15 महीने के सीएम इंदिरा गांधी के ‘तीसरे पुत्र’ कमलनाथ की कांग्रेस कथा
नई दिल्ली। इंदिरा गांधी की तीन पीढियों के सबसे वफादार नेता कमलनाथ को आखिरकार मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा। इंदिरा परिवार की नजदीकी और अनुभव के कारण 2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बजाय उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन सिंधिया की बगावत ने कमलनाथ को अनाथ बना दिया। अब न इंदिरा गांधी हैं न उनके जमाने की कांग्रेस है। सो कमलनाथ को बचाने वाला कोई नहीं था। वर्ना एक वो भी समय था जब कमलनाथ के डूबते बिजनेस को बचाने के लिए संजय और इंदिरा गांधी ने दिन-रात एक कर दिया था। इंदिरा गांधी ने खुद कमलनाथ को अपना तीसरा पुत्र कहा था। एक व्यापारी घराने से आने वाले कमलनाथ, इंदिरा परिवार की नजदीकी के कारण ही राजनीति में बुलंदियों पर पहुंचे। लेकिन उन्हें इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी।
इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र !
1979 में चरण सिंह की सरकार के पतन के बाद जनवरी 1980 में लोकसभा का चुनाव हुआ था। कमलनाथ, संजय गांधी के जिगरी दोस्त थे। इंदिरा गांधी भी कमलनाथ को मानती थीं। 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से मैदान में उतार दिया। कमलनाथ की उम्र उस समय 34 साल ही थी और उन्हें संसदीय राजनीति का कोई अनुभव नहीं था। इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आने के लिए सावधानी के साथ चुनाव लड़ रहीं थीं। 1980 में चुनाव प्रचार के लिए इंदिरा गांधी जब छिंदवाड़ा आयीं तो उन्होंने कमलनाथ की जीत पक्की करने के लिए इमोशनल कार्ड खेल दिया। चुनावी सभा में उन्होंने एलान किया कि कमलनाथ उनके तीसरे बेटे हैं और आप सभी लोग इनको ही वोट दीजिए। जनता पार्टी टूट-फूट कर बिखर चुकी थी। मोरारजी देसाई और चरण सिंह के आपसी झगड़े की वजह से जनता पार्टी की सरकार ढाई साल में ही लस्त-पस्त हो गयी। जनता ने फिर इंदिरा गांधी को अपना समर्थन दिया। कमलनाथ सांसद बन गये।
कैसे आये इंदिरा परिवार के करीब?
कमलनाथ के पिता महेन्द्र नाथ कारोबारी थे। रुपये-पैसों की कोई कमी नहीं थी। महेन्द्र नाथ ने अपने पुत्र कमलनाथ को देश के सबसे महंगे और प्रतिष्ठित स्कूल, दून पब्लिक स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा। इस स्कूल में राज-महाराजा, मंत्री, आइएएस अफसर और धन कुबेरों के बच्चे ही पढ़ते थे। उस समय इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी भी यहीं पढ़ रहे थे। दून स्कूल में पढ़ाई के दौरान कमलनाथ और संजय गांधी में गहरी दोस्ती हो गयी। दून स्कूल से पासआउट होने के बाद कमलनाथ कॉलेज की पढ़ाई के लिए कोलकाता आ गये। तब उनके पिता अपना बिजनेस कानपुर से कोलकाता में शिफ्ट कर चुके थे। संजय गांधी दिल्ली लौट आये। दोनों अलग-अलग अलग शहर में रहने के बावजूद एक दूसरे से जुड़े रहे। कमलनाथ ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया था। वे शुरू में अपने पिता के व्यवसाय को ही आगे बढ़ाना चाहते थे। उस समय संजय गांधी कम आय वाले लोगों के लिए एक सस्ती कार बनाना चाहते थे।(मारुति कार उन्हीं के सपनों की उपज है।) 1971 में मारुति लिमिटेड का गठन हुआ जिसके पहले मैनेजिंग डायरेक्टर संजय गांधी थे। इस प्रोजेक्ट में सलाह मशविरा के लिए संजय गांधी अक्सर कमलनाथ को दिल्ली बुलाया करते थे। दिल्ली आने जाने से कमलनाथ और संजय गांधी की दोस्ती और गहरी हो गयी। कमलनाथ सीधे प्रधानमंत्री आवास आने-जाने लगे। उन्होंने इंदिरा गांधी का भी विश्वास जीत लिया।
संजय गांधी से दोस्ती का फायदा !
