कोरोना महामारीः जानिए कैसे आता है और कैसे जाता है वायरस का संकट?
बेंगलुरू। बीता रविवार भारत के लिहाज से बेहद तनावपूर्ण कहा जा सकता है जब हिंदुस्तान में जानलेवा नोवल कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 1,000 का आंकड़ा पार कर गई। भारत समेत दुनिया में 40 ऐसे देश हैं, जहां लोग सर्वाधिक संक्रमित हैं। हालांकि अमेरिका, जहां सर्वाधिक कोरोना संक्रमित मरीज मिले हैं, को छोड़कर अन्य देशों की तुलना में भारत में संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर का औसत चीन से भी कम है।
गौरतलब है अभी तक भारत में कुल संक्रमित मरीजों की संख्या 1071 हैं, जिनमें से महज 2.75 फीसदी यानी 29 मरीजों की मौत की पुष्टि हुई है जबकि चीन समेत अन्य देशों में यह औसत भारत से अधिक है। चीन में जहां संक्रमित कुल मरीजों की मौत का औसत 4 फीसदी से अधिक हैं। वहीं, इटली, स्पेन और ईरान समेत अन्य प्रभावित देशों यह औसत बेहद खराब हैं। हालांकि अमेरिका में संक्रमितों की मृत्यु दर 1.75 फीसदी है, जो भारत से 1 फीसदी कम है।
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यह संख्या बताती है कि भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है। हालांकि मुश्किल खत्म नहीं हुई है, लेकिन इसका विश्लेषण करना आसान भी नहीं है। कई ऐसे वैज्ञानिक हैं जो कह रहे हैं कि अगले दो महीनों में भारत में संक्रमित लोगों की संख्या दस लाख पार कर सकती है।
तो कोई कह रहा हैं कि भारत में कोरोना वायरस का सामुदायिक संचरण (थर्ड स्टेज) पहले से ही हो रहा है। चूंकि यह इसलिए सामने नहीं आ रहें, क्योंकि भारत में पर्याप्त संख्या में लोगों का परीक्षण नहीं हो पा रहा है। हालांकि भारत सरकार और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) दोनों भारत में कोरोना वायरस के थर्ड स्टेज पर पहुंचने की खबरों का खंडन कर चुकी हैं।
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कुछ शोध पत्रों के हवाले से कहा गया हैं कोरोना वायरस उच्च तापमान में कमजोर हो जाते है और इसी को आधार बनाकर कुछ लोगों ने अपेक्षाकृत भारत में कोरोना के कम संक्रमण दर की व्याख्या की है, लेकिन इसी बीच भारत में उभरे प्रवासी मजदूरों की पलायन की अप्रत्याशित तस्वीरों ने दुनिया की सबसे बड़ी आबादी पर लगे लॉकडाउन के लाभों को दरकिनार कर दिया। लोग भारी संख्या सड़कों पर निकल आए, जो भारत को संकट में धकलने के लिए काफी है।
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उल्लेखनीय है अखिल भारतीय लॉकडाउन के बाद भी भारत में एक हिस्से में उभरे उक्त तस्वीरों पर कई वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के राय अलग-अलग है, लेकिन मजदूरों के पलायन से उभरे तस्वीरों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि उक्त तस्वीर अभी भी पूरी नहीं हुई है। भविष्य में ऐसे संकट अन्य राज्यों और शहरों में दिखाई पड़ सकते हैं।
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कोरोना से निपटने के भारत के संभावित रास्ते क्या हैं?
