कोरोना संकट: बिहार में पूर्वोत्तर के रेल यात्रियों पर पथराव का पूरा सच
लॉकडाउन में फंसे अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए पूर्वोत्तर के कई राज्यों ने केंद्र सरकार की मदद से स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है.
"वो हम लोगों पर चिल्ला रहे थे और मारने की धमकी दे रहे थे. अचानक हमारे कोच में चढ़ आए कुछ लोगों ने धक्का-मुक्की भी की. हमारी ट्रेन पर पत्थर फेंके गए. पुलिस के कुछ लोग स्टेशन पर खड़े थे लेकिन किसी ने हमारी मदद नहीं की."
मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग के पास्टोरल क्वारंटीन सेंटर में ठहरी 22 साल की विदाफी लिंगदोह बिहार के दानापुर स्टेशन पर हुई उस घटना को यादकर अब भी सहम जाती हैं.
कोरोना वायरस के चलते देशभर में जारी लॉकडाउन में फँसे अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए पूर्वोत्तर के कई राज्यों ने केंद्र सरकार की मदद से स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था की है.
लेकिन इन स्पेशल ट्रेनों से लौट रहे प्रवासी लोगों का आरोप है कि लंबी दूरी तय करने वाली इन ट्रेनों के शौचालयों में न पानी रहता है और न ही रेलवे प्रशासन ने यात्रियों की सुरक्षा के लिए किसी तरह की व्ययवस्था की है.
ट्रेन में बदसलूकी
दरअसल, हरियाणा के गुरुग्राम रेलवे स्टेशन से 22 मई की शाम क़रीब साढ़े छह बजे पूर्वोत्तर राज्यों के प्रवासी लोगों को लेकर नागालैंड के दीमापुर के लिए एक स्पेशल ट्रेन रवाना हुई थी.
इस ट्रेन में मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के अधिक यात्री थे. लेकिन यह ट्रेन जब 24 मई की सुबह दानापुर रेलवे स्टेशन पहुँची, तो यहाँ पहले से मौजूद कई यात्री जबरन इसमें चढ़ गए.
इस बीच पूर्वोत्तर राज्यों के यात्रियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की और इस बात को लेकर दोनों गुटों के बीच विवाद हो गया.
गुरुग्राम रेलवे स्टेशन से चली इस स्पेशल ट्रेन के स्लीपर कोच (एस-10) में यात्रा कर रही विदाफी लिंगदोह ने बीबीसी से कहा, "यह घटना सुबह क़रीब 5 बजे की है. उस समय हम लोग सो रहे थे. हमारी ट्रेन काफ़ी रुक-रुक कर चल रही थी. लेकिन हमें यह बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बुक की गई इस स्पेशल ट्रेन में रास्ते से दूसरे यात्री जबरन चढ़ जाएँगें. दानापुर रेलवे स्टेशन पर पहले से खड़े बड़ी संख्या में यात्री हमारी ट्रेन की बोगी में घुस आए थे. हमने उन लोगों को काफ़ी समझाया कि ये स्पेशल ट्रेन है और केवल पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के लिए है. लेकिन वे हमारी बात समझने को तैयार ही नहीं थे."
उन्होंने आगे बताया- "हमने स्टेशन पर खड़े पुलिसकर्मियों से भी मदद माँगी लेकिन कोई हमारी मदद के लिए नहीं आया. हमारे कुछ साथियों ने कोरोना वायरस और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के बारे में प्रवासियों को बताते हुए उन्हें ट्रेन से उतरने के लिए कहा तो वे गाली गलौच और धक्का-मुक्की पर उतर आए. ट्रेन में एक पल के लिए स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई थी कि हम सब लोग डर गए थे. क्योंकि वे काफ़ी संख्या में थे."
राजस्थान के जोधपुर स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही विदाफी इतना कुछ होने के बाद भी ट्रेन में जबरन चढ़ने वाले बिहार के प्रवासी लोगों को इस घटना के लिए ज़िम्मेदार नहीं मानती.
वो कहती हैं, "देश के कई शहरों में लॉकडाउन के कारण फँसे हर व्यक्ति को अपने घर जाना है. लेकिन उसके लिए उनके गृह राज्य को व्यवस्था करनी होगी. रेलवे प्रशासन को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इतने लंबे सफ़र पर निकले यात्रियों को रास्ते में कोई परेशानी न हो. अगर हमारी ट्रेन को जगह-जगह रोका नहीं गया होता तो यह घटना नहीं होती. आप सोचिए कोई बड़ी घटना हो जाती तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी होती."
इसी ट्रेन से यात्रा करने वाले 26 साल के आइबनजोपलान्ग कहते हैं, "हमारा दिन अच्छा था जो यह घटना बड़ी नहीं हुई और हम बच गए. दरअसल जिन लोगों को ट्रेन से उतार दिया गया था और जो लोग चढ़ नहीं पाए बाद में उन लोगों ने ग़ुस्से में ट्रेन पर काफ़ी पत्थर फेंके. कई कोच की खिड़कियों के शीशे टूट गए थे. वो हमें गालियां दे रहे थे और मारने की धमकी दे रहे थे. मैंने और हमारे कई साथियों ने मेघालय पुलिस के अधिकारियों और बाहर फँसे लोगों को लाने वाली मेघालय टीम को फ़ोन कर दिया था. हमारे साथ यात्रा कर रहीं लड़कियां काफ़ी डर गई थीं और कई रोने लगी थीं."
