मोदी सरकार में सबसे निचले स्तर पर पहुंचा उपभोक्ताओं का भरोसा- RBI की रिपोर्ट
नई दिल्ली- शुक्रवार को जारी रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति के मुताबिक सितंबर महीनें में भारत में उपभोक्ताओं का विश्वास मोदी सरकार के पिछले 6 साल के कार्यकाल में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। आरबीआई की एक सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान स्थिति इंडेक्स (करेंट सिचुएशन इंडेक्स) चालू महीने में 89.4 तक पहुंच गया है, जो पिछले 6 वर्षों में सबसे बुरा है। बता दें कि इससे पहले सितंबर, 2013 में यह सबसे खराब स्तर पर गिरकर 88 तक पहुंच गया था। यही नहीं आरबीआई के मुताबिक भविष्य की संभावनाओं को लेकर भी लोगों की उम्मीदें कम हुई हैं।
6 साल में सबसे निचले स्तर पर उपभोक्ताओं का भरोसा
रिजर्व बैंक ने देश के बड़े शहरों में 5,000 लोगों के जवाब के आधार पर उपभोक्ता विश्वास सर्वे जारी किया है। यह सर्वे पांच आर्थिक मसलों पर उपभोक्ताओं की भावना को आंकता है, जिसमें- देश की आर्थिक स्थिति, रोजगार, मूल्य स्तर, आमदनी और खर्च शामिल होते हैं। ये सर्वे आरबीआई हर तीन महीने में एक बार करता है। मौजूदा सर्वे के मुताबिक सितंबर में उपभोक्ताओं का विश्वास मोदी सरकार के पिछले 6 साल के कार्यकाल में सबसे कम यानि 89.4 हो गया है। गौरतलब है कि इससे पहले यूपीए-2 के कार्यकाल में सितंबर, 2013 में यह 88 तक गिर गया था।
100 अंकों से नीचे आने पार निराशा के भाव का अंदाजा
सितंबर में हुए आरबीआई के सर्वेक्षण से जाहिर होता है कि मौजूदा हालत और भविष्य की उम्मीदें दोनों स्थिति को लेकर उपभोक्ताओं में असंतोष है। इस सर्वे में जब उपभोक्ताओं के विश्वास का ग्राफ 100 अंकों से ऊपर होता तो माना जाता है कि वे आशावादी हैं और उससे घटने पर उनमें निराशा की भावना का अंदाजा लगता है। 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले उपभोक्ता के विश्वास में निराशा का ही भाव था। जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो उपभोक्ताओं में विश्वास का माहौल बना और 2014 के सितंबर में उपभोक्ता विश्वास इंडेक्स 103.1 तक पहुंच गया। दिसंबर, 2016 तक उपभोक्ताओं का भरोसा आशावादी ही रहा और यह इंडेक्स 102 के आसपास रहा। लेकिन, नोटबंदी के प्रभाव के बाद यह नीचे आने लगा (यानि 100 से नीचे)। आगे करीब 30 महीने तक यही स्थिति रही।
भविष्य को लेकर भी असंतोष का भाव
इस साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उपभोक्ता विश्वास इंडेक्स ने फिर से ऊपर का रुख करना शुरू कर दिया था और मार्च में यह 104.6 तक पहुंच गया था, जो कि 2016 के दिसंबर के बाद सबसे ज्यादा था। लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद यह लगातार नीचे गिरा है। मसलन, मई में यह 97.3, जुलाई में 95.7 और सितंबर आते-आते 89.4 तक पहुंच गया है। यह अंक नोटबंदी के बाद के कई महीनों से भी नीचले स्तर पर है। यही नहीं भविष्य की संभावनाओं का इंडेक्स भी सितंबर में गिरकर 118 हो चुका है, जो कि जुलाई की तिमाही में 124.8 था। रिपोर्ट के मुताबिक ये गिरावट इसलिए आई है, क्योंकि आर्थिक स्थिति और रोजगार को लेकर लोगों का विश्वास कमजोर पड़ा है।
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