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देशभर के कोरोना मरीजों के लिए खतरे की घंटी, मुंह के लकवे का कारण बन रहा COVID-19

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नई दिल्ली। दुनिया भर में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है, भारत में भी संक्रमण की रफ्तार कई गुना बढ़ गई है। ऐसे में भारतीय डॉक्टरों ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। फोर्टिस अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट राजेश बेनी का कहना है कि अप्रैल-जुलाई के बीच अस्थाई बेल्स पाल्सी या फेशियल परैलिसिस (लकवे के कारण चेहरा टेढ़ा होना) के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले पांच महीनों से कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने कहा कि कुछ रोगियों में मुहं का लकवा होने की संभावना है।

लकवा पीड़ित मरीज होते हैं कोरोना संक्रमित

लकवा पीड़ित मरीज होते हैं कोरोना संक्रमित

न्यूरोलॉजिस्ट राजेश बेनी का कहना है कि पिछले कुछ महीने से मुंह के लकवे के मामलों में एक असामान्य संख्या देखी गई है। मुंबई में अब कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हो रही है लेकिन न्यूरोलॉजिस्ट क्षेत्र में जहां संक्रमण अपने चरम पर है, वहां मरीजों में बेल्स पाल्सी या फेशियल परैलिसिस के मामले बढ़े हैं। सिर्फ भारत में ही अन्य देशों में भी डॉक्टरों ने कोरोना वायरस और मुंह के लकवे के बीच की कड़ी का उल्लेख किया है।

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दुनियाभर के डॉक्टरों की एक राय

दुनियाभर के डॉक्टरों की एक राय

अप्रैल में चीन के डॉक्टरों ने एक सहकर्मी की समीक्षा की जो कोरोना संक्रमित के साथ फेशियल परैलिसिस से भी पीड़ित था। कोरोना वायरस मरीजों में शुरुआत में फेशियल परैलिसिस के मामले भी सामने आए हैं। ऐसे में कोरोना वायरस को रोगियों में मुंह का लकवा होने की वजह ठहराया जा सकता है। डॉक्टर ने बताया कि फेशियल परैलिसिस वाले मरीजों में अक्सर बुखार, सांस फूलना या खांसी जैसे लक्षण देखे गए हैं।

भारत में कोरोना के पहले चरण में सामने आए कई मामले

भारत में कोरोना के पहले चरण में सामने आए कई मामले

जब उनका कोरोना टेस्ट कराया जाता है तो वह पॉजिटिव पाए जाते हैं। एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, 'मुंबई में कोरोना वायरस के प्ररंभिक चरण में टेस्ट के नियम कड़े थे। हमें भले ही फेशियल परैलिसिस से पीड़ित मरीजों में कोरोना संक्रमण का संदेह होता है लेकिन उसे पर्च पर लिखने की अनुमति नहीं होती थी। उस दौरान सिर्फ सांस की तकलीफ और यात्रा के इतिहास जैसे लक्षणों वाले रोगियों के लिए परीक्षण की अनुमति थी।'

इलाज के बाद ठीक हो जाता है बेल्स पाल्सी

इलाज के बाद ठीक हो जाता है बेल्स पाल्सी

डॉक्टर ने कहा, मुंह का लकवा वाले मरीजों में कोरोना संक्रमण होता था लेकिन उसके लक्षण बहुत कम होते हैं, इसलिए उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है। परेल के परेल के केईएम अस्पताल में न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ संगीता रावत ने बताया कि आमतौर पर बेल्स पाल्सी को ठीक होने में एक या दो महीने का समय लगता है, लेकिन कुछ मामलों में यह अपने पीछे पेट जैसी कमजोरी छोड़ जाता है। जैसा कि आमतौर पर इसका एक वायरल कारण होता है, ऐसे में हम एंटीवायरल और स्टेरॉयड के एक छोटे कोर्स को फॉलो करके मरीज का इलाज करते हैं।

क्या है बेल्स पाल्सी?

क्या है बेल्स पाल्सी?

बेल पाल्सी (चेहरे के एक ओर लकवा) वायरल संक्रमण की प्रतिक्रिया के कारण हो सकता है। यह किसी मरीज में शायद ही एक बार से अधिक होता है। बेल पाल्सी में मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है, जिससे चेहरे का आधा हिस्सा लटक सा जाता है। बेल पाल्सी (चेहरे के एक ओर लकवा) आमतौर पर अपने आप छह महीने के भीतर ठीक हो जाता है। फिजियोथेरेपी (व्यायाम के जरिए उपचार) से मांसपेशियों को हमेशा के लिए संकुचित होने से रोकने में मदद मिल सकती है।

यह भी पढ़ें: हल्द्वानी: लापता कोरोना मरीज की लाश 24 घंटे से पड़ी थी अस्पताल के बाथरूम में, नहीं थी किसी को खबर

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English summary
Coronavirus poses a risk of facial paralysis in infected patients
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