कोरोना वायरस: लॉकडाउन के कारण समंदर में फँसे हज़ारो भारतीयों का दर्द
"हम किसी भी बंदरगाह पर जाते हैं, तो वहां उतर नहीं सकते हैं. न ही कोई जहाज़ पर ऊपर आ सकता है. हमारी ज़रूरत की चीज़ों की सप्लाई में भी दिक्कतें पेश आ रही हैं." मर्चेंट नेवी में थर्ड ऑफ़िसर के पद पर काम करने वाले धर्मेंद्र रमण इस समय सऊदी अरब में हैं और वो कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से दुनिया भर में जारी लॉकडाउन से जूझ रहे हैं. वो कहते हैं,
"हम किसी भी बंदरगाह पर जाते हैं, तो वहां उतर नहीं सकते हैं. न ही कोई जहाज़ पर ऊपर आ सकता है. हमारी ज़रूरत की चीज़ों की सप्लाई में भी दिक्कतें पेश आ रही हैं."
मर्चेंट नेवी में थर्ड ऑफ़िसर के पद पर काम करने वाले धर्मेंद्र रमण इस समय सऊदी अरब में हैं और वो कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से दुनिया भर में जारी लॉकडाउन से जूझ रहे हैं.
वो कहते हैं, "जो लोग अपने घरों में हैं, वे ज़रूरत पड़ने पर अस्पताल जा सकते हैं, लेकिन हमारे पेशे में लोगों के लिए डॉक्टर या अस्पताल जाना इतना आसान नहीं है, और अभी जो माहौल है, उसमें तो और भी परेशानी है. इसलिए हम लोग तमाम सतर्कता बरतते हुए अपनी ज़रूरतें पूरी करते हुए दुनिया की ज़रूरतें पूरी कर रहे हैं."
धर्मेंद्र रमण अकेले नहीं है. उनके जैसे तकरीबन 40 हज़ार लोग इस समय दुनिया भर में फैले उन समुद्री जहाज़ों पर फंसे हुए हैं जो भारत के सागर तटों तक पहुंचने का इंतज़ार कर रही हैं.
शिपिंग इंडस्ट्री और उसमें काम करने वाले लोगों के संगठनों को भारत सरकार ने इनकी हर संभव मदद का भरोसा दिलाया है.
लॉकडाउन के बाद
दुनिया में इस समय 15 हज़ार भारतीय सीफेरर (नाविक) 500 व्यापारिक जहाजों (सामान ढोने वाले) पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं जबकि 25 हज़ार भारतीय क्रूज शिप्स पर तैनात हैं.
इस सिलसिले में शिपिंग इंडस्ट्री और उसमें काम करने वाले लोगों के संगठन नेशनल यूनियन ऑफ़ सीफेरर्स ऑफ़ इंडिया, मैरीटाइम यूनियन ऑफ़ इंडिया और मैरीटाइम एसोसिएशन ऑफ़ शिपऑनर्स, शिपमैनेजर्स एंड एजेंट्स के प्रतिनिधिमंडल ने जहाज़रानी मंत्रालय के साथ भारत के बाहर फंसे इन नाविकों का मुद्दा उठाया है.
मास्सा के सीईओ कैप्टन शिव हाल्बे ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "लगभग 40 हज़ार भारतीय नाविक अपना अनुबंध ख़त्म होने के बाद घर वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं. सरकार ने भरोसा दिलाया है कि लॉकडाउन हटने के बाद वे सुरक्षित घर वापस लौट सकेंगे."
हालांकि भारत वापस लौटने पर इन नाविकों को कोरोना टेस्ट कराना होगा और क्वारंटाइन की प्रक्रिया से गुज़रना होगा.
नाविकों की समस्या
वैश्विक व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा समंदर के रास्ते होता है और समुद्री जहाज़ों पर काम करने वाले लोग कितनी मेहनत करते हैं, इसका अंदाज़ा ज़मीन पर रहने वाले लोग कम ही लगा पाते हैं.
धर्मेंद्र रमण कहते हैं, "सबसे पहली बात है कि हम लोगों को सब जगह जाना होता है. अभी हम सऊदी अरब में हैं. एक डर सा रहता है मन में कि कहीं कुछ हो न जाए. यहां तक कि तमाम एहतियात बरतने के बावजूद डॉक्टर लोग भी संक्रमित हो रहे हैं. हम लोगों के मन में डर है. हमारी कंपनी के जहाज़ों पर भी कोरोना संक्रमण के कुछ मामले आए हैं. उन लोगों को क्वारंटाइन किया गया है. उनका इलाज किया जा रहा है."
"इस लॉकडाउन की वजह से हम लोगों पर गहरा असर पड़ा है. लोग यहां फंस चुके हैं. घर नहीं जा सकते हैं क्योंकि सारे एयरपोर्ट्स बंद हैं. नौ-दस महीने घर से दूर रहकर हम यहां दिन-रात काम करते हैं. इस लॉकडाउन की वजह से जिनके नौ महीने पूरे हो चुके हैं, वे भी घर नहीं जा पा रहे हैं. उन लोगों को अब 11-12 महीने जहाज़ पर रहना पड़ सकता है. लेकिन इस आपदा के समय लोग लगे हुए हैं. हमें एकजुट होकर काम करना है. हम बिना किसी के जाने चुप-चाप काम करते आ रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं ताकि लोगों की ज़रूरतें पूरी होती रहें."
कॉन्ट्रैक्ट का सवाल
दिसंबर में जब चीन कोरोना वायरस से संक्रमण के बढ़ते मामलों से जूझ रहा था राजीव प्रसाद लगभग उसी दौरान दुबई से अपने घर लखनऊ लौटे थे.
शिपिंग इंडस्ट्री में 11 साल से काम कर रहे राजीव प्रसाद बताते हैं, "बहुत से लोगों के कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म हो गए थे और उनकी घर वापसी शुरू हो गई थी. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इनमें से कई लोग घर नहीं जा पा रहे हैं. उन्हें जहाज़ पर ही रहना पड़ रहा है. शिपिंग कंपनियां इनकी ज़िम्मेदारी तो उठा रही हैं, जैसे वे अपने दूसरे कर्मचारियों का ख्याल रखती हैं."
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने के बाद की अवधि के लिए इन नाविकों को सैलरी नहीं मिल रही है. हालांकि कुछ कंपनियों ने अनुबंध की अवधि बढ़ाई भी है.
धर्मेंद्र रमण कहते हैं, "बहुत सारे लोग फंसे हुए हैं. उनके सामने तस्वीर साफ़ नहीं हो पा रही है कि कब लॉकडाउन ख़त्म होगा और लोग अपने घर जा पाएंगे."