कोरोना संकटः जानिए,लड़ने के लिए कितना तैयार थे हम और 3 महीने बाद अब कितने तैयार हुए हैं आप?
बेंगलुरू। कोरोनावायरस को दुनिया में आए हुए तकरीबन 30 जून को 7 महीने पूरे होने जा रहे हैं और 7 महीने बाद में भी विशेष रूप से हिंदुस्तान में लोगों में कोरोनावायरस के खतरों लेकर जागरूकता का अभाव है। यह सभी लोग भली-भांति समझ चुके हैं कि कोरोनावायरस की चपेट में आने से कैसे बचा जा सकता है, बावजूद इसके हिंदुस्तान में लापरवाह एटीट्युड यानी 'चलता है' एटीट्यूड बदस्तूर कायम है और यह तब है जब हिंदुस्तान में अब तक 5 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 15 हजार से अधिक लोग जान से हाथ धो बैठे हैं।
वर्तमान समय में आलम यह है कि हिंदुस्तान में हर रोज यानी हर 24 घंटे में तकरीबन 20,000 नए मामले सामने आ रहे हैं और प्रति दिन लगभग 300 से 400 लोगों की मौत हो रही है, लेकिन चलता है एटीट्यूड का शिकार आम भारतीय लॉकडाउन में मिली छूटों में खुद के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह बना हुआ है। उसकी वजह से दूसरों की जिंदगी पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रति भी वह बेफिक्र है।
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शायद इसी का नतीजा है कि एक समय में शुरूआती लॉकडाउन ने जहां हिंदुस्तान में संक्रमण को फैलने से रोकने में अग्रणी था, लेकिन लॉकडाउन में मिली राहत के बाद भयावह स्थिति की कल्पना की जा सकता है। यह इसलिए हुआ, क्योंकि भारतीयों ने लॉकडाउन में दी गई जरूरी छूट का इस्तेमाल गैर-जरूरी कामों में इस्तेमाल किया गया।
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हिंदुस्तान और भेड़िया धसान की कहावत के जन्मदाता कौन थे, इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसकी शक्ल, सूरत और मिजाज के दर्शन वर्तमान में हर राज्य, शहर और कस्बों में लोगों में देखा जा सकता है। भारत सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन का अनुसरण अथवा दूसरों को देखकर उनका अनुकरण करना भी लोगों की प्राथमिकता लिस्ट में नहीं है। भारत पर अभी कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा आसन्न है, लेकिन कुछ लोगों के कानों में अभी भी जूं नहीं रेंग रहा है, जिससे लगातार रूप बदल रही नोवल कोरोना वायरस लोगों को अपनी चपेट में लेती जा रही है।
अनलॉक-1 के समय गाइडलाइन के मुताबिक लोगों को घरों से बाहर निकलने पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, मास्क पहनकर निकलने और घर पहुंचकर अपनों हाथों को 20 सेकंड तक साबुन और पानी से धोने सलाह दी गई, लेकिन हिंदुस्तान में गाइडलाइन का कौन कितना पालन कर रहा है।
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कौन गाइडलाइन का इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है और न नहीं इसकी मॉनिटरिंग ही की जा सकती है। इसकी उम्मीद गाइडलाइन बनाते समय सरकार द्वारा भी की जानी चाहिए कि लोग अपनी जिंदगी की सुरक्षा के लिए उसका अनुसरण करेंगे अथवा नहीं, क्योंकि वास्तविकता क्या है, इससे हम और आप अच्छे से परिचित हैं, क्योंकि यहां लोग दंडात्मक कार्रवाईयों में भी रास्ते निकाल ही लेते हैं।
गौरतलब है दुनिया के बहुत सारे देश हैं, जहां कोरोनावायरस का प्रकोप भी फैला और फैलने के बाद लोगों ने वहां की सरकारों द्वारा सुरक्षा संबंधी बनाई गई गाइडलाइन का अच्छे पालन करके कोरोना को लगभग भगा भी दिया। इसके लिए दूर कहीं जाने की जरूरत नहीं है बल्कि एशियाई राष्ट्र, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर का नाम लिया जा सकता है।