21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद वर्तमान में अपने-अपने घरों में बंद सभी लोगों के जुबान एक ही सवाल है कि यह कैसे समाप्त होगा? जब नए कोरोना वायरस का प्रकोप आया है तो तीन पूर्वानुमानित परिदृश्य इसके प्रसार के लिए के कारक सकते हैं।
संक्रमण के स्रोत पर पाबंदी ( Block at source)
इस परिदृश्य में, ट्रांसमिशन के प्रत्येक स्रोत को अलग किया जाता है। भारत में प्रसार के संदर्भ में इसका मतलब यह होगा कि वायरस संक्रमित प्रत्येक विदेशी यात्री का अलग किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि अलग होने से पहले उसे किसी संक्रमित तो नहीं किया। यह लगभग तय है कि भारत में ऐसा नहीं हुआ है। अन्यथा, नए पॉजटिव मामलों का दर कम से कम धीमा हो जाता। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो एक सप्ताह बाद भारत में आने वाली सभी उड़ानों को रोक दिया गया होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
कम्युनिटी ट्रांसमिशन: इसे वायरस संक्रमण का थर्ड स्टेज कहा जाता है
यह तब होता है जब वायरस समुदाय में फैल जाता है और आबादी का एक बड़ा हिस्से को संक्रमित करता है। ऐसे आबादी में अधिक संवेदनशील व्यक्ति मसलन बुजुर्ग और बीमारग्रस्त बुजुर्ग संक्रमण के पहले शिकार होते हैं। हालांकि इस प्रक्रिया में जनसंख्या वायरस के लिए एक प्रतिरक्षा विकसित करती है, जिसके बाद संक्रमण धीमा हो जाता है, और अंततः वायरस अप्रभावी हो जाता है। यह झुंड प्रतिरक्षा का सिद्धांत है। सामुदायिक प्रसारण शुरू होते ही यह स्थिति कमोबेश अपरिहार्य हो जाती है। प्रतिरक्षा विकसित होने से पहले संक्रमित होने वाली आबादी का आकार कई कारकों पर निर्भर करता है, विशेष रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी कितनी तेजी से फैल रही है (प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति द्वारा औसतन कितने लोग संक्रमित हुए)। इस पूरी प्रक्रिया में आम तौर पर छह महीने से लेकर एक साल तक का समय लग सकता है। वैसे, अभी तक वैज्ञानिकों को नहीं पता है कि SARS-CoV2 के मामले में यह अवधि कितनी लंबी हो सकती है। किन्ही परिस्थतियों में यह प्रक्रिया बहुत दर्दनाक हो सकती है, क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि वायरस कितना घातक है।
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यह वह स्थिति है जिसमें एक टीका विकसित किया जाता है, और प्रत्येक कमजोर व्यक्ति को दिया जाता है। सारे दृष्टिकोणों में हम जानते हैं कि नोवल कोरोना वायरस (SARS-CoV2) के लिए एक टीका विकसित करने से कम से कम 12-18 महीने दूर हैं। तब तक झुंड प्रतिरक्षा परिदृश्य कोरोना को खुद बाहर करने में योगदान निभा देगी।।
अनुपयुक्त जलवायु में जिंदा रहने में असफल होती है वायरस
जिंदा रहने में असफल होती है वायरस: यह तब उत्पन्न होता है, जब किसी कारण संभवतः अनुपयुक्त जलवायु परिस्थितियों के कारण वायरस एक भौगोलिक क्षेत्र में लंबे समय तक जीवित रहने में सक्षम नहीं हो पाता है। इस प्रकार वायरस बड़ी संख्या को संक्रमित करने के लिए अपनी शक्ति खो देता है। कुछ वैज्ञानिक अनुसंधानों ने उच्च तापमान में इस वायरस की भेद्यता का संकेत दिया है, लेकिन सबूत अभी तक निर्णायक नहीं हैं। दूसरी ओर, एक तथ्य यह भी है कि वायरस भारत में एक महीने से अधिक समय तक जीवित रहता है और एक बड़ी संख्या को संक्रमित करना जारी रखता है।
शरीर में पहले से मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता (PRE-EXISTING IMMUNITY)
ऐसा तब हो सकता है जब जनसंख्या में वायरस से बचाव के लिए पहले से मौजूद प्रतिरक्षा हो। SARS-CoV2 के मामले में, यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है कि भारतीय आबादी में कोई विशेष पूर्व-विद्यमान प्रतिरक्षा है, भले ही कई अन्य स्थानों की तुलना में भारत में वायरस के प्रसार की दर धीमी रही हो।
भारत में अब तक कोरोना के सामुदायिक प्रसारण के मामले नहीं आए हैं
