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कोरोना वायरस: शिमला के बंदर आख़िर कहां गए?

मशहूर पंजाबी गायक गिप्पी ग्रेवाल का कोरोना वायरस पर हालिया वीडियो वॉट्सएप ग्रुप्स पर वायरल हो गया है. इसमें शहरों, क़स्बों और गांवों में इस वायरस से फैली दहशत को दिखाया गया है. प्रधानमंत्री ने देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया है और इससे लोगों को अपने घरों में ही रहना पड़ रहा है. ऐसे वक्त में पक्षियों और पशुओं को किन दिक्कतों को सहना पड़ रहा होगा 

By अश्विनी शर्मा
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शिमला, कोरोना वायरस
Pradeep Kumar/BBC
शिमला, कोरोना वायरस

मशहूर पंजाबी गायक गिप्पी ग्रेवाल का कोरोना वायरस पर हालिया वीडियो वॉट्सएप ग्रुप्स पर वायरल हो गया है. इसमें शहरों, क़स्बों और गांवों में इस वायरस से फैली दहशत को दिखाया गया है.

प्रधानमंत्री ने देशभर में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया है और इससे लोगों को अपने घरों में ही रहना पड़ रहा है. ऐसे वक्त में पक्षियों और पशुओं को किन दिक्कतों को सहना पड़ रहा होगा इस बारे में गिप्पी की पंक्तियां दिल को छूने वाली हैं.

'असि पशु ते पक्षी बोल रह, पला सुख तां है…क्यूं लोक कुंडे नई खोल रह, पला सुख तां है. सुन्ना सुन्ना साफ़ आसमान है…चुप चापीता, भयभीत इंसान है…पला सुख पे है…'

शिमला में हर जगह दिखाई देते थे बंदर

लेकिन, इसके उलट शिमला के नागरिक जो कि सालों से बंदरों से परेशान हैं और इसके एक स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं, वे काफी हैरान हैं. लॉकडाउन के ऐलान के बाद से ही शिमला के सारे बंदर अचानक से कहां गायब हो गए?

ज्यादातर सड़कें, बाजार, रिज और माल रोड जैसी खुली और व्यस्त जगहें पूरी तरह से सुनसान पड़ी हैं. साथ ही शहर में बंदर भी कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं.

कुछ बंदर रेजिडेंशियल इलाकों में उछल-कूद मचाते ज़रूर दिख रहे हैं, लेकिन ये भी कमजोर और निष्क्रिय नजर आ रहे हैं. शायद ये भूखे भी हैं.

कोरोना वायरस, शिमला
Pradeep Kumar/BBC
कोरोना वायरस, शिमला

सड़कों पर घूमने वाले कुत्ते हालांकि माल रोड और दूसरी खुली जगहों पर कब्जा करके बैठे हुए हैं लेकिन बंदर पूरी तरह से इलाक़ा छोड़कर जा चुके हैं और शायद वे अपनी तरह के एक आइसोलेशन में चले गए हैं.

शिमला के मशहूर जाखू मंदिर में भी बंदर कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं. इस जगह पर बड़ी संख्या में बंदर पाए जाते थे. जाखू मंदिर में 108 फुट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा है. शहर में कर्फ़्यू के चलते मंदिर को बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं और लोग दर्शन के लिए यहां नहीं आ रहे हैं. ऐसे में बंदर भी यह जगह छोड़कर चले गए हैं.

खाने की कमी के चलते बंदरों ने छोड़ा शिमला

एक पूर्व इंडियन फॉरेस्ट सर्विसेज (आईएफ़एस) ऑफिसर डॉ. कुलदीप तंवर बंदरों की संख्या कम करने के लिए एक पॉलिसी बनाने की मांग कर रहे हैं.

तंवर बताते हैं कि बंदरों के शिमला छोड़कर जाने के पीछे कुछ वजहें हैं. वह कहते हैं कि बंदरों ने खाने की तलाश में शिमला छोड़ दिया है और अब वे नए इलाकों में जा रहे हैं जहां उन्हें खाना मिल सके. इनमें शिमला से लगे हुए गांव और जंगल शामिल हैं.

