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कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी, विधानसभा चुनावों में एक बार फिर सामने पार्टी नेताओं की गुटबाजी

By विनोद कुमार शुक्ला
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नई दिल्ली। क्या पार्टी नेताओं के बीच आपसी लड़ाई कांग्रेस को एक बार फिर पीछे धकेल देगी? छत्तीसगढ़ विधानभा चुनाव में जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच बिल्कुल बराबर की दिख रही है तो वहीं कुछ सीटों पर समीकरण गड़बड़ा गया है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह जो सामने आ रही है वो कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बीच आंतरिक कलह है। बता दें कि 20 नवंबर छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी के लिए स्थितियां लगभग समान है। इन राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। लेकिन छत्तीसगढ़ में शुरू से ही मुकाबला टक्कटर का देखने को मिला है। ऐसे में एक बार फिर टक्कर का मुकाबला देखने को मिल रहा है।

मुख्यमंत्री के लिए चार चेहरे

मुख्यमंत्री के लिए चार चेहरे

लेकिन कांग्रेस पार्टी पर नजर डाले तो इस बार मुख्यमंत्री के लिए चार चेहरे सामने आए हैं जो अपने-अपने स्तर से प्रचार में लगे हुए हैं। इनमें सबसे पहला नाम टीएस सिंह देव का है जो कि विधानसभा में विपक्ष का नेता भी है। टीएस सिंह देव ने राज्य में अपनी छवि को बढ़ावा देने के लिए पीआर कंपनी हायर कर रखी है। लेकिन लेकिन इन सभी नेताओं को पीछे छोड़ने के पीछे जाति भी मायने रख रही है। टीएस सिंह देव सोशल मीडिया के जरिए अपने लोकप्रियता को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। ताकि कांग्रेस अगर चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी मजबूत हो।

आपसी लड़ाई से पार्टी हो रही कमजोर

आपसी लड़ाई से पार्टी हो रही कमजोर

जहां तक छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी का सवाल है तो यहां पर नेताओं के बीच आपसी लड़ाई ने पार्टी को कमजोर कर दिया। यही वजह रही कि कांग्रेस की ओर से कोई ऐसा नेता नजर नहीं आता जो रमन सिंह को टक्कर दे सके। डॉ रमन सिंह 15 साल मुख्यमंत्री हैं ओर उनके खिलाफ जनता में उतनी रोष नहीं है। वहीं छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेश बघेल हैं जिन्होंने रमन सरकार के खिलाफ सबसे सक्रिय रहे हैं। लेकिन भक्तचरण दार और सांसद ताम्रध्वज साहू जैसे नेताओं को संघर्ष करना पड़ रहा है।

मुख्यमंत्री का पद हासिल करने की जुगत में नेता

मुख्यमंत्री का पद हासिल करने की जुगत में नेता

ये सभी नेता न केवल राज्य में स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं बल्कि मुख्यमंत्री के पद के लिए दावा करने के लिए किसी भी तरह से जीत दर्ज करने की जुगत में लगे हुए हैं। इसलिए राज्य में समन्वय की पूरी कमी है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी कम या ज्यादा लेकिन स्थिति ऐसी ही है। पार्टी के शिर्ष नेता आपस में ही एक दूसरे के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यहां अब वो समय आ गया जहां महत्वपूर्ण है कि मतदातओं को बूथ तक लाया जाए।

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English summary
Congress once again embroiled in the same old problem of infighting in poll-bound states
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