भारत में कोरोना वायरस: पीएम मोदी के चार दावों का फ़ैक्ट चेक
सितंबर में पीक पर पहुँचने के बाद भारत में संक्रमण के मामलों में लगातार गिरावट देखी जा रही है. कोरोना से होने वाली मौतों में भी गिरावट आई है. लॉकडाउन का कितना असर हुआ, इस बात का पता लगा पाना मुश्किल है. क्योंकि हर देश में किए जा रहे कोविड-19 टेस्ट की संख्या अलग-अलग है. इसीलिए उनकी ओर से रिपोर्ट किए जा रहे कोविड मामलों की संख्या भी अलग-अलग है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की कोरोना से चल रही जंग के बारे में बहुत कुछ बताते रहे हैं. बीबीसी ने इनमें से कुछ दावों की पड़ताल की.
पहला दावा: "भारत में कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी आई है. हर दिन सामने आने वाले नए मामलों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की जा रही है. क्योंकि भारत उन पहले कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने फ़्लेक्सिबल लॉकडाउन तब अपनाया, जब यहाँ कोरोना के मामलों की संख्या सैकड़ों में थी."
सच्चाई: यह सच है कि भारत में संक्रमण के नए मामलों की संख्या कम हुई है, लेकिन भारत इकलौता ऐसा देश नहीं है, जिसने लॉकडाउन तब अपनाया, जब संक्रमण के मामलों की संख्या सैकड़ों में थी. हर देश में लॉकडाउन का असर एक जैसा नहीं रहा है.
सितंबर में पीक पर पहुँचने के बाद भारत में संक्रमण के मामलों में लगातार गिरावट देखी जा रही है. कोरोना से होने वाली मौतों में भी गिरावट आई है.
लॉकडाउन का कितना असर हुआ, इस बात का पता लगा पाना मुश्किल है. क्योंकि हर देश में किए जा रहे कोविड-19 टेस्ट की संख्या अलग-अलग है. इसीलिए उनकी ओर से रिपोर्ट किए जा रहे कोविड मामलों की संख्या भी अलग-अलग है.
इसी तरह अलग-अलग देशों ने अपनी आबादी पर अलग-अलग प्रतिबंध लगाए हैं, जिसकी वजह से भी लॉकडाउन के नतीजे अलग-अलग हैं.
भारत में लॉकडाउन की शुरुआत 25 मार्च को हुई थी. तब तक भारत में कोरोना के 562 मामलों की पुष्टि हुई थी और नौ लोगों की कोविड से मौत हुई थी.
भारत में 1 जून तक, 68 दिन का देशव्यापी लॉकडाउन रहा और जब इसमें पहली बार ढील दी गई, तब तक भारत में कोरोना संक्रमण के एक लाख 90 हज़ार 535 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी.
सरकारी आँकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान, कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या पाँच गुना से अधिक बढ़ी.
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भारत के ही कुछ पड़ोसी देशों ने या तो उसी समय, या भारत से कुछ दिन आगे-पीछे अपने यहाँ देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी. जिस वक़्त उन्होंने लॉकडाउन करने का निर्णय लिया, उस समय उनके यहाँ भी कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या काफ़ी कम थी.
नेपाल ने 24 मार्च को (भारत से एक दिन पहले) लॉकडाउन की घोषणा की थी. तब नेपाल में कोरोना संक्रमण के सिर्फ़ दो मामलों की पुष्टि हुई थी. इसी तरह श्रीलंका ने 22 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की और तब उनके यहाँ 78 मामलों की पुष्टि हुई थी.
न्यूज़ीलैंड और पेरू जैसे देशों ने भी काफ़ी जल्दी लॉकडाउन लागू करने का निर्णय ले लिया था. पेरू ने 16 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब उनके यहाँ सिर्फ़ 71 मामलों की पुष्टि हुई थी.
पेरू में जून अंत तक काफ़ी सख़्त लॉकडाउन रहा था, जिसे लातिन अमरीकी देशों का 'सबसे लंबा लॉकडाउन' कहा गया. लेकिन वहाँ भी कोरोना संक्रमण के मामले काफ़ी तेज़ी से बढ़े.
जून के अंत तक वहाँ दो लाख 82 हज़ार मामले दर्ज किए जा चुके थे और जब से लॉकडाउन के प्रतिबंध हटाए गए, उसके बाद से अब तक छह लाख नए मामले दर्ज किए जा चुके हैं. जबकि न्यूज़ीलैंड में लॉकडाउन के काफ़ी अच्छे नतीजे देखने को मिले.
दूसरा दावा: "हर 10 लाख की आबादी पर भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या लगभग 83 है. जबकि बाक़ी देशों से तुलना करें, तो अमरीका, ब्राज़ील, ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों में यही संख्या लगभग 600 है."
