MP-गुजरात में दो सीटें गंवा रही कांग्रेस यहां ले सकती है भाजपा से बदला
नई दिल्ली- 19 जून को राज्यसभा की 18 सीटों के लिए चुनाव होने जा रहा है। ये वो सीटें हैं, जहां कोरोना लॉकडाउन के चलते मार्च में चुनाव स्थिगित कर दिए गए थे। इसके अलावा 6 और सीटों पर भी उसी दिन चुनाव हो रहे हैं, जिन सीटों के सांसदों का कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है। इस चुनाव में गुजरात की एक सीट को लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच भयंकर सियासी घमासान मचा हुआ है। वहां तो तीन साल पुराने अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव वाली कहानी याद दिलाई जा रही है। जबकि, मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने एक्स्ट्रा उम्मीदवार उतारकर अपने लिए खुद ही एक मुसीबत मोल ले ली है। एक तीसरा राज्य भी है- कर्नाटक। यहां भी बदले समीकरण में भाजपा कांग्रेस पर भारी पड़ रही है। लेकिन, फिर भी प्रदेश में कांग्रेस के पास वह तुरुप का इक्का है, जिससे वह बीजेपी से थोड़ा ही सही बदला जरूर ले सकती है।
कर्नाटक में कांग्रेस ने नहीं उतारा दूसरा उम्मीदवार
कर्नाटक में 19 जून को राज्यसभा की 4 सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं। इन चार में से दो पर अभी कांग्रेस का कब्जा था, जबकि एक सीट भाजपा के कब्जे में थी और एक सीट जेडीएस के पास है, जिसका कार्यकाल 25 जून को खत्म हो रहा है। बदले समीकरण में भाजपा दो सीटों पर आसानी से अपने उम्मीदवारों को जीत दिला सकती है। जबकि, कांग्रेस के पास भी एक उम्मीदवार को वोट देने के अलावा भी सरप्लस वोट बच रह जाने हैं। दरअसल, कर्नाटक में एक उम्मीदवार को जीत के लिए 44 विधायकों का वोट चाहिए, जबकि 224 विधायकों वाले सदन में कांग्रेस के पास 65 वोट हैं। लेकिन, यहां पार्टी गुजरात और मध्य प्रदेश वाली स्थिति से परहेज कर रही है और उसने सरप्लस वोट होने के बावजूद भी सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे को ही अपना इकलौता उम्मीदवार बनाया है। यानि, कांग्रेस यहां अपने सरप्लस वोट से भाजपा-विरोधी उम्मीदवार की राह आसान करने वाली है।
एमपी-गुजरात का कर्नाटक में बदला ?
कर्नाटक में भाजपा के पास 117 विधायक हैं। यानि दो सीट पर उसकी जीत तो पक्की है ही, गुजरात की तर्ज पर देखें तो भाजपा यहां भी अपने तीसरे उम्मीदवार पर दांव लगा सकती थी। लेकिन, कांग्रेस के परहेज ने शायद बीजेपी को संभलकर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। क्योंकि, कर्नाटक बीजेपी यूनिट ने केंद्रीय लीडरशिप को तीन उम्मीदवारों के नामों की सिफारिश भेजी थी, लेकिन पार्टी के संगठन मंत्री बीएल संतोष ने अपनी ओर से सिर्फ दो ही नामों पर मुहर लगाए हैं। पिछड़े सविथा समुदाय के अशोक गस्ती और लिंगायत समुदाय के एरन्ना कडाडी। उन्होंने प्रदेश यूनिट के तीनों नाम रिजेक्ट कर दिए हैं। वैसे फिलहाल 34 विधायकों के बावजूद जेडीएस के उम्मीदवार और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जीत पक्की लगती है, जिन्हें अब कांग्रेस के समर्थन के ऐलान की शायद औपचारिकता ही बाकी रह गई है। शायद यही वजह है कि 29 सरप्लस वोट होने के बावजूद भी भाजपा ने यहां तीसरे उम्मीदवार उतारने का जोखिम शायद नहीं लिया है। हालांकि, राज्य में नामांकन भरने की आखिरी तारीख 9 जून है, ऐसे में अंतिम समय में कुछ नया सियासी गुल खिल जाय, इस संभावना से भी साफ इनकार नहीं किया जा सकता।
गुजरात में क्या हो रहा है ?
गुजरात में भी 19 जून को राज्यसभा की चार सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। 182 विधायकों वाले सदन में अभी भाजपा के पास 103 विधायक हैं, जिसके आधार पर वह राज्यसभा की दो सीटें आसानी से जीत सकती है। लेकिन, उसने अपने तीन-तीन उम्मीदवारों अभय भारद्वाज, रामीलाबेन बारा और नरहरि अमीन को मैदान में उतार रखा है। भाजपा का हौसला इसलिए बढ़ा हुआ है कि कांग्रेस वहां लगातार झटके पर झटके खा रही है। मार्च से लेकर अबतक उसके 8 विधायक विधानसभा की सदस्यता छोड़ चुके हैं। तीन विधायकों ने तो पिछले ही हफ्ते विधायकी छोड़ी है। यही वजह है कि कांग्रेस अब अपने बचे हुए 65 विधायकों को राजस्थान में लेकर इधर-उधर भटक रही है। क्योंकि, अब भाजपा को तीसरी सीट पर जीत के लिए सिर्फ दो विधायकों के समर्थन की दरकार है। जबकि, कांग्रेस ने यहां दो दिग्गजों शक्तिसिंह गोहिल और भरत सिंह सोलंकी को मैदान में उतार रखा है। मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस का कोई एक ही उम्मीदवार राज्यसभा जाता दिखा रहा है।
मध्य प्रदेश का भी गणित बिगड़ चुका है
मध्य प्रदेश में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए चुनाव हो रहे हैं। लेकिन, इसके लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ने दो-दो उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और सुमेर सिंह सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है और 107 विधायकों वाली बीजेपी के दोनों ही उम्मीदवारों की जीत लगभग पक्की है। क्योंकि, बसपा के 2, सपा के 1 और 4 निर्दलीय विधायकों में से ज्यादातर के वोट सत्ताधारी दल के समर्थन में ही जाने के आसार बताए जा रहे हैं। जबकि, 22 विधायकों के विधायकी छोड़ने के बाद कांग्रेस के पास महज 92 विधायक ही बचे हुए हैं। ऐसे में पार्टी के दो में से एक उम्मीदवार दिग्विजय सिंह और दलित नेता फूल सिंह बरैया में से एक की जीत तो पक्की है, लेकिन सवाल उठता है कि दोनों में पार्टी आखिर वक्त में किसे दिल्ली तक भेजेगी। क्योंकि, भाजपा ने दलित कार्ड खेलकर कांग्रेस में खलबली मचा रखी है; और दिग्विज सिंह के नाम पर खुद कांग्रेस में ही विरोध के सुर फूट रहे हैं।