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कांग्रेस को एक के बाद एक लग रहे हैं कई झटके, नेतृत्वविहीन पार्टी के कार्यकर्ता असमंजस में

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नई दिल्ली- राहुल गांधी द्वारा इस्तीफे का ऐलान किए हुए डेढ़ महीने से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस उनकी जगह दूसरा अध्यक्ष नहीं ढूंढ़ पाई है। वजह सिर्फ एक है कि गांधी परिवार से अलग अध्यक्ष की तलाशने होनी है, जिसकी शर्त खुद राहुल गांधी ने ही लगा रखी है। लेकिन, इस चक्कर में पार्टी धीरे-धीरे बिखरती जा रही है। कांग्रेस की केंद्रीय इकाई नए अध्यक्ष को लेकर उहापोह में है और प्रदेश इकाइयों का संगठन पर से कंट्रोल पूरी तरह से खत्म होता जा रहा है। सबसे भयावह असर तेलंगाना, कर्नाटक और गोवा जैसे राज्यों में सामने आया है। दो राज्यों में तो उसके पास गिने-चुने विधायक बच गए हैं और एक राज्य में सरकार है, तो वो भी अंतिम सांसें गिन रही है। सवाल है कि इस सबका जिम्मेदार कौन है? अगर हालात जल्द नहीं संभाले गए तो बाकी राज्यों में भी ऐसी ही स्थिति पैदा हो सकती है।

तेलंगाना में लगा पहला बड़ा झटका,नहीं संभला नेतृत्व

तेलंगाना में लगा पहला बड़ा झटका,नहीं संभला नेतृत्व

संगठन के लिहाज से तेलंगाना और गोवा में कांग्रेस का झटका बहुत ही असहनीय है। तेलंगाना में पार्टी के 19 में से 12 विधायक लोकसभा चुनाव के बाद टीआरएस में विलय कर चुके हैं और एक और विधायक राजगोपाल रेड्डी घोषित तौर पर बीजेपी में घुसने के लिए कानूनी विकल्प खोज रहे हैं। वहीं हजूराबाद के विधायक और प्रदेश अध्यक्ष एन उत्तम कुमार रेड्डी नालगोंडा से सांसद बनने के बाद इस्तीफा दे चुके हैं। यानी पार्टी के पास राजगोपाल रेड्डी को मिलाकर भी सिर्फ 6 ही विधायक बच गए हैं और उसे मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा भी गंवाना पड़ गया है। अब वहां कांग्रेस से ज्यादा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के पास 7 विधायक हैं। यही कारण है कि बागी एमएलए राजगोपाल रेड्डी कहते हैं कि "कांग्रेस पार्टी डूबता हुआ जहाज है" और वो इन हालातों के लिए सीधे राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। क्योंकि, उनके मुताबिक पार्टी को बचाने के लिए वे वक्त पर कोई ठोस पहल नहीं कर पाए।

गोवा में कांग्रेस को लगा सबसे बड़ा झटका

गोवा में कांग्रेस को लगा सबसे बड़ा झटका

2017 में गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 17 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि बीजेपी के पास महज 13 विधायक थे। लेकिन, तब से लेकर अभी तक वहां बीजेपी की ही सरकार है। छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर भाजपा अब तक साधारण बहुत वाली सरकार चला रही थी। कांग्रेस के दो विधायक पहले ही पार्टी का साथ छोड़ चुके थे। बुधवार को बाकी बचे 15 विधायकों में से 10 विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी में विलय करने की चिट्ठी सौंप दी। बीजेपी में विलय करने वाले कांग्रेसी गुट की अगुवाई चंद्रकांत कावलेकर ने की, जिन्हें कांग्रेस ने गोवा विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया था। जैसे 2017 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी कांग्रेस के नेता सोए रह गए और बीजेपी ने बाजी मार ली, उसी तरह 10 जुलाई, 2019 को 10 विधायकों के बीजेपी में हुए विलय का कांग्रेस नेतृत्व को भनक तक नहीं लग सका। हैरानी की बात ये है कि बीजेपी मनोहर पर्रिकर के रहते गोवा में जो राजनीतिक गुलाटी नहीं लगवा पाई, वह मौजूदा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कर दिखाया। सौ बात की एक बात ये है कि कांग्रेस के मैनेजर कहां पड़े थे? क्या वे इंडिया-न्यूजीलैंड के मैच में इतने मशगूल हो गए थे कि एक राज्य में पार्टी के हो रहे सफाए पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा? कांग्रेस के पास गोवा में इतने विधायक थे, कि वहां कभी भी बीजेपी सरकार का तख्तापलट हो सकता था। लेकिन, अभी भाजपा ने वहां पूरा सियासी सीन ही बदल दिया है।