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उपरोक्त सभी देशों में वहां की सरकारों द्वारा लोगों के लिए बनाए गए गाइडलाइन का सख्ती से पालन से किया गया, जिससे अब उक्त सभी देशों लगभगा कोरोनावायरस से मुक्त हो चुके हैं, जबकि इसके इतर हिंदुस्तान में जब तक लॉकडाउन का डंडा चला, लोग अपने घरों में दुबके रहे और जैसे ही डंडा हटा, लोग सड़कों पर इकट्टे हो गए।
बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यहां यह है कि क्या आपके स्वास्थ्य की सारी जिम्मेदारी सरकार की है अथवा देश के नागरिकों का भी कुछ जिम्मेदारी है। हिंदुस्तान में लॉकडाउन की घोषणा हुई तो कुछ लोग गाड़ी निकालकर पहाड़ों और वादियों में टहलने निकल गए।
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मानो पब्लिक हॉलीडे की घोषणा हो गई थे। लॉकडाउन में घर बैठना पड़ा और थोड़ी छूट मिली तो सड़कों पर बिना सुरक्षा उपायों के जमा हो गए। यह क्रम अभी लगातार जारी है, जिसकी वजह हिंदुस्तान में लगातार बढ़ रहे मामलों के रूप में देखा जा सकता है।
कहते हैं जानकारी ही बचाव है और पूरी दुनिया से महमारी के खतरों की खबर लगातार विभिन्न माध्यमों से लोगों तक पहुंच रही है, लेकिन उन सूचनाओं का इस्तेमाल खुद की सुरक्षा के लिए लोगों द्वारा नहीं किया जाना ही समस्या का मूल कारण है। इंसान की जीवन जान की रक्षा और माल की सुरक्षा की जद्दोजहद में बीत जाता है, लेकिन कोरोना काल में लोगों में दोनों प्रति खूब बेपरवाही दिखी है।
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मौजूदा दौर में अभी सभी अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि कोरोनावायरस एक इंसान से दूसरे और दूसरे से तीसरे में तेजी फैलता है, लेकिन लोगों में बेपरवाही का आलम यह है कि निजी स्वार्थ में एक पूरी आबादी को संक्रमित करने का जोखिम लेने से भी वो नहीं कतरा रहे हैं।
श्रमिक स्पेशल ट्रेन, एयर सेवा और सड़क परिवहन जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से करोड़ों लोग अब तक देश के एक छोर से दूसरे छोर पर पहुंच चुके हैं, लेकिन ऐसा कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं बचा, जिसमें संक्रमित मरीज नहीं मिले है। लोगों को जाना है, तो तापमान घटाने वाली दवा खा करके जांच को धता बताकर यात्रा किया और दूसरों की जिंदगी को भी खतरे में डाला है। गांवों में फैल रहे कोरोनावायरस के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है।
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सौ बात की एक बात यह है कि हम सभी को कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई के लिए सरकार के साथ मिल-जुलकर तैयार होना होगा, तभी कोरोनावायरस के खिलाफ यह जंग हिंदुस्तान जीत सकेगा। सरकारें योजनाएं बना सकती है, उसे लागू करने के लिए पैसे खर्च कर सकती है, लेकिन उसमें अमल वहां के नागरिकों को ही करना होगा।
लोगों को अपने भीतर इतना सिविक सेंस का विकसित करना ही होगा, जिससे वो अपने साथ ही साथ दूसरे की जिंदगी को खतरे में डाले बिना जिंदगी जी सके, क्योंकि 'जान है जहान' और 'हम सुखी, संसार सुखी' जैसे पंक्तियों को सकारात्मकता के साथ अपनाना जाना अब बेहद जरूरी है।
कोरोना वायरस संक्रमण का अभी तक कोई इलाज नहीं है?
