मौत तो मौत है, न जात देखती न धर्म, फिर क्यों जोखिम में डाल रहे जान ?
नई
दिल्ली।
जानलेवा
बीमारी
धर्म
या
जाति
नहीं
देखती।
जब
वह
कहर
बन
कर
टूटती
है
तो
उसकी
जद
में
हर
कोई
आ
जाता
है।
कोरोना
से
बचाव
के
निर्देशों
को
धर्म
से
जोड़
कर
नहीं
देखा
जाना
चाहिए।
लेकिन
कुछ
लोगों
की
हठधर्मिता
से
कोरोना
फैलने
का
खतरा
बढ़
गया
है।
भारत
के
कई
धार्मिक
गुरुओं
ने
मस्जिदों
में
नमाज
पढ़ने
की
मनाही
की
है।
इसके
बावजूद
बिहार
के
तीन
शहरों
में
शुक्रवार
को
सामूहिक
रूप
से
नमाज
पढ़ी
गयी।
कोरोना
के
संक्रमण
को
रोकने
के
लिए
इंसान
का
इंसान
से
दूर
रहना
निहायत
जरुरी
है।
सोशल
डिस्टेंडिंग
केवल
दूसरों
के
ही
नहीं
बल्कि
अपनी
की
हिफाजत
के
लिए
भी
है।
इसके
लिए
जब
सऊदी
अरब
में
मस्जिद
में
सामूहिक
नमाज
पढ़ने
और
उमरा
पर
रोक
लग
सकती
है
तब
फिर
बिहार
में
क्यों
नहीं
?
इतना
ही
नहीं
तबलीगी
जमात
के
लोग
इलाज
के
दौरान
जो
गुस्ताखियां
कर
रहे
हैं
वह
तो
और
भी
हैरतअंगेज
है।
क्या
धर्म
का
उपदेश
देने
वाले
लोग
ऐसी
हरकत
कर
सकते
हैं?
सामूहिक पूजा और नमाज पर रोक
भारत में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सामूहिक पूजा और नमाज पर रोक है। पटना जंक्शन स्थित ऐतिहासिक महावीर मंदिर में रामनवमी को पहली बार भक्तों के बगैर पूजा हुई। सिर्फ मंदिर के पुजारी ने पूजा की और मंत्रोच्चार के बाद ध्वाजारोहण किया। मंदिर के कपाट बंद रहे। करीब तीन सौ साल इस प्राचीन मंदिर में आम तौर पर रामनवमी के दिन दो से ढाई लाख लोग पूजा करने के लिए आते रहे हैं। लेकिन कोरोना के खतरे को देख कर सामूहिक पूजा टाल दी गयी थी। इसी तरह पटना जंक्शन के पास ही स्थित जामा मस्जिद में 28 मार्च को सामूहिक नमाज नहीं पढ़ी गयी। पटना की जामा मस्जिद, बिहार की बड़ी मस्जिदों में शामिल है। कोरोना की वजह से 119 साल के इतिहास में पहली बार इस मस्जिद की गेट पर ताला लगा था। जब बिहार की इस बड़ी मस्जिद में सामूहिक नमाज पर रोक रही तो राज्य में अन्य जगहों पर इसका पालन क्यों नहीं हुआ ? धार्मिक गुरुओं की अपील के बाद भी भभुआ, सीवान और मधुबनी में शुक्रवार को सामूहिक नमाज पढ़ी गयी।
लॉकडाउन के बावजूद सामूहिक नमाज
3 अप्रैल को सीवान के खानपुरा गांव में करीब 50 लोग नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद पहुंच गये। उन्होंने दोपहर को एक साथ जुमे की नमाज पढ़ी। लॉकडाउन अनुपालन के लिए तैनात मजिस्ट्रे को जब इस बात की जानकारी मिली तो वे इसकी तस्दीक के लिए पहुंचे। उन्होंने पाया कि करीब 50 लोग एक साथ नमाज पढ़ने की तैयारी में हैं। कानून तोड़े जाने पर मजिस्ट्रेट ने इमाम के खिलाफ एफआइआर दर्ज करा दी है। इसी तरह भभुआ जिले के अहिनौरा गांव में कई लोग दोपहर का नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद पहुंच गये। पुलिस ने उन्हें समझाया-बुझाया तो वे घर लौट गये। लेकिन वे फिर शाम को नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद के पास पहुंच गये। गांव के लोगों ने भीड़ जमा होने पर विरोध किया। इसके बाद हंगामा शुरू हो गया। रोड़ेबाजी भी हुई। पुलिस ने इस मामले में भी प्राथमिकी दर्ज कर ली है। इसी तरह मधुबनी जिले के हरना गांव में भी 3 अप्रैल को सामूहिक नमाज पढ़ी गयी। यहां तो अजीबोगरीब स्थिति थी। मस्जिद में लोग नमाज पढ़ रहे थे और बाहर महिलाएं लाठी लेकर खड़ी थीं। इस मामले में पुलिस खुद को अंजान बता रही है। पटना समेत जब अन्य शहरों में सामूहिक नमाज पर रोक रही तो ग्रामीण स्तर पर इसका अनुपालन क्यों नहीं हुआ ? ऐसा करने वाले लोग अपनी और हजारों लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं। क्या उन्हें अपनी जान की भी फिक्र नहीं ?
डॉक्टरों-नर्सों से बदसलूकी क्यों ?
तबलीगी जमात की शर्मनाक और गैरजिम्मेदाराना हरकतों से चिकित्साकर्मी हताश हो गये हैं। गाजियाबाद और कुछ अन्य जगहों पर जब तबलीगी जमात के लोगों ने डॉक्टरों और नर्सों पर थूका और उनसे बदतमीजी की तो लगा कि ये कुछ सिरफिरे लोगों का काम हो सकता है। लेकिन ये सिलसिला जब बिहार पहुंच गया तो जमात के लोगों की घटिया मानसिकता उजागर हो गयी। पावापुरी स्थित वर्धमान मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में तबलीगी जमात के चार संदिग्धों को आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया है। उन्हें शेखपुरा की अहियापुर मस्जिद से पकड़ा गया था। इलाज के दौरान ये लोग डॉक्टरों और नर्सों को गालियां देने लगे। थूक फेंकने लगे। खाने के लिए अनाप शनाप चीजें मांगने लगे। इससे डॉक्टर और नर्स परेशान हो गये। अंत में बिहार को डीजीपी को चेतावनी देनी पड़ी। उन्होंने कहा कि चिकित्साकर्मियों के साथ बेजा हरकतें करने पर कार्रवाई की जाएगी। तबलीगी जमात के लोग जान बचाने वाले लोगों को ही अपमानित कर रहे है। ऐसा कर के उन्हें क्या हासिल होगा ? जाहिर है वे अपना ही नुकसान कर रहे हैं। अभी वक्त का तकाजा है कि वे जांच और इलाज में सहयोग करें।
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