COVID-19:डॉक्टरों ने ममता बनर्जी को लिखी खुली चिट्टी, क्या बंगाल में कुछ छिपाया जा रहा है ?
नई दिल्ली- पश्चिम बंगाल से बाहर रह रहे बंगाली डॉक्टरों और मेडिकल प्रोफेशनलों में राज्य की स्थितियों को लेकर हड़कंप मचा हुआ है। उन्होंने कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट देखने के बाद कोरोना वायरस के खिलाफ पश्चिम बंगाल में जारी लड़ाई को लेकर संदेह जता दिया है। इन मेडिकल प्रोफेशनलों ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को खुली चिट्ठी लिखकर गुजारिश की है कि मानवता के नाम पर कोरोना से संबंधित आंकड़ों में किसी तरह की हेरफेर न की जाए, नहीं तो प्रदेश को इसका बहुत ही गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है।
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मेडिकल प्रोफेशनलों की खुली चिट्टी, सीएम के नाम
बंगाल के नॉन-रेसिडेंट मेडिकल प्रोफेशनलों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक खुली चिट्ठी लिखकर राज्य में कोरोना वायरस के खिलाफ जारी जंग को लेकर कई चिंताजनक सवाल उठाए हैं। इस खत में राज्य में हो रही बहुत ही कम टेस्टिंग और कोविड-19 की वजह से मरने वालों के आंकड़ों में घालमेल की बातों को बहुत ही घातक बताया गया है। खत में कहा गया है, 'पिछले डेढ़ हफ्ते से पश्चिम बंगाल में कोविड-19 की स्थिति से हम गुजरे हैं या हमने बढ़ती चिंताओं को देखा है। दो मुख्य मुद्दे हैं, जो हमें बहुत ज्यादा परेशान कर रही हैं, 1) पश्चिम बंगाल में कुल टेस्टिंग बहुत ही कम होना, और 2) कोविड-19 के मरीजों की मौत की वजहों के आंकड़ों को गलत तरीके से पेश करना।' बंगाल से बाहर रह रहे इन डॉक्टरों ने अपनी पहचान बंगाली फिजिशियन, हेल्थ साइंटिस्ट और हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के तौर पर बताई है, जिनकी जड़ें बंगाल में हैं।
बंगाल में कोरोना से मौत का आंकड़ा छिपाया जा रहा है?
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स में छपी एक रिपोर्ट का हवाला देकर इन डॉक्टरों ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में प्रति 10 लाख की आबादी में से सिर्फ 33.7 टेस्ट हुए हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 156.9 प्रति 10 लाख है। जबकि, रोजाना 1,000 टेस्ट करने की क्षमता मौजूद है। खत में लिखा गया है कि 'यह टेस्टिंग, जांच के परिणामों की सटीकता और खासकर ये कितनी बार कराया जाता है और बिना लक्षणों वाले मामलों में इसका पैमाना कितना अधिक है, यह इसी पर निर्भर करता है कि असल में कितने लोग संक्रमित हैं।' इन डॉक्टरों का दावा है कि वह बंगाल में जन्मे, पले-बढ़े और शिक्षित हुए हैं और अभी भी उनकी फैमिली पश्चिम बंगाल में ही रहती है। इनका दावा है कि इस बात के सबूत मौजूद हैं कि राज्य में कोविड-19 से हुई मौतों को बहुत ही कम करके बताया जा रहा है। खत में इस बात पर गंभीर चिंता जताई गई है कि संक्रमित केसों को छिपाने के खतरनाक दुष्परिणाम भुगते पड़ सकते हैं। मसलन, महामारी के लिए प्रदेश को तैयार करना मुश्किल हो सकता है और बिना लक्षणों वाले मामलों की वजह से अनजाने में यह बीमारी बड़े पैमाने पर फैल जाएगी।
कोरोना पर बंगाल में गलत आंकड़े पेश किए जा रहे हैं?
इन डॉक्टरों ने राज्य मे कोविड-19 मरीजों का इलाज कर रहे कोलकाता के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों के हवाले से कहा है कि 'सिर्फ सरकार की ओर से नियुक्त कमिटी ही इसकी घोषणा करती है कि मरीज कोविड-19 से मरा है। जब कोरोना वायरस का मरीज भी सांस संबधी रुकावटों की वजह से मर गया, कमिटी ने कोविड-19 को मौत की वजह नहीं बताया।......कोविड-19 को मौत की वजह नहीं बताना आंकड़ों के साथ फर्जीवाड़ा करना है।' जबकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्ज ने अपनी गाइडलाइंस में इसके स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं।
डॉक्टरों ने मानवता बचाने के लिए की गुजारिश
इस खत में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बंगाल के स्वास्थ्य मंत्रालय से साफ गुजारिश की गई है कि किसी भी तरह से टेस्टिंग को बढ़ाएं, कोविड-19 का सही और क्रमवार डेटा जिम्मेदारारी लेकर जारी करें। इन डॉक्टर ने कहा है कि हम अपने प्रिय राज्य के नेताओं से विनती करते हैं कि वो विज्ञान और मानवता के आधार पर प्रदेश की अगुवाई करें। गौरतलब है कि बुधवार तक पश्चिम बंगाल ने सिर्फ 7,034 लोगों के कोविड-19 टेस्ट कराए थे। जबकि, आंध्र प्रदेश ने 41,512, राजस्थान ने 55,759 और तमिलनाडु ने 53,045 टेस्ट करवा लिए थे। हालांकि, ममता ने कम टेस्ट के लिए आईसीएमआर पर आरोप लगाया है कि उसने शुरू में टेस्टिंग किट उपलब्ध नहीं करवाए और बाद में खराब किट भेज दिए।
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