दुनिया भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता पिछले कई महीनों से कोरोनावायरस का एंटी डोज बनाने में जुटे हुए हैं, लेकिन अभी तक उसमें सफलता नहीं मिली है। कुछ शोधार्थी वैज्ञानिक मानव पर परीक्षण के स्टेज पर पहुंच चुके हैं, लेकिन सब कुछ ठीक भी रहा, वैक्सीन बाजार में उपलब्ध होने में करीब 6-7 महीने लग जाएंगे। यानी कि वैक्सीन विकसित होने पर भी उसके उपयोग में आने तक दिसंबर, 2020 तक इंतजार करना होगा और तब तक महामारी से बचने के लिए सुझाए गए सुरक्षा उपायों के अनुपालन से ही अपने साथ-साथ दूसरों की जिंदगी बचाए रखनी होगी, फिर चाहे वह आपके परिवार के सदस्य हों अथवा आम नागरिक।
घर से तभी बाहर निकलें जब ज्यादा जरूरी हो, गैर-जरूरी यात्रा भी टालें
हिंदुस्तान में कोरोनावायरस का खतरा कम नहीं, बल्कि लगातार बढ़ता जा रहा है। यह टेस्टिंग में और कांटैक्ट ट्रेंसिंग की बढ़ती दरों से भी मुमकिन है, लेकिन मामले है, इसलिए बढ़ रहे हैं, टेस्टिंग और कांटैक्ट ट्रेंसिंग की अनुपस्थिति में ऐसे लोग पकड़ से बाहर थे। चूंकि टेस्टिंग में वृद्धि से अब हर कोई पकड़ में आ रहा है। अब वो भी पकड़ में आ रहे हैं, जो संक्रमित होते हुए भी अनिभज्ञ बने हुए थे और लोगों में अनजाने ही सही वायरस फैला रहे थे। इसलिए जरूरी है कि जब ज्यादा जरूरी हो, तभी घर से बाहर निकले, क्योंकि बाहर निकलते ही बिना लक्षणों संक्रमित व्यक्ति आपमें कोरोना ट्रांसफर कर सकता है। गैर-जरूरी यात्रा भी टालें, कोशिश कीजिए की यात्रा बिल्कुल न करें।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि के लिए योग और आरोग्य सहायकों की शरण लें
अगर आप दिल्ली जैसे मेट्रोपोलिटन सिटी में रहते हैं तो वायु प्रदूषण से शरीर का रोग प्रतिरोधक सिस्टम (इम्यून सिस्टम) पहले से बिगड़ा हुआ रहता है। हालांकि कमोबेश सभी मेट्रोपोलिटिन सिटीज का यही हाल है, इसलिए योग और आरोग्य की शऱण में जाना बेहद जरूरी है। इसकी मदद से शरीर को कोरोनावायरस के हमले से बेहद आसानी से बचाया जा सकता है। यह सर्वमान्य सच है कि प्रदूषित वायु और वातावरण शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को कमजोर कर देता है।
कोरोनावायरस के जोखिम को लेकर लगातार गंभीरता बरतना जरूरी
स्वास्थ्य विशेषज्ञ संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए सबसे ज़रूरी क़दमों में से एक गंभीरता को मानते हैं। आप और आपके आसपास लोग तभी संक्रमण से दूर रहेंगे, जो आप महामारी के जोखिम को लेकर गंभीरता दिखाएंगे। सरकार कोरोना संक्रमण में वृद्धि के साथ बड़े पैमाने पर टेस्टिंग शुरू कर दी है और कम्युनिटी ट्रांसमिशन से बचने के लिए संक्रमित लोगो को अलग कर रही है, लेकिन आपकी जिम्मेवारी है कि सोशल डिस्टैंसिंग यानी भीड़-भाड़ में जाने से बचें और मास्क जैसे सुरक्षा उपायों को ईमानदारी से पालन करें।
जो गलती अमरीका और यूरोपीय के लोगों ने की, उनसे सीखें
यूरोपीय देश इटली, स्पेन और ब्रिटेन के लोगों को उनकी लापरवाही के कारण कोरानावायरस से बड़ा आघात पहुंच चुका है, लेकिन शुरूआती लॉकडाउन में सुरक्षित रहकर अब वही गलती हिंदुस्तान में दोहराया जा रहा है। लोगों कोरोनावायरस को हिंदुस्तान में भी हल्के में भी लेने लगे हैं। फिलहाल गलती सुधार कर अब पश्चिमी देशों में सभी ऐहतियाती क़दम उठाए जाने लगे हैं और वहां जोखिम का दर कम हो गया है, लेकिन हम अगर अभी हरकत में नहीं आए तो हमारी उसने भी बड़ी दुर्गति होने वाली है, क्योंकि हिंदुस्तान की स्वास्थ्य सेवाएं एक बड़ी आबादी को संभाल नहीं पाएंगी।
अभी टेस्टिंग सुलभ और सस्ती हुईं, संदिग्धता में तुंरत आगे बढ़ें
