अशक्त सैनिकों के 'इनवैलिड पेंशन' को लेकर हुआ विवाद, रक्षा मंत्रालय पर बढ़ा जांच का दवाब
नई दिल्ली। रक्षा मंत्रालय द्वारा अशक्त सैनिकों के लिए पेंशन लाभ जारी एक आदेश में कुछ अनधिकृत शब्दों के उपयोग ने कुछ विकलांग सैनिकों के लिए इनवैलिड पेंशन के दायरे सीमित होने से मंत्रालय को आदेश पर नए सिरे से समीक्षा करने के लिए मजबूर कर दिया है। फरवरी 2019 में पेंशन और पेंशनर्स कल्याण विभाग द्वारा जारी सरकारी अधिसूचना के अनुसार यह सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए था, जो सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद लागू हुआ था।
गौरतलब है रक्षा मंत्रालय गत 16 जुलाई को सशस्त्र सेना के उन जवानों को भी अशक्त पेंशन (invalid pension) देने की अनुमति दे दी थी, जिन्होंने 10 साल से कम सेवा दी है। हालांकि अभी सशस्त्र सेना के उन जवानों को इनवैलिड पेंशन दिए जाने का प्रावधान है, जिन्होंने 10 साल से अधिक की सेवा दी हो और जो किन्हीं ऐसे कारणों से आगे सैन्य सेवा के लिए अमान्य करार दिए जा चुके हैं जो सैन्य सेवा से संबद्ध नहीं हैं। 10 साल से कम सेवा वाले सैनिकों को अभी केवल इनवैलिड ग्रेच्युटी मिलती है।
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दरअसल, इनवैलिड पेंशन लाभ के लिए अशक्तता के लिए महत्वपूर्ण आधार शारीरिक या मानसिक दुर्बलता थी, जो 10 साल पूरा करने से पहले पुरूष या महिला को स्थायी रूप से सेवा के लिए अक्षम कर देती है, लेकिन रक्षा मंत्रालय के आदेश पर भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग (DESW) ने कहा है कि यह लाभ एक ऐसी विकलांगता के लिए दिया जाएगा, जो उन्हें सैन्य सेवा के साथ-साथ नागरिक बेरोजगारी में भी अक्षम कर देती है।
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इस पर सैन्य कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि आदेश में जोड़ा गया अतिरिक्त 'सिविल बेरोजगारी' शब्द रक्षा पेंशन विभाग के अधिकारियों को इनवैलिड पेंशन से इंकार करने का आधार देगा, क्योंकि सैन्य चिकित्सा बोर्ड विकलांग सैनिकों को एक प्रमाण पत्र प्रदान करते हैं, जो अधिकांश मामलों में बताते हैं कि वे 'नागरिक रोजगार के लिए फिट' हैं।
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हालांकि MoD ने स्वीकार किया कि वो मामले से अवगत हैं। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इसे हल करने की दृष्टि से जांच की जा रही है। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक आदेश पत्र का मसौदा तैयार करने वाले अधिकारियों द्वारा अधूरे शब्दों को बिना किसी अधिकार के रक्षा खातों में जोड़ दिए जाने से यह समस्या उत्पन्न हुई है।
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उल्लेखनीय है रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। जारी आदेश के मुताबिक ऐसे सैनिक, जिनकी सेवा 10 साल से कम की है और जिनके जख्मी होने या मानसिक कमजोरी के कारण उनकी सेवा आगे नहीं बढ़ाई गई हो या अमान्य किए गए हों और जिस कारण उसे स्थायी रूप से सैन्य सेवाओं एवं असैन्य पुनर्नियुक्ति से हटा दिया गया है, उन्हें इस फैसले से लाभ मिलेगा।
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