उन्होंने बताया, "सारे कोच में कई साथियों को मामूली चोटें भी आई थीं. ट्रेन में एक अजीब सा माहौल हो गया था. आप वीडियो को ध्यान से देखिए किस तरह लोग ट्रेन में जबरन घुस गए और सीटों पर क़ब्ज़ा कर बैठ गए. किसी भी कोण से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा था. हम सबकी जान जोखिम में आ गई थी. अगर रेलवे प्रशासन को रास्ते में इस तरह यात्रियों को चढ़ाना ही था तो स्पेशल ट्रेन का फिर मतलब क्या रहा."
मेघालय के रीभोई ज़िले के उमस्निंग के रहने वाले आइबनजोपलान्ग नई दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं और फ़िलहाल अपने ही गाँव के एक स्कूल में 14 दिनों के लिए क्वारंटीन पर हैं.
हालाँकि, दानापुर रेल मंडल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार इन तमाम आरोपों में रेल प्रशासन को बिल्कुल दोषी नहीं मानते.
समन्वय की कमी
रेलवे प्रशासन का पक्ष रखते हुए राजेश कुमार ने बीबीसी से कहा, "दरअसल दीमापुर तक जाने वाली श्रमिक स्पेशल ट्रेन के दानापुर पहुँचने से पहले एक और श्रमिक स्पेशल ट्रेन आई थी जिसमें 100 से 150 यात्री दानापुर उतरे थे. उन लोगों को कटिहार और खगड़िया जाना था और उन्हें रिसीव करने के लिए स्टेशन पर बिहार सरकार के अधिकारी मौजूद थे. राज्य सरकार के लोगों ने हमसे अनुरोध किया था कि जो दीमापुर जाने वाली अगली श्रमिक स्पेशल ट्रेन आ रही है उससे बिहार पहुंचे प्रवासी लोगों को आगे भेजा जाए और कटिहार और खगड़िया में ट्रेन का स्टॉपेज करवा दें."
रेलवे जनसंपर्क अधिकारी राजेश कुमार यहाँ तक कहते हैं कि बिहार सरकार ने दानापुर पहुँचे अपने यात्रियों को कटिहार और खगड़िया पहुँचाने के लिए बसों का इंतज़ाम किया था. लेकिन किसी कारण से बाद में बिहार प्रशासन ने अवगत कराया कि वे इन यात्रियों को बस से नहीं भेज पाएंगे.
वो कहते हैं, "जब दीमापुर जाने वाली ट्रेन दानापुर पहुँची तो प्लेटफॉर्म पर इंतज़ार कर रहे लोग उसमें चढ़ गए. स्टेशन पर बिहार प्रशासन के लोग मौजूद थे. यहाँ तक कि प्लेटफॉर्म पर खड़े यात्रियों को ट्रेन में चढ़ने के लिए माइक से घोषणा कर कहा गया. लेकिन ट्रेन के अंदर मौजूद यात्रियों ने इसका विरोध किया. उसके बाद दोनों गुटों के बीच यह घटना हुई. जबकि वहाँ पुलिस के लोग थे."
क्या पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के लिए अलग से बुक की गई स्पेशल ट्रेन में रास्ते से यात्रियों को चढ़ाया जा सकता है? इस सवाल का जवाब देते हुए राजेश कुमार ने कहा, "मैं इस सवाल का कोई आधिकारिक जवाब तो नहीं दे सकता. क्योंकि इन सारे मुद्दों को केंद्रीय गृह मंत्रालय देख रहा है. रास्ते में यात्री चढ़ाए जाएंगे या नहीं ये सारे फैसले संबंधित राज्य और गृह मंत्रालय के बीच की बात है."
दानापुर रेल मंडल के एक और अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "बिहार सरकार के अधिकारियों के साथ समन्वय की कमी के कारण यह घटना हुई है. जब बिहार पहुँच रहे प्रवासियों को उनके घर तक पहुँचाने के लिए बसों का इंतजाम किया गया था तो आनन-फानन में उन लोगों को दूसरी ट्रेन पर क्यों चढ़ाया गया."
'बयानबाज़ी करना ठीक नहीं'
इस पूरी घटना पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, "मैंने रेल मंत्री और बिहार सरकार के समक्ष ट्रेन से यात्रा करने वाले पूर्वोत्तर के लोगों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है. इसके साथ ही पूर्वोत्तर जाने वाली ट्रेनों के रूट की ओर अतिरिक्त आरपीएफ़ जवानों की टीम भेजी गई है. बिहार के डीजीपी ने मुझे आश्वासन दिया है कि वह व्यक्तिगत रूप से स्थिति की निगरानी करेंगे और सभी आवश्यक कार्रवाई करेंगे."
बिहार के दानापुर स्टेशन पर पूर्वोत्तर के लोगों के साथ हुई इस घटना का वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों समेत वरिष्ठ अधिकरियों ने तुरंत भारत सरकार और बिहार सरकार के अधिकारियों से संपर्क कर अपने यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का मुद्दा उठाया.
वहीं सोशल मीडिया पर बिहार के लोगों को लेकर हो रही बयानबाजी को पीड़ित यात्री पूरी तरह ग़लत मानते हैं.
विदाफी कहती हैं, "जो लोग ट्रेन में जबरन चढ़ गए थे या फिर जिन्होंने ग़ुस्से में पत्थर फेंके दरअसल वे लंबी दूरी से यात्रा कर आए थे और उन सभी थके-हारे लोगों को अपने घर पहुँचना था. इसमें किसी एक विशेष समुदाय के नाम पर बयानबाज़ी करना पूरी तरह ग़लत है. अगर इस पूरी घटना में किसी की ज़िम्मेदारी बनती है तो वह रेलवे प्रशासन की है."