कोरोना वायरस : योगेंद्र यादव के सात सूत्री एजेंडे पर विवाद, करना पड़ा संशोधन
कोविड-19 की महामारी से बने हालात से निपटने के लिए बने 'सात सूत्री कार्य योजना' में योगेंद्र यादव के साथ कई प्रमुख अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता जुड़े हैं.
"लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए केंद्र सरकार ने जिस राहत पैकेज की घोषणा की है, उसमें रोज़ी-रोटी के लिए जूझ रहे आम लोगों की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है."
"प्रवासी मज़दूर चाहे जहां कहीं भी हों, अगले दस दिनों के भीतर उन्हें बाइज्जत, बिना देरी किए और बिना कोई पैसा लिए उनके गांव-घर तक पहुंचाया जाए."
शुक्रवार को राजनीतिक दल 'स्वराज इंडिया' के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने 'मिशन जय हिंद' नाम से जिस 'सात सूत्री कार्य योजना' का मसौदा जारी किया, उसकी कुछ बातें इस तरह से थीं.
कोविड-19 की महामारी से बने हालात में अर्थव्यवस्था, हेल्थ सेक्टर और ग़रीबों के सामने जो संकट आया है, उससे निपटने के लिए इस 'सात सूत्री कार्य योजना' में योगेंद्र यादव के साथ कई प्रमुख अर्थशास्त्री, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता जुड़े हैं.
इनमें अर्थशास्त्री प्रणब बर्धन, दीपक नैयर, ज्यां द्रेज़, अभिजीत सेन, जयती घोष, राजमोहन गांधी, रामचंद्र गुहा, हर्ष मंदर, निखिल डे, एडमिरल (रिटायर्ड) रामदास जैसे लोग शामिल हैं.
गुहाः इनकार से इक़रार तक
शुक्रवार शाम को जब योगेंद्र यादव ने इस 'सात सूत्री एजेंडे' को ट्विटर पर जारी किया तो उसके एक सुझाव को लेकर विवाद छिड़ने की आशंका जाहिर की जाने लगी थी.
Leading economists, intellectuals and activists propose a 7-point Plan of Action to respond to the current crisis pic.twitter.com/YbEitn6XQw
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) May 22, 2020
'मिशन जय हिंद' का क्लॉज 7.1 कुछ इस तरह से था, "देश में या नागरिकों के पास मौजूद सभी तरह के संसाधनों (नक़दी, रीयल इस्टेट, प्रॉपर्टी, बॉन्ड) को इस संकट के दौरान राष्ट्रीय संसाधन की तरह माना जाए."
सोशल मीडिया पर क्लॉज 7.1 को कुछ लोग साम्यवाद और राष्ट्रीयकरण की अवधारणा से जोड़कर देख रहे थे.
यहां तक कि लेखक और इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी ये साफ़ तौर पर कहा कि वो इससे सहमत नहीं हैं और इसके लिए उन्होंने रज़ामंदी भी नहीं दी थी.
बाद में योगेंद्र यादव ने पिछले डॉक्युमेंट में बदलाव करके एक नया बयान जारी किया जिसमें संपत्ति के राष्ट्रीयकरण वाली बात हटा दी गई.
The new pt 7.1 in the Mission Jai Hind Statement is extremely appropriate and all controversy should now be set at rest. I trust that fellow citizens shall focus on the many important recommendations in our plan and will urge Central and State Governments to implement it. https://t.co/Tk1VHPQxcF
— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) May 23, 2020
इसके बाद रामचंद्र गुहा ने कहा, "मिशन जय हिंद स्टेटमेंट में नया पॉइं 7.1 पूरी तरह से ठीक है और सभी किस्म के विवाद अब दरकिनार कर दिए जाएं."
Pt 7.1 has attracted undue attention & interpreted to mean a call for nationalisation/expropriation of private property This was far from our intention
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) May 23, 2020
Reformulated it as below
Hope the debate will focus on the plan outlined to address health, economic & humanitarian crisis https://t.co/v6EGSGIpY6 pic.twitter.com/zaMme8TFwK
क्या है 'सात सूत्री कार्य योजना'
- जो भी मज़दूर घर लौटना चाहते हैं, दस दिनों के भीतर उन्हें इज्जत के साथ उनके घर पहुंचाया जाए. इसके लिए उनसे कोई पैसा नहीं लिया जाए. केंद्र सरकार को इसकी पूरी तरह से ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए. केंद्र ट्रेन और बस सेवाओं का इंतज़ाम करे. राज्य सरकारों को अपने यहां इन मज़दूरों को घर पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए.
- सभी के टेस्ट से लेकर वेंटिलेटर तक एक समान स्वास्थ्य सुविधाएं फ्री में मिले. जिन लोगों में संक्रमण के लक्षण हों, उनकी मुफ़्त जांच की व्यवस्था कराई जाए. आईसीयू बेड्स, वेंटिलेटर्स और क्वारंटीन सुविधा वाले अस्पतालों की व्यवस्था हो. फ्रंटलाइन वर्कर्स और उनके परिवारवालों की आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा का एक साल के लिए इंतज़ाम किया जाए.
- जिस किसी का नाम राशन कार्ड में हो, उसे हर महीने दस किलो अनाज, डेढ़ किलो दाल, 800 मिलीलीटर कुकिंग ऑयल और आधा किलो चीनी दिए जाएं. अतिरिक्त नाम और इमर्जेंसी राशन कार्ड मांग किए जाने पर पहचान पत्र और एड्रेस प्रूफ़ के आधार पर जारी किया जाए.
- मनरेगा के तहत हरेक शख़्स को इस साल कम से कम 200 दिनों के काम की गारंटी दी जाए. शहरी इलाक़ों में 400 रुपए रोज़ की दिहाड़ी के दर पर कम से कम 100 दिनों के रोज़गार का इंतज़ाम हो. लॉकडाउन की वजह से जिनकी रोज़ी-रोटी छिनी है, मनरेगा के तहत उन्हें कम से कम 30 दिनों का मुआवजा दिया जाए.
- ईपीएफ़ में रजिस्टर्ड कर्मचारी जिनकी नौकरी जा चुकी है, उन्हें मुआवज़ा दिया जाए. ख़राब आर्थिक स्थिति का सामना कर रही कंपनियों को ब्याज मुक्त कर्ज दिया जाए ताकि वे अपने कर्मचारियों को कुछ वेतन दे सकें. एमएसएमई सेक्टर की कंपनियों का ईपीएफ़ योगदान सरकार अगले छह महीने तक करे. किसानों को उनके ख़राब हो गई फसल और न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बिक रहे उत्पाद का मुआवज़ा दिया जाए.
- किसानों और छोटे कारोबारियों के लिए और होम लोंस पर अगले तीन महीने के लिए ब्याज पर राहत दी जाए. मुद्रा शिशु और किशोर योजना के तहत दिए गए क़र्जों में अगले छह महीने के लिए वसूली और ब्याज के लिए दबाव न बनाया जाए. किसान क्रेडिट कार्ड पर अगले छह महीने के लिए ब्याज और वसूली से राहत दी जाए.
- राहत पैकेज के लिए संसाधनों के इंतज़ाम में टैक्स लगाने के अलावा दूसरे रास्ते भी खोजे जाएं. केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर अतिरिक्त राजस्व के कम से कम 50 फ़ीसदी हिस्से की ज़िम्मेदारी उठाए. सभी तरह के ग़ैर ज़रूरी खर्चों और सब्सिडी पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए.