उत्तराखंड: कोरोना संकट में 'भुतहा' गांव ही आ रहे हैं सरकार के काम
नई दिल्ली- उत्तराखंड में जो गांव दशकों से खाली पड़े थे, उन्हें 'भुतहा' कहकर बुलाया जाने लगा था, कोरोना संकट की वजह से वहां अचानक आबादी बढ़ गई है। राज्य में जो हजारों प्रवासी दूसरे राज्यों से अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं, कई जिलों में उन्हें ऐसे ही 'भुतहा' गांवों पर वर्षों से सूने पड़े घरों में क्वारंटीन किया जा रहा है। कई प्रवासियों के अपने घरों का तो अब कोई वजूद भी नहीं बचा है, ऐसे लोग अगर सरकारी व्यवस्था में क्वारंटीन हो रहे हैं तो उन्हें खाली गांवों और वहां के खाली घरों में ही सैनिटाइजेशन की प्रक्रिया पूरी करने के बाद ठहराया जा रहा है। हालांकि, जहां पर सरकारी भवन मौजूद हैं और मौजूदा आबादी से दूर हैं, पहले लोगों को वहीं क्वारंटीन करने का प्रयास किया जाता है, लेकिन लोगों के लौटने की संख्या इतनी ज्यादा है कि सरकारी अधिकारियों को भुतहा घरों को ही विकल्प बनाना पड़ रहा है।
उत्तराखंड के 'भुतहा' गांव हो रहे आबाद
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के जो गांव स्थानीय निवासियों के पलायन से 'भुतहा' कहलाने लगे हैं, आजकल प्रशासन की वजह से फिर से आबाद हो रहे हैं। लेकिन, यह सरकार या यहां के स्थाई निवासियों के लिए कोई खुशी का पल नहीं है। बल्कि, इन गांवों में आजकल प्रदेश के बाहर से आ रहे लोगों को क्वांरटीन सेंटर बनाकर वहीं ठहराया जा रहा है। पौड़ी जिले के रिखनिखाल ब्लॉक के बीडीओ एसपी थपलियाल ने कहा, 'राज्य के बाहर से आ रहे लोगों की भारी तादाद को देखते हुए खाली पड़े गांवों की चौहद्दी में सूने पड़े घरों की उपयोगिता बढ़ गई है।' खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, रहने के लिए बहुत ही कठिन हालात और रोजगार की कमी के चलते इन गांवों से लोग बड़े पैमाने पर दूसरे शहरों की ओर कूच कर चुके हैं, जिसके चलते वर्षों से ऐसे गांव सूने पड़े हैं और भुतहा कहलाने लगे हैं।
पौड़ी में 576 प्रवासी भुतहा गांवों में क्वारंटीन
बीडीओ
ने
आगे
कहा
है
कि
खाली
पड़े
घरों
को
क्वारंटीन
सेंटर
के
तौर
पर
इसलिए
इस्तेमाल
किया
जा
रहा
है,
क्योंकि
इसके
लिए
जो
आमतौर
पर
स्कूल
की
इमारतें
या
पंचायत
भवन
होते
हैं,
वो
गांवों
के
बीचोबीच
हैं
और
उनके
नजदीक
स्थानीय
लोग
भी
रहते
हैं।
ऐसे
में
क्वारंटीन
के
लिए
लोगों
को
वहां
ठहराना
स्थानीय
लोगों
के
लिए
भी
ठीक
नहीं
है।
थपलियाल
के
मुताबिक
इस
वक्त
पौड़ी
जिले
में
कुल
576
प्रवासियों
को
उन्हीं
खाली
घरों
में
ठहराया
गया
है,
ये
तादाद
राज्य
में
सबसे
ज्यादा
है।
वैसे
भी
पौड़ी
में
प्रदेश
के
सबसे
ज्यादा
186
भुतहा
गांव
पड़ते
हैं।
बता
दें
कि
उत्तराखंड
सरकार
ने
एहतियात
के
तौर
पर
फैसला
किया
है
कि
बाहर
से
आने
वाले
हर
आदमी
को
अनिवार्य
रूप
से
14
क्वारंटीन
में
रहना
जरूरी
है,
चाहे
सरकारी
व्यवस्था
में
रहें
या
फिर
होम
क्वारंटीन
करें।
(पहली
दोनों
तस्वीर
सौजन्य-
सोशल
मीडिया)
कई प्रवासियों का अपना घर रहने लायक नहीं बचा है
हालांकि, सरकारी अधिकारियों के मुताबिक लोगों को खाली घरों में या स्कूलों अथवा पंचायत भवनों में ठहराने से पहले उन सबकी अच्छी तरह से सफाई की जाती है और फिर उसे सैनिटाइज करने के बाद ही क्वारंटीन सेंटर के रूप में तब्दील किया जाता है। थपलियाल ने कहा कि जितनी तादाद में प्रवासी आ रहे हैं, उसके मुकाबले उन्हें क्वारंटीन करने की जगह कम पड़ रही है, इसलिए खाली घरों का उपयोग करना पड़ रहा है। कई ऐसे प्रवासी हैं जो दशकों बाद अपने पुश्तैनी गांवों में लौटे हैं, जहां उनका अपना घर या तो पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है या जो बिल्कुल ही किसी के ठहराए जाने की अवस्था में नहीं है।
13 मई तक पौड़ी पहुंचे 19,846 प्रवासी
हालांकि, प्रशासन की कोशिश यही होती है कि प्रवासियों को पहले पंचायत भवनों या स्कूलों की इमारतों में ही क्वारंटीन किया जाए, लेकिन जब जगह कम पड़ जाती है या ये सरकारी इमारतें मौजूदा रिहायशी इलाके के बिल्कुल पास में हैं तो फिर भुतहा गांवों का इस्तेमाल करने का ही विकल्प बचता है, लेकिन इसके लिए उसे पहले से सैनिटाइज कर लिया जाता है। जिला सूचना अधिकारी के मुताबिक 13 मई तक पौड़ी के 1,049 ग्राम पंचायतों में कुल 19,846 प्रवासी पहुंच चुके थे और उनके आने का सिलसिला लगातार जारी है।
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