कोरोना वायरस: बच्चों को कोविड-19 के बारे में कैसे बताएं?
कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने को लेकर कई डरावनी ख़बरें आ रही हैं. इसे लेकर बहुत से लोग फ़िक्रमंद हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं. इस संकट के बारे में मां-बाप अपने बच्चों से कैसे बात करें, इसके लिए ये कुछ टिप्स हैं, जो अभिभावक आज़मा सकते हैं. रोज़ ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया के नए-नए इलाक़ों में फैलता जा रहा है
कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने को लेकर कई डरावनी ख़बरें आ रही हैं. इसे लेकर बहुत से लोग फ़िक्रमंद हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं. इस संकट के बारे में मां-बाप अपने बच्चों से कैसे बात करें, इसके लिए ये कुछ टिप्स हैं, जो अभिभावक आज़मा सकते हैं.
रोज़ ऐसी ख़बरें आ रही हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया के नए-नए इलाक़ों में फैलता जा रहा है. इस वजह से लेकर आज दुनिया में बहुत से लोग इस बीमारी के ख़तरों को लेकर चिंतित हैं. इनमें बच्चे भी शामिल हैं. ज़ाहिर है ऐसे मुश्किल वक़्त में बच्चे सलाह और मदद के लिए अपने मां-बाप की ओर उम्मीद भरी नज़रों से निहारते हैं. तो, अगर आपके बच्चे इस वायरस के संक्रमण की वजह से परेशान हैं, तो आप उनसे इस बारे में कैसे बात करें?
बच्चों को भरोसा दें
ब्रिटेन की फैमिली डॉक्टर पूनम कृष्णन, छह बरस के बेटे की मां भी हैं. बीबीसी रेडियो स्कॉटलैंड से बात करते हुए डॉक्टर पूनम ने कहा कि, 'आप को अपने बच्चे की चिंता दूर करनी होगी. उसे बताना होगा कि कोरोन वायरस वैसा ही वायरस है, जैसा वायरस आप को खांसी-जुकाम होने या डायरिया और उल्टी होने पर हमला करता है.' डॉक्टर पूनम मानती हैं कि अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ इस मुद्दे पर, 'खुल कर ईमानदारी से बात करें. मैं भी अपने बेटे से इस बारे में बात कर रही हूं. साथ ही मैं उन अभिभावकों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित कर रही हूं, जो इलाज के लिए मेरे पास आ रहे हैं.'
बच्चों के मनोचिकित्सक डॉक्टर रिचर्ड वूल्फ़सन मानते हैं कि कोरोना वायरस जैसे हर बड़े मसले पर बच्चों से बात कैसे करनी है, ये इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी उम्र कितनी है. डॉक्टर वूल्फ़सन का कहना है कि, 'छोटे बच्चे, ख़ास तौर से सात या छह बरस से कम उम्र के बच्चे अपने आस-पास ऐसे मसलों पर होने वाली चर्चा से खीझ जाते हैं. क्योंकि उनके मां-बाप भी इसी बारे में उनके आस-पास चर्चा कर रहे होते हैं.' वो आगे कहते हैं कि, 'बच्चों के लिए ये सब बहुत डरावना हो सकता है.' छोटे बच्चों के लिए डॉक्टर वूल्फसन की सलाह ये है कि, 'सबसे पहले तो आप अपने बच्चों को आश्वासन दीजिए. आप को पता नहीं है कि क्या होने वाला है. लेकिन, बच्चों को ये बताएं कि वो ठीक रहेंगे. आप सब ठीक रहेंगे. कुछ लोग बीमार होंगे, पर ज़्यादातर लोगों को इससे कुछ नहीं होगा.'
व्यवहारिक क़दम क्या हो सकते हैं?
हालांकि, डॉक्टर वूल्फ़सन ये कहते हैं कि आप को पता नहीं कि आपके बच्चे को संक्रमण होगा या नहीं. पर, बेहतर होगा कि आप आशावादी रहें. बेवजह की फ़िक्र करके परेशान न हों. वो ये भी कहते हैं कि, 'बच्चों को सिर्फ़ भरोसा देने भर से काम नहीं चलेगा. आप को उन्हें सशक्त बनाना होगा.' सशक्त बनाने से डॉक्टर वूल्फ़सन का मतलब ये है कि उन्हें ये बताना होगा कि वो कौन से ऐसे क़दम उठाएं, ताकि वो संक्रमित होने के ख़तरों को टाल सकें. साथ ही उन्हें ये एहसास भी हो कि चीज़ें उनके अपने हाथ में हैं.
डॉक्टर वूल्फ़सन कहते हैं कि, 'हमें छोटे बच्चों को ये बताना चाहिए कि कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें कर के वो ख़ुद को भी और हमें भी स्वस्थ रख सकते हैं. और वो बातें ये हैं कि आप अपना हाथ नियमित रूप से साफ़ करें. खांसते वक़्त मुंह पर कपड़ा रखें. वग़ैरह...वग़ैरह...'