वरुण सेन गुप्त की किताब- लास्ट डेज ऑफ मोरारजी राज में इमरजेंसी और उसके बाद की राजनीति पर विस्तार से लिखा गया है। इमरजेंसी के समय आरोप लगा था कि कमलनाथ ने घाटे में चल रही अपनी कंपनी को उबारने के लिए संजय गांधी की दोस्ती का सहरा लिया था। आरोप के मुताबिक आपातकाल के समय कमलनाथ के पिता की कंपनी इएमसी लिमिटेड की माली हालत इतनी खराब हो गयी थी कि इसे चलाना मुश्किल हो गया था। कंपनी के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वह अपने कर्मचारियों का वेतन दे सके। तभी अचनाक इस कंपनी को कई टेंडर मिल गये। तब आरोप लगा कि सरकार की मेहरबानी से ऐसा हुआ था। 1977 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गयीं तो कमलनाथ की परेशानी बढ़ गयी। जनता पार्टी की सरकार बनी तो मोरारजी देसाई ने इएमसी लिमिटेड कंपनी को दिये ठेकों की जांच का आदेश दे दिया। जांच के लिए एक आयोग भी बना था।
कमलनाथ ने ऐसे निभायी दोस्ती
इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी और कमलनाथ साथ-साथ ही रहते थे। तब ये नारा लगता था- संजय गांधी के दो हाथ एक टाइटलर दूसरा कमलनाथ। 1977 में जब मोरारजी सरकार बनी तो इंदिरा परिवार संकटों में घिर गया। 1978 में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया था। मई 1979 में संजय गांधी एक विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। संजय गांधी को भी चोट आयी थी। कानून तोड़ने के आरोप में संजय गांधी को कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया । उस समय कमलनाथ पर कोई आरोप नहीं था। लेकिन कमलनाथ ने जानबूझ कर खुद को एक मामले में आरोपी बनवा लिया ताकि वे जेल में संजय गांधी से साथ रह सकें। कमलनाथ की इस बात ने इंदिरा गांधी को बहुत प्रभावित किया। परेशानियों से घिरीं इंदिरा गांधी उस समय संजय गांधी को लेकर बहुत फिक्रमंद रहती थीं। मानसिक यंत्रणा के दौर में कमलनाथ, संजय गांधी के साथ हरदम खड़े रहे। तभी से इंदिरा गांधी कमलनाथ को अपने घर का सदस्य मानने लगीं थीं।
सिख दंगे का आरोप
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिख समुदाय के खिलाफ दंगा भड़क गया था। उस समय कमलनाथ पर भी दंगा भड़काने का आरोप लगा था। कमलनाथ पर आरोप लगा था कि उन्होंने दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारा के पास लोगों की भीड़ को दंगे के लिए उकसाया था जिसमें दो सिखों को जिंदा जला दिया गया था। 2019 में गृह मंत्रालय की एसआइटी ने इस बंद मामले की फिर से जांच का आदेश दिया था। सिख दंगों में नाम आने की वजह से कमलनाथ कांग्रेस के लिए कमजोर कड़ी रहे हैं। 2016 में जब कमलनाथ को पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था तब सिखों ने भारी विरोध किया था। राजनीतिक नुकसान के डर से कांग्रेस ने बाद में कमलनाथ से ये जिम्मेदारी छीन ली थी। सवालों के घेरे में रहने के बाद भी कांग्रेस ने कमलनाथ को 2018 में मुख्यमंत्री बनाया था।
क्या इंदिरा गांधी की तर्ज पर नरेन्द्र मोदी भी विपक्ष को करना चाहते हैं नेस्तनाबूद?