सच्चाई: यह सच है कि भारत में कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या कम है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कोविड से मरने वाले कुछ लोगों की संख्या ठीक से दर्ज नहीं की जा रही है.
प्रति 10 लाख की आबादी पर कोरोना से मरने वालों की अगर बात की जाए, तो अमरीका में 665 लोग, ब्रिटेन में 644, ब्राज़ील में 725 और स्पेन में 727 लोग महामारी का शिकार बने.
भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन कोरोना महामारी से विश्व में अब तक जितने लोगों की मौत हुई है, उनमें से सिर्फ़ 10 प्रतिशत मौतें भारत में हुईं.
जबकि अमरीका से इसकी तुलना करें, तो अमरीका में विश्व की चार प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन वहाँ कोविड से मरने वालों की संख्या, इस महामारी से मरने वाले लोगों की संख्या का 20 प्रतिशत है.
इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे भारत में युवाओं की आबादी अधिक होना.
लेकिन इस बात पर भी सवाल उठाए जाते रहे हैं कि भारत कोरोना से होने वाली मौतों का आधिकारिक डेटा ठीक से दे पा रहा है या नहीं.
अलग-अलग देशों में इस आँकड़े को दर्ज करने के अलग-अलग तरीक़े हैं और इस वजह से उन देशों के साथ भारत की सीधे तौर पर तुलना नहीं की जा सकती.
यहाँ इस बात पर ध्यान देना भी आवश्यक है कि कुछ अफ़्रीकी देशों में भी कोरोना से होने वाली मौतों की दर काफ़ी कम है.
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तीसरा दावा: "भारत में हर 10 लाख लोगों में से 5,500 लोग कोरोना से संक्रमित हैं, जबकि ब्राज़ील और अमरीका जैसे देशों में यही संख्या 25,000 है."
सच्चाई: आधिकारिक डेटा इस दावे को सही ठहराता है. हालाँकि, दर्ज की गई कोरोना संक्रमितों की संख्या इस बात पर काफ़ी निर्भर करती है कि कोविड टेस्टिंग कितने व्यापक स्तर पर की गई.
हर 10 लाख की आबादी पर कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या भारत में अमरीका, ब्राज़ील और कुछ अन्य देशों की तुलना में काफ़ी कम है.
लेकिन संक्रमण के मामलों की संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार कितनी व्यापक टेस्टिंग करवा रही है. यानी जितनी ज़्यादा टेस्टिंग होगी, कोरोना संक्रमण के उतने ही ज़्यादा मामलों की पुष्टि हो सकेगी.
भारत ने 20 अक्तूबर तक हर हज़ार लोगों में से 69 लोगों का कोविड टेस्ट किया, जबकि यूके में यह संख्या 377 और अमरीका में 407 है.
चौथा दावा: "भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने सबसे पहले रैपिड एंटीजन टेस्ट की शुरुआत की."
सच्चाई: ऐसे कई देश हैं, जिन्होंने भारत से पहले रैपिड एंटीजन टेस्ट करना शुरू कर दिया था, लेकिन इसके नतीजों की विश्वसनीयता को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं.
भारत ने रैपिड एंटीजन टेस्ट के लिए 14 जून को मंज़ूरी दे दी थी और 18 जून से इस टेस्ट की शुरुआत हो गई थी.
इससे पहले भारत में सिर्फ़ पीसीआर टेस्ट होता था, जिसके नतीजे ज़्यादा सटीक होते हैं, लेकिन इस टेस्ट की रिपोर्ट आने में ज़्यादा समय लगता है.
कई देश जैसे अमरीका, जापान और बेल्जियम ने भारत से पहले ही अपने यहाँ एंटीजन टेस्ट की शुरुआत कर दी थी.
लेकिन अब बेल्जियम में इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है. वहाँ के सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, इस टेस्ट की विश्वसनीयता पूरी तरह से साबित नहीं की जा सकती है. इस वजह से मामलों की पुष्टि करने में यह टेस्ट पूरी तरह से सफल नहीं है.
भारत में पाँच किस्म की एंटीजन टेस्ट किट इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है, जिनमें से दक्षिण कोरिया, बेल्जियम और ताइवान में तीन किट तैयार की गई हैं और दो किट भारत में बनी हैं.
ग़ौर करने की बात ये है कि बेल्जियम और दक्षिण कोरिया, दोनों ही अब अपने यहाँ तैयार की गईं रैपिड एंटीजन टेस्ट किट्स का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं. इसकी जगह दोनों देश पीसीआर टेस्ट करने की अपनी क्षमता को बढ़ाने में लगे हैं.