हिमाचल प्रदेश किसान सभा के प्रेसिडेंट डॉ. तंवर कहते हैं, "शहरी कस्बों में कचरे के डिब्बे बंदरों के खाने-पीने की पहली जगह होते हैं. दूसरा, टूरिस्ट्स इन्हें खाना देते हैं. शॉपिंग के इलाक़े और आबादी वाले रिहायशी इलाके भी इनकी पसंदीदा जगहों में होते हैं. इसके अलावा, धार्मिक स्थल, मंदिरों में भी इन्हें खाना-पीना मिल जाता है. लॉकडाउन के बाद से बंदरों ने अपनी अकल लगाई और खाने की तलाश में दूसरी जगहों पर चले गए."

शिमला, कोरोना वायरस
Pradeep Kumar/BBC
शिमला, कोरोना वायरस

पुराने शिमला के रहने वाले प्रताप सिंह भुजा कहते हैं "उन्होंने पाया है कि बंदर मुख्य क़स्बे के इलाक़े से तक़रीबन गायब हो गए हैं. दिन में एकाध बंदर दिखाई देता है, लेकिन इनके बड़े झुंड अब नदारद हैं.'

गांवों या जंगलों में चले गए बंदर

प्रिंसिपल चीफ़ कंज़र्वेटर्स ऑफ़ फ़ॉरेस्ट्स (वाइल्ड लाइफ़) डॉ. सविता बताती हैं कि बंदरों ने कहीं और शरण ले ली है. या वे अपने प्राकृतिक रिहायश वाली जगहों पर छिप गए हैं. लॉकडाउन के ऐलान के बाद से नागरिक अपने घरों से नहीं निकल रहे हैं. ऐसे में बंदरों को खाना नहीं मिल रहा है. इसलिए वे इन जगहों को छोड़कर चले गए हैं.

वह कहती हैं, 'अगर बंदर जंगलों में अपने प्राकृतिक ठिकानों पर लौट गए हैं तो यह अच्छी चीज है. वहां उन्हें अभी भी खाना मिल सकता है.'

शिमला म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन और दूसरे सघन इलाकों में बंदर एक बड़ी दिक़्क़त हैं. इन जगहों पर बंदर फसलों और सब्जियों को बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं. बंदरों के हमलों से परेशान किसानों ने अपनी ज़मीनें खाली तक छोड़ दी थीं.

बंदरों को मारने की इजाज़त

मिनिस्ट्री ऑफ़ एनवायरनमेंट एंड फॉरेस्ट्स (एमओईएफ़) के वाइल्ड लाइफ़ (प्रोटेक्शन) एक्ट, 1962 के सेक्शन 63 के तहत जारी नोटिफ़िकेशन में कहा गया है कि नागरिक बंदरों को मार सकते हैं.

हिमाचल प्रदेश सरकार ने बंदरों की आबादी रोकने के लिए 1.6 लाख बंदरों को बधिया किया है. इस काम पर 50 करोड़ रुपये से ज़्यादा रकम ख़र्च की गई है. कुछ पशु अधिकार संगठन एमओईएफ़ के बंदरों को मारने की इजाज़त देने वाले नोटिफ़िकेशन का विरोध कर रहे हैं.

कोरोना वायरस, शिमला
Pradeep Kumar/BBC
कोरोना वायरस, शिमला

राज्य सरकार के वाइल्ड लाइफ़ डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक़, हिमाचल प्रदेश में बंदरों की आबादी में 33.5 फ़ीसदी की गिरावट आई है.

लाहौल और स्पीति को छोड़कर पूरे राज्य में सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नैचुरल हिस्ट्री, कोयंबटूर की अगुवाई में कुछ महीनों पहले सर्वे कराया गया था.

बंदरों की तादाद में गिरावट आई

डॉ. सविता बताती हैं, 'डेटा एनालिसिस से पता चला है कि बंदरों की राज्य में तादाद 1,36,443 है जो कि 2015 में 2,05,167 थी.'

रिपोर्ट के मुताबिक, बड़े स्तर पर स्टेरिलाइज़ेशन प्रोग्राम, बेहतर कचरा प्रबंधन, जागरूकता अभियान और 91 तहसीलों में बंदरों को दरिंदा घोषित करने के उपायों से मदद मिली है.

प्रवक्ता के मुताबिक़, 'अब तक 1,62,000 बंदरों को स्टेरिलाइज़ किया गया है और इससे पांच लाख से अधिक बंदरों के जन्म को रोका गया है.'

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English summary
Coronavirus: Where did Shimla's monkey go?
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