अधिकांश वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि SARS-CoV2 भारत में दूसरे परिदृश्य का अनुसरण करेगा - संभावित प्रतिरक्षा के लिए अग्रणी है सामुदायिक संचरण। हालांकि भारत में अब तक कोरोना वायरस के सामुदायिक प्रसारण के बहुत कम मामले सामने आए हैं, लेकिन वैज्ञानिक भारत में इस परिदृश्य को संभावना को अन्य परिदृश्यों की तुलना में कहीं अधिक देखते हैं। ICMR ने भी स्वीकार किया है कि ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं जिनमें ट्रांसमिशन के मूल बिंदु का पता नहीं चला है, लेकिन इन नंबरों पर जोर दिया गया है ताकि वे कम से कम कम्युनिकेशन ट्रांसमिशन की स्थापना न करें। वैज्ञानिकों का कहना है कि सामुदायिक संचरण हो रहा है ऐसा किसी भी डेटा नहीं मिला है (भारत से अब तक शायद ही कोई मामला नहीं है) लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि इस तरह की बीमारियां कैसे फैलती हैं।
भारत में सामुदायिक संचरण हो रहा है ऐसा कोई डेटा नहीं मिला है
वैज्ञानिकों का कहना है कि सामुदायिक संचरण हो रहा है ऐसा किसी भी डेटा नहीं मिला है (भारत से अब तक शायद ही कोई मामला नहीं है) लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि इस तरह की बीमारियां कैसे फैलती हैं, लेकिन अगर यह परिदृश्य वास्तव में वजूद में है, तो किसी भी समय इसके प्रसार तेजी हो सकता है।
वायरस को फैलने से नहीं रोका जाता तो घातीय दर से बढ़ता संक्रमण
माना जाता है अगर वायरस को फैलने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया जाता है तो संक्रमण एक घातीय दर से आगे बढ़ेगा और बहुत जल्द आबादी का एक बड़ा हिस्सा संक्रमित हो जाएगा। यह कई वैज्ञानिक दलों द्वारा गणितीय मॉडलों का उपयोग करते हुए अनुमानों के अनुसार होगा। इस तरह के अनुमान कई तरह की मान्यताओं पर आधारित होते हैं, जिसमें वायरस को फैलने से रोकने के तरह-तरह के हस्तक्षेप, उनके संभावित प्रभाव और आम जनता की हस्तक्षेपों के प्रति अपेक्षित व्यवहारिक प्रतिक्रियाएं भी शामिल हैं। दिल्ली-एनसीआर में लॉकडाउन के बावजूद जुटी लाखों की भीड़ इसका बड़ा उदाहरण है।
प्रकोपों में मौत का कारण वायरस की प्रकृति पर निर्भर करता है
माना जाता है कि एक बार आबादी का पर्याप्त हिस्सा जब संक्रमित हो जाता है (और उनमें से अधिकांश ठीक हो जाते हैं) तो झुंड प्रतिरक्षा संक्रमण की दर को धीमा कर देती है और वापस लड़ती है। पुराने वक्त में इसी तरह अधिकतर प्रकोप सामने आए थे और इन प्रकोपों में मौत का कारण वायरस की प्रकृति पर निर्भर करेगा। यदि वायरस बहुत घातक नहीं है, तो वायरस को समुदाय में फैलने देने के लिए एक तर्क दिया जा सकता है और झुंड प्रतिरक्षा विकसित हो सकती है, हालांकि इससे एक स्वीकार्य मृत्यु दर का खतरा है, जो एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा हो सकता है।
बीमारी के खिलाफ कुछ नहीं करती हुई नहीं दिखना चाहती है सरकारें
ऐसी दो वजहें हैं, जो प्रकोप से निपटने के लिए सरकारें कदम उठाने की बिल्कुल इच्छुक नहीं होगी। भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, पुणे में एक प्रतिरक्षाविद् विनीता बाल ने कहा था कि आज की दुनिया में वायरस को फैलने देने और संक्रमितों की मौत होने देने को"बेहद अनैतिक व्यवहार माना जाता है। कोई भी सरकार लोगों का जीवन लेने वाली बीमारी के खिलाफ कुछ नहीं करती हुई नहीं दिख सकती है, भले ही वह जो भी करने का फैसला करती है, उससे अंतिम मृत्यु टोल को बहुत अधिक बदल नहीं सकती है।
संक्रमितों में से सिर्फ 5-7 फीसदी को अस्पताल में देखभाल की जरूरत
दूसरा कारण व्यावहारिक कठिनाइयों की चिंता है। संक्रमित लोगों का एक बहुत छोटा अनुपात यानी लगभग 5-7 फीसदी को अस्पताल में देखभाल की आवश्यकता होती है, लेकिन अगर भारत जैसे देश में इस वायरस को तेजी से फैलने दिया जाए, तो 5-7% बड़ी संख्या में तब्दील हो जाएंगे। इससे परे कि क्या उसका मेडिकल का बुनियादी ढांचे इसको संभाल सकता है।।
लॉकडाउन कैसे मदद करता है?
