दिल्ली में जहरीली हवा से मिलकर और घातक हो सकता है कोरोना का प्रकोप, क्या कहते हैं वैज्ञानिक?
नई दिल्ली। बदलते मौसम के बीच राजधानी दिल्ली में बढ़़ता वायु प्रदूषण कोरोना महामारी से उबरने में बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। ऐसे ही कई सवालों के जवाब ढूंढने के लिए भारतीय वैज्ञानिक भी माथापच्ची में जुट गए हैं। जी हां, गुरुवार को नई दिल्ली के चारों ओर फैली धुंध की चादर को देखकर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि बिगड़ती हवा की गुणवत्ता शहर की COVID-19 समस्याओं को बढ़ा और बदतर बना सकती है।
Recommended Video
2021 तक कांग्रेस को मिल सकता है नया पार्टी अध्यक्ष, शुरू हुई संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया
गंभीर कोरोनावायरस मामलों के लक्षणों में से एक सांस लेने में कठिनाई है
गौरतलब है गंभीर कोरोनावायरस मामलों के सबसे आम लक्षणों में से एक सांस लेने में कठिनाई है और डॉक्टरों का कहना है कि यदि मरीज के आसपास की हवा में अचानक अधिक विषाक्तता आती है, यह ऐसे मरीजों के लिए घातक हो सकती है। यह बात दीगर है कि आमतौर पर उत्तर भारत में सर्दियों की शुरूआत के आसपास हर साल खासकर राजधानी की हवा प्रदूषण होने लगती है, ऐसे में वायरस से संक्रमित अस्पताल में भर्ती राजधानी के अधिकांश मरीज दम तोड़ सकते हैं।
अगर दो लोग फेफड़ों पर हमला कर रहे हैं, तो अधिक समस्या होगी: डाक्टर
चेस्ट सर्जन और फेफड़े की देखभाल करने वाले फाउंडेशन के संस्थापक अरविंद कुमार ने कहा कि अगर दो लोग फेफड़ों पर हमला कर रहे हैं, तो जाहिर है कि फेफड़ों में अधिक समस्या होगी, जिससे मरीजों की घातकता बढ़ जाएगी। इसमें कोई शक नहीं है कि भारत अभी दो बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहा है, जो मरीजों के श्वसन प्रणाली पर हमला कर रहे हैं और दोनों एक ही समय में चरम पर हैं। पहला कोरोना महामारी है और दूसरा है वायु प्रदूषण।
भारत में कोरोनोवायरस के मामले लगातार तेजी से फैल रहे हैं
इसमे कोई शक नहीं है कि भारत में कोरोनोवायरस के मामले लगातार तक फैल रहे हैं और आने वाले हफ्तों में देश में केस लोड बढ़ने वाले हैं। रिपोर्ट किए गए 73 लाख संक्रमित मरीजों के साथ भारत अभी अमेरिका (79 लाख) के पीछे है। यही नहीं, भारत में प्रति दिन लगभग 10,000 अधिक नए मामलों के साथ अमेरिका से आगे बढ़ गया हैं। हालांकि अभी भी भारत की मृत्यु दर बहुत कम है।
उत्तर भारत में सर्दियों की शुरूआत में वायु प्रदूषण उफान पर होता है
माना जाता है कि उत्तर भारत में सर्दियों की शुरूआत में वायु प्रदूषण उफान पर होता है। पिछले दो दशकों की तीव्र आर्थिक वृद्धि, शहरीकरण और भीड़-भाड़ में वृद्धि ने भारतीय शहरों को बुरी तरह से प्रदूषित किया है। पिछले साल वैश्विक रूप से सबसे जहरीली हवा वाले 20 शहरों में भारत एक बार फिर भारत 14वें स्थान पर था। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो ऐसी जहरीली हवा के बीच रह रहे लोगों को मस्तिष्क क्षति, श्वसन समस्या और प्रारंभिक मृत्यु कैसे हो सकती है।
किसानों के पराली जलाने से आसमान में काले धुएं के बड़े बादल उठते हैं
हवा की तापमान और गति में गिरावट भारत के शहरों में विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रदूषकों को संघनित करती है। इस दौरान आसपास के ग्रामीण इलाकों में किसान पराली जलाते हैं, जिससे काले धुएं के बड़े बादल उठते हैं, जो मीलों तक जाकर हवा को प्रदूषित करते हैं। इस साल उत्तरी भारत में पिछले साल की समान अवधि में परौली जलाने वालों की संख्या का पांच गुनी अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आने वाले समय के लिए एक बुरा संकेत है।