हिंदुस्तान में मौजूदा समय में कोरोनावायरस की टेस्टिंग तेज हो गई और प्रति दिन एक लाख से अधिक लोगों की टेस्टिंग की जा रही है। ऐसे में किसी भी संदिग्ध स्थिति में लोगों को टेस्टिंग के लिए आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि अभी हिंदुस्तान में 1036 लैब संचालित हैं, जहां जाकर टेस्टिंग आसानी से कराई जा सकती है, जिससे आप खुद के साथ ही साथ परिवार और समाज को आसानी से कोरोना के जोखिम से सुरक्षित रखा जा सकता है। दक्षिण कोरिया का उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां सरकार ने टेस्टिंग सुविधा बढ़ाई और वहां के लोगों ने उसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और वर्तमान में दक्षिण कोरिया कोरोनावायरस के खतरे से लगभग बाहर है।
कांटैक्ट ट्रेसिंग और कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोकने में भी योगदान जरूरी
कहते हैं एक और एक ग्यारह भी होते है। इसलिए जरूरी है कि अगर आपके संपर्क में आने वाला कोई व्यक्ति संदिग्ध लगता है, तो उसके बारें स्थानीय प्रशासन को जरूर सूचित करें। इससे प्रशासन और सरकारें उसकी पहचान आसानी से कर सकेंगे और कांटैक्ट ट्रैंसिंग के जरिए उसके संपर्क में आए लोगों का भी नमूना लेकर कम्युनिटी ट्रांसमिशन को रोकने में कामयाब हो सकते हैं। क्योंकि मौजूदा समय में यह जरूरी नहीं कि जो आपसे मिल रहा है, उसमें कोरोनावायरस के लक्षण दिख रहे हैं, जिससे कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। आपके एक कदम से सैंकड़ों लोग संक्रमण से बचाए जा सकते हैं। सिंगापुर में संक्रमितों को पकड़ने के लिए जासूसों को लगा दिया और उन्होंने 6000 सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से संक्रमित और उसके कांटैक्ट ट्रेस का दबोच लिया।
स्वतंत्रता और अधिकार के साथ जिम्मेदारी का पालन करना जरूरी है
कहते हैं अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी जुड़ी होती है। इसलिए यह सभी की जिम्मेदारी है कि इमरजेंसी की स्थिति में देश के काम आए और अपनी स्वतंत्रता और उसके साथ मिली जिम्मेदारी को भी अमलीजामा पहनाएं। हिंदुस्तान में यह परिपाटी नहीं है, लोगों को स्वतंत्रता और अधिकार चाहिए, लेकिन जिम्मेदारी के नाम पर चुप हो जाते हैं। सिंगापुर में जिन लोगों को घर पर रहने के लिए कहा गया और अगर आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्ती से पेश आया जाता है। जुर्माना और जेल की सज़ा भी दी जाती है। एक शख्स से तो सिंगापुर में रहने का अधिकार तक छीन लिया गया।
जन सहयोग के बिना सारी नीतियां और क़दम बेकार हो जाते हैं
जन सहयोग के बिना सरकारें नहीं बन सकती हैं, इसलिए किसी भी लड़ाई में जीत के लिए जनता बेहद जरूरी है और जहां जन सहयोग नहीं मिलता, वहां सारी नीतियां और क़दम बेकार होते हैं। इसलिए सरकारों के साथ-साथ जनता को भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाना जरूरी है। यह कदम सरकारों के लिए जरूरी है।
नीति बनाने से पहले जनता को उसका वैज्ञानिक आधार बताना चाहिए
क्योंकि ऐसे गाइडलाइन्स सिर्फ कागज के पुर्जों तक सीमित रह जाते हैं, जिनमें जनता का साथ न मिल सके। एक ओर जहां सरकार को नीति बनाने से पहले जनता को उसका वैज्ञानिक आधार बताना चाहिए और आमजन को भी उसकी गंभीरता को समझते हुए उस सकारात्मक सहयोग करना जरूरी है। जापान ने वायरस से बचाव के लिए कदमों की तारीफ़ हो रही है, उसने तुरंत बड़े पैमाने पर टेस्टिंग की और अस्पतालों की क्षमता बढ़ाई और वहां की जनता पूरा सहयोग किया और बगैर पूर्ण लॉकडाउन के जापान ने कोरोना को धूल चटा दिया है।