अधिकांश आबादी को उनके घरों तक सीमित करके और अन्य लोगों के साथ उनके संपर्क को सीमित करके वायरस के प्रसार को काफी धीमा किया जा सकता है। हालांकि इस उपक्रम से वायरस को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है, क्योंकि हमेशा कुछ लोग होंगे, जो इससे संक्रमित रह सकते हैं। इनमें आपातकालीन स्वास्थ्य कर्मचारी, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर, और आवश्यक ड्यूटी में तैनात लोग शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इस विशाल देश में कुछ लोगों को हमेशा लॉकडाउन निर्देशों की धज्जियां उड़ाने और दूसरों के साथ मेल-मिलाप जारी रखने की संभावना भी होती है। ऐसे स्थिति में अगर बहुत कम अनुपात में भी लोग वायरस को अपने साथ ले जा रहे है, तो यह नए और संदिग्ध मरीजों का मिलना आगे भी जारी रखेगा।
लॉकडाउन जैसे उपायों के कारण संक्रमण की दर में गिरावट होती है
लॉकडाउन जैसे उपायों के कारण संक्रमण की दर में गिरावट झुंड प्रतिरक्षा के निर्माण की गति को भी कम कर देती है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि यह संक्रमण के फैलाव के रोकथाम में जुटे अधिकारियों को चिकित्सा क्षमताओं को बढ़ाने, आपातकालीन संसाधन जुटाने और रोगियों की बड़ी संख्या के उपचार के लिए खुद को तैयार करने के लिए जरूरी समय देगा। हालांकि बाल कहते हैं कि इन दो उद्देश्यों के बीच एक अनुकूलतम संतुलन हासिल करना बहुत मुश्किल हो सकता है।
लॉकडाउन में सफलता के लिए पब्लिक व सरकारी मिशनरी परिपक्वता जरूरी
बाल के मुताबिक लॉकडाउन सफलता के लिए आम जनता के साथ-साथ सरकारी अधिकारियों से परिपक्व प्रतिक्रिया की उम्मीद करता है। शेष सोशल डिस्टेंसिग पर संक्रमण से बचाव के निर्देशों का पालन करके लॉकडाउन का सफल बनाया जा सकता है। जनता को यह सुनिश्चित करना है कि वो अस्पताल के बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर के मरीज से उचित दूरी बनाएं और सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इस अवधि का उपयोग अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए करे। हालांकि यह पहले से ही हो रहा है। कई शहरों और राज्यों ने COVID-19 रोगियों के लिए निश्चित संख्या में बेड लगाना शुरू कर दिया है। ट्रेनों में आइसोलेशन वार्ड बनाए जा रहे हैं। COVID-19 रोगियों को समर्पित स्टेडियमों जैसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्रों को अस्थायी अस्पताल में बदलने की योजना है। बड़ी संख्या में चिकित्सा उपकरण ऑर्डर किए जा रहे हैं।
दूसरे शहर में लोगों पलायन ने लॉकडाउन का उद्देश्य कम किया
रेलवे, एयरलाइंस और बस सेवाओं को बंद करके सरकार ने शायद सोचा कि यह लोगों को जहां वे हैं, वहीं रखेगी। लॉकडाउन से पहले शायद ऐसा नहीं सोचा गया था कि लोग अपने घरों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलेंगे। दर्द के अलावा यह उन पैदल चलने व्यक्तियों के लिए भी घातक था और मानवीयता संकट से परे बड़े पैमाने पर लोगों के एक शहर से दूसरे शहर में पलायन ने लॉकडाउन के उद्देश्य को गंभीरता और उसके लक्ष्य को कम कर दिया।
भूख और भय से प्रेरित पैदल चलने वालों में अधिकांश प्रवासी श्रमिक
भूख और भय से प्रेरित पैदल चलने वालों में अधिकांश प्रवासी श्रमिक अपने घरों तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। पहला डर एक 'शहर की बीमारी' का था, उन्हें लगा कि वो केवल अपने मूल स्थानों में ही सुरक्षित रहेंगे। दूसरा डर सामाजिक रूप से अलग-थलग पड़ने का था, जहां उनका अपना कोई नहीं है। उनमें से कई लोग यह कहते पाए गए कि अगर उन्हें मरना है, तो वे अपने परिवार और गांव के समुदाय के साथ मरेंगे।
लॉकडाउन में बेहतर संचार से लोगों का दुख कम हो सकता है
लॉकडाउन में बेहतर संचार से लोगों का दुख कम हो सकता है। डर, आशंका और अफवाहों को दूर करने की जरूरत है, न केवल उन लोगों में, जो सख्त रूप से चल रहे हैं, बल्कि उन लोगों को भी जो पिछले पांच दिनों से अपने घरों में बंद हैं। उन्हें डर सता रहा है कि वे संक्रमित हो जाएंगे और मर जाएंगे। आदर्श रूप से सरकार के उच्च स्तरों से इन सभी लोगों को आश्वस्त करने की आवश्यकता है कि अगर वे संक्रमित भी हो जाते हैं, तो भी उनमें से अधिकांश को अस्पताल में भर्ती हुए बिना ठीक होने की अधिक संभावना थी।