सेंटर भी अनियमितताओं से दूर नहीं हैं. उत्तर प्रदेश की एक महिला ने ख़ुर्ज़ा शहर के एक क्वारंटीन सेंटर की कथित दयनीय स्थिति को लेकर प्रधानमंत्री कायार्लय और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ट्वीट किया था.
महिला ने आरोप लगाया था, "मुझे मेरे पति और दो नाबालिग बेटियों को 20 कोरोना वायरस संदिग्धों के साथ एक कमरे में ठूंसकर रखा गया था. कमरे के चारों तरफ़ कचरा बिखरा हुआ था. इस केंद्र में न तो ठीक से भोजन मिलता था और न ही कोई अन्य सुविधा. सोशल डिस्टेंसिंग की बात तो बेमानी थी."
राज्य सरकार के एक बड़े अधिकारी बताते हैं कि क्वारंटीन सेंटर में सुविधाओं को लेकर सरकार बेहद संजीदा है, मुख्यमंत्री ख़ुद इन सबकी नियमित मॉनीटरिंग करते हैं, फिर भी कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही के चलते ऐसी शिकायतें आ रही हैं.
अयोध्या के ज़िलाधिकारी अनुज कुमार झा कहते हैं, "शेल्टर होम्स की व्यवस्था राहत के पैसे से की जा रही है. बीडीओ, तहसीलदार और लेखपाल इन केंद्रों की मॉनीटरिंग करते हैं और नियमित रूप से रिपोर्ट देते हैं. सभी शेल्टर होम्स में सोशल डिस्टैंसिंग का ख़ास ध्यान रखा गया है. हर बेड के बीच में दो मीटर की दूरी रखी जाती है और इसका पालन हर जगह हो रहा है."
अनुज कुमार झा कहते हैं कि आमतौर पर सभी जगह सुविधाएं हैं लेकिन जिन लोगों को उनके गांवों में ही क्वारंटीन किया गया है और घर भी पास में है, वो इसका दुरुपयोग कर रहे हैं. उनके मुताबिक, चौबीस घंटे पुलिस की निगरानी में रखना न तो संभव है और न ही उचित है. अनुज कुमार झा कहते हैं कि अनियमितता की जहां भी शिकायत मिली है, दोषियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई की गई है.
क्वारंटीन सेंटर में ज़्यादातर लोग 29-30 मार्च के बाद आए हैं और उनमें से बहुत से लोग 14 दिन की अवधि पूरी कर चुके हैं.
राज्य सरकार के मुताबिक अब तक 66 हज़ार से ज़्यादा लोगों को क्वारंटीन सेंटर में निगरानी में रखा गया है जबकि क़रीब नौ हज़ार उन लोगों को चिकित्सकीय क्वारंटीन में रखा गया है जिनमें कोरोना संक्रमण पाए जाने की किसी भी तरह की आशंका थी.
राज्य सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि 14 दिन की अवधि पूरी करने वाले लोगों की चिकित्सकीय जांच पूरी करके उनके घरों तक पहुंचाया जाएगा. इसके बाद लोगों को अपने घर में भी 14 दिन तक क्वारंटीन में ही यानी अकेले ही रहना होगा और इनकी नियमित तौर पर निगरानी की जाएगी.