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कर्नाटक में गठबंधन सरकार को बचाना मुश्किल

कर्नाटक में गठबंधन सरकार को बचाना मुश्किल

मई 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस 78 सीटें जीतकर जेडीएस के 37 विधायकों के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही थी। जबकि, बीजेपी 104 सीटें जीतकर भी सत्ता से बेदखल हो गई। तब यहां पर कांग्रेस के मैनेजरों ने भाजपा से गोवा का बदला ले लिया था। लेकिन, सिर्फ एक साल में कांग्रेस विधायक दल में ऐसा क्या बवंडर उठा कि 78 में से 13 विधायक अपनी विधायकी छोड़ने पर आमादा हैं। अब कांग्रेस को वहां एचडी कुमारस्वामी की सरकार बचानी मुश्किल पड़ रही है। अगर कांग्रेस के 13 और जेडीएस के 3 विधायक विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने में कामयाब हो गए, तो कर्नाटक की गठबंधन सरकार बचनी नाममुकिन है। सवाल है कि मई 2018 में जिस विपक्षी एकता का ढोल पीटकर ये सरकार बनाई गई थी, उसे एक साल के भीतर किसकी नजर लग गई? पॉलिटिकल सर्किल में यह बात पहले से ही लगभग तय मानी जा रही थी कि लोकसभा चुनावों के बाद कर्नाटक की सरकार बचनी मुश्किल है। लेकिन, क्या तब कांग्रेस नेतृत्व ने इस संकट से उबरने की कोई सार्थक पहल शुरू की? सच तो ये है कि जब आग अपने घर में लगी हो (टॉप लीडरशिप पर उथल-पुथल), तो पड़ोसियों (प्रदेश इकाइयों) की चिंता कौन करेगा!

राहुल तो 'मजे' ले रहे हैं, तो पार्टी को बचाएगा कौन?

राहुल तो 'मजे' ले रहे हैं, तो पार्टी को बचाएगा कौन?

बुधवार को राहुल गांधी ने अपने चुनाव क्षेत्र अमेठी में एक बहुत ही बड़ी बात कह दी। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि, "आप जानते हो कि अपोजिशन का काम करने में सबसे ज्यादा मजा आता है, आसान होता है....।" पता नहीं कि उन्होंने सोच-समझकर ये बातें कहीं या अनजाने में, लेकिन अगर गहराई से देखें, तो इसमें कांग्रेस पर आए चौतरफा संकट का राज छिपा दिखता है। पहली बात कि राहुल ने कहा कि विपक्ष का काम करने में ज्यादा मजा आता है। सवाल उठता है कि क्या वे पिछले पांच साल तक विपक्ष में रहकर मजे ही ले रहे थे? दूसरी बात उन्होंने कही है कि विपक्ष का काम आसान होता है। अगर, राहुल गांधी और कांग्रेस के तमाम बड़े नेता इन शब्दों की गहराई को समझने की कोशिश करेंगे, तो शायद उन्हें पार्टी पर छाए मौजूदा अभूतपूर्व संकट का कोई हल मिल सकता है। क्योंकि, इस वक्त कांग्रेस में सबसे ज्यादा असमंजस में कोई है, तो कांग्रेस का साधारण कार्यकर्ता है। अगर उन्हें इस समय कोई सही रास्ता दिखाने वाला नहीं मिला, तो पार्टी को इसकी और ज्यादा भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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English summary
Congress seems many shocks one after the other, workers of the leaderless party in dilemma
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