प्रदूषण विशेषज्ञों को डर है कि इस वर्ष अधिक पराली जलाई जाएगी
निः संदेह भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान हमेशा से शीर्ष रही है, लेकिन महामारी से वह भी बिखर गई है। प्रदूषण विशेषज्ञों को डर है कि अधिक खेती का मतलब अधिक परौली जलाई जाएगी, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा और बढ़ना तय है। आइवी लीग के एक शिक्षित पर्यावरण कार्यकर्ता और उद्यमी,जय धर गुप्ता ने कहा, "मुझे लगता है कि इस बार बड़ी मात्रा में परौली जलाने की घटना देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इससे अब लोगों को श्वसन वायरस (Covid-19) और श्वसन संदूषक (वायु प्रदूषण) का संयुक्त प्रभाव झेलना पड़ेगा।
प्रदूषित हवा के लंबे समय तक रहने से फेफड़ों की सूजन हो सकती है
डॉक्टरों का कहना है कि गंभीर रूप से प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से पुराने फेफड़ों की सूजन हो सकती है। यह उन लोगों के लिए अधिक घातक होगा, जो कोरोनोवायरस के संपर्क में आते हैं। इटली के एक हालिया अध्ययन में गंदे हवा के लंबे समय तक संपर्क और मृत्यु दर में वृद्धि के बीच सहसंबंध पाया गया। यानी कि कोरोनावायरस से होने वाली सामान्य मौतों की दर को प्रदूषित हवा के संपर्क ने बढ़ा गया था। चेस्ट सर्जन कुमार ने बताया कि प्रदूषण पीड़ित क्षेत्रों में कोरोना का अधिक प्रकोप होगा और एक बार जब आबादी कोरोना संक्रमित हो जाती है, तो उनके मौत की संभावना बढ़ जाती है।"
महामारी में स्वस्थ हवा के मामले में दिल्ली में लोगों की स्थिति अच्छी हो गई थी
अब तक इस साल सांस लेने वाले स्वस्थ हवा के मामले में नई दिल्ली में लोगों की स्थिति अच्छी हो गई थी। जब वसंत में कोरोनावायरस प्रेरित लॉकडाउन ने कई उद्योगों को बंद कर दिया और कारों को सड़क से दूर रखा, तो दिल्ली के आसमान ने एक चमत्कारी नीला रंग दिखाई दिया। यह दशकों में सबसे साफ हवा थी और रात में वहां के निवासियों ने महसूस किया कि जैसे उन्हें स्टार शो में बैठा दिया गया। ऐसा नजारा उन्होंने अपने अपार्टमेंट ब्लॉक से वर्षों से नहीं देखे थे, लेकिन लगता है कि अब यह सपना फिर बिखरने वाला है, क्योंकि राजधानी के आकाश अपने सामान्य भूरे रंग में वापस आ गया है और अब पूरे शहर में धुएं की बदबू आ रही है।
दिल्ली सरकार प्रदूषण से लड़ने के लिए कुछ ज्यादा एक्टिव दिख रही है
हालांकि प्रदूषण से लड़ने के लिए दिल्ली सरकार इस साल कुछ ज्यादा काम कर रही है, जिसमें प्रदूषण फैलाने वाले हॉट स्पॉट को ट्रैक करने के लिए वॉर रूम बनाने और एंटी-स्मॉग गन का उपयोग प्रमुख है, जो धूल के गुबार को हवा में उड़ा देती है। गुरुवार को दिल्ली में अधिकारियों ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह दिल्ली के आसपास के राज्यों में फसल जलाने से रोकने के लिए पर्याप्त कुछ नहीं कर रही है। हालांकि मोदी प्रशासन के अधिकारियों ने तर्क दिया कि फसल जलाने से वायु प्रदूषण में केवल एक मामूली राशि का योगदान होता है। उन्होंने धूल को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त काम नहीं करने के लिए दिल्ली सरकार को दोषी ठहराया है।
मास्क प्रदूषण और संक्रमण के नियंत्रण में ज्यादा लाभकारी नहीं हैंः विशेषज्ञ
उल्लेखनीय है भारत में कई शहरों में लोग इन दिनों महामारी से सुरक्षा के लिए मास्क दान कर रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह संक्रमण को रोकने में शायद बहुत मदद नहीं करेगा। उनका कहना है कि ज्यादातर लोग कपड़े मास्क या सर्जिकल-प्रकार के मास्क पहनते हैं जो अच्छी तरह से वायरस को सील नहीं करते हैं और छोटे प्रदूषण कणों (या वायरस को) को मास्क के जरिए अंदर घुसने से नहीं रोक पाते हैं।