डॉक्टर पूनम कृष्णन भी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखती हैं. वो सलाह देती हैं कि, 'संक्रमण से होने से बचाने के लिए बच्चों को नियमित रूप से साफ-सफाई का सबक़ देते रहना चाहिए. उन्हें ये भी बताना चाहिए कि वो अपना हाथ कैसे साफ़ रखें.'
डॉक्टर वूल्फ़सन कहते हैं कि इससे, 'आप के बच्चे को कुछ ऐसा पता चलेगा, जो वो ख़ुद कर सकते हैं. न कि उनसे ये कहना ठीक होगा कि वो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें.'
इस तरह का भरोसा देने और बच्चों को बचाव के कुछ नुस्खे बताने से उन्हें लगेगा कि वो भी इस बीमारी से ख़ुद और परिवार को बचाने के लिए कुछ कर सकते हैं. बच्चों से ऐसे ख़तरों के बारे में बात करने का ये सबसे सही तरीक़ा है.
बचाव
लेकिन, बच्चों को केवल स्वच्छता की अच्छी बातों का सबक़ याद दिलाने का मतलब केवल उनकी चिंताएं दूर करना भर नहीं है.
छोटे बच्चों में अक्सर क़ुदरती तौर पर बहुत कौतूहल होता है. वो सवाल पूछते रहते हैं. वो चीज़ें छूते हैं और खाना-पानी दूसरों से शेयर करते हैं. डॉक्टर पूनम कृष्णन कहती हैं कि इसका ये मतलब होता है कि, 'बच्चे आम तौर पर संक्रमण फैलाने का बहुत बड़ा ज़रिया होते हैं. और हमें उन्हें शुरुआत से ही ये बहुत महत्वपूर्ण सबक़ सिखाते रहने चाहिए.'
बच्चों को साफ़-सफ़ाई के असरदार तरीक़े बताते रहने से आप पूरे समुदाय की सुरक्षा में योगदान दे सकते हैं.
बच्चों को फ़ेक न्यूज़ से बचाएं
डॉक्टर वूल्फ़सन बताते हैं कि बच्चों की चिंता बढ़ाने का सबसे बड़ा ज़रिया उनके मां-बाप ही हो सकते हैं. वो कहते हैं कि, 'मैं निश्चित तौर पर मानता हूं कि छोटे बच्चे अक्सर अपने मां-बाप से प्रभावित होते हैं. और अगर वो ये देखते हैं कि उनके माता-पिता चिंतित हैं, परेशान हैं. और वो अपने मां-बाप को अपने दोस्तों से फ़िक्र भरी बातें करते सुनते हैं, तो छोटे बच्चे उस वजह से अक्सर परेशान हो जाते हैं.'
अभिभावकों को अपने बच्चों के आस-पास रहते हुए अपने बर्ताव पर बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. हालांकि स्कूल में क्या होता है, वो उनके नियंत्रण से परे होता है.
डॉक्टर वूल्फ़सन बताते हैं कि, 'स्कूलों में बहुत तरह की बातें हो रही हैं. मेरे तीन पोते-पोतियों की उम्र 12, दस और आठ बरस है. और उनमें से हर एक ने मुझे बताया है कि मैंने सुना है कि कोई हमारे स्कूल में आया. उससे पहले वो कहीं गया हुआ था. और स्कूल आने पर उसे घर वापस जाने को कहा गया. और इस तरह ये बीमारी सब को हो गई है.'
इससे पता चलता है कि ऐसे क़िस्से कितनी तेज़ी से फैलते हैं. ऐसे में ये ज़रूरी है कि बच्चों को सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया जाए औऱ उनसे उनकी चिंताओं के विषय में ईमानदारी से बात की जाए.
किशोर बच्चों से कैसे संवाद करें?
किसी संक्रमण को लेकर किशोर उम्र बच्चों से बात करने का तरीक़ा अलग होता है. क्योंकि, वो दुनिया की ख़बरों के लिए अपने मां-बाप पर कम निर्भर होते हैं. उन्हें ज़्यादातर जानकारियां अपने दोस्तों से मिलती हैं.
डॉक्टर वूल्फ़सन कहते हैं कि, 'किशोरों के पास सूचना का अपना अलग नेटवर्क होता है. वो अपने हम उम्र साथियों पर ज़्यादा निर्भर करते हैं. लेकिन, किशोरों के साथ दिक़्क़त ये होती है कि वो ज़्यादा व्यवहारिक होते हैं. किसी 14 बरस के बच्चे को ये कहने से काम नहीं चलेगा कि सब ठीक-ठाक है. परेशान होने की बात नहीं है. क्योंकि जब आप उनसे ऐसा कहेंगे, तो वो पलट कर ये कहेंगे कि आप को कुछ पता ही नहीं है.'
इसीलिए किशोर उम्र बच्चों के साथ संवाद में मुश्किल आती है. वो आप की हर बात को आसानी से मंज़ूर नहीं करते.
हालांकि डॉक्टर वूल्फ़सन कहते हैं कि, 'एक बात सभी बच्चों पर लागू होती है, भले ही वो किसी भी उम्र के हों. सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप उनके लिए कैसा माहौल तैयार करते हैं. आप को बच्चों को इतना खुलापन देना चाहिए, जिस में उन्हें अपने मन की हर बात खुल कर कहने की आज़ादी हो.'