अबकी बार निशाने पर मोदी नहीं बीजेपी सरकार, कांग्रेस ने बदली रणनीति
नई दिल्ली- कांग्रेस में जैसे-जैसे हार पर मंथनों का दौर चला है, वैसे-वैसे उसे अपनी गलतियां महससू हो रही हैं। पार्टी के नेता अब मान रहे हैं कि इतने आक्रामक प्रचार अभियान के बावजूद जनता ने उसे नकारा है, तो कहीं न कहीं उनकी रणनीति में चूक जरूर हुई है। ऐसी जानकारियां सामने आ रही हैं, जिसके मुताबिक पार्टी में अंदरखाने यह बात कबूल की जा रही है कि प्रधानमंत्री मोदी और मोदी सरकार को सीधे निशाना बनाना कांग्रेस (Congress) को बहुत महंगा पड़ा है। इसलिए, पार्टी अब पार्टी ने सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने का फैसला किया है।
कांग्रेस अब ये नहीं करेगी
लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अगुवाई में बीजेपी (BJP) की अप्रत्याशित जीत और अपनी पार्टी की करारी हार देखने के बाद कांग्रेस (Congress) ने पीएम मोदी और उनकी सरकार पर सीधे हमला करने से बचने की रणनीति बनाई है। अब कांग्रेस मोदी और मोदी सरकार को सीधे घेरने की बजाय बीजेपी (BJP) या बीजेपी सरकार कहकर घेरने की नीति अपनाएगी। तथ्य ये है कि पिछली सरकार में कांग्रेस (Congress) का मामूली कार्यकर्ता भी किसी स्थानीय मुद्दों के लिए भी सीधे प्रधानमंत्री मोदी या मोदी सरकार पर ही हमला करता था। यही नहीं अब कांग्रेस किसी व्यक्ति पर निजी हमला करने से भी बचेगी। अब वह निजी हमला तभी करेगी, जब ऐसा कोई निजी मामला होगा, जिस पर बात करना जरूरी होगा।
तो कांग्रेस ने माना राहुल ही रहे हार के जिम्मेदार!
नतीजों के बाद कांग्रेस (Congress) कहीं न कहीं मान रही है कि पीएम मोदी (Narendra Modi) पर सीधे हमले से पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है। राफेल (Rafale fighter jets) मामले पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मोदी के खिलाफ खुद 'चौकीदार चोर है' कैंपेन को लीड किया था। इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को भी सार्वजनिक तौर पर तोड़-मरोड़कर पेश किया था, जिसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा था। लेकिन, वे फिर भी मानने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने ने तो पीएम मोदी की छवि को डिस्मेंटल (ध्वस्त) कर देने तक के दावे कर दिए थे। उन्होंने पार्टी में मीडिया संभालने की जिन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी यानी रणदीप सुरजेवाला ने भी बिना किसी ठोस आधार के मोदी को निशाना बनाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा था। अब कांग्रेस को इन गलतियों का एहसास हो रहा है, तो इसका मतलब कहीं न कहीं अनौपचारिक तौर उसके नेताओं को लग रहा है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की रणनीति ही पार्टी को ले डूबी। अब कांग्रेस (Congress) को लग रहा है कि पीएम मोदी (PM Modi) और उनके नेतृत्व में बीजेपी (BJP) जिस तरह से बहुत बड़े मैनडेट के साथ जीत कर आई है, उसके चलते माहौल उनके पक्ष में है। ऐसे में अगर नकारात्मक हमला या घेराव होता है तो कांग्रेस को और भी नुकसान होने का खतरा है।
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ऐसे मसलों को उठाने पर जोर देगी कांग्रेस
जानकारी मिल रही है कि कांग्रेस (Congress) अब आम लोगों के जीवन या उनसे जुड़े मसले ही उठाएगी। वह जनता के बीच में खुद को सकारात्मक विपक्ष के रूप में पेश करेगी। कांग्रेस के लोग अब मानते हैं कि अब समय तू-तू मैं-मैं का नहीं रहा। पार्टी को संसद के भीतर और संसद के बाहर जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर नजर आना होगा। उसे जनता से जुड़ी असली समस्याओं को उठाना होगा।
बदली रणनीति पर चलना आसान नहीं
कांग्रेस (Congress) के भीतर जो सकारात्मक विपक्ष वाले विचार पैदा हुए हैं, वह वक्त की जरूरत है ही। लेकिन, कांग्रेस इस नीति पर कितने दिन कायम रह पाएगी, यह बहुत बड़ा सवाल है। 2014 में मोदी को तीन दशक बाद पूर्ण बहुमत मिला था और कांग्रेस ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर पहुंच गई थी। लेकिन, शुरुआती चिंतन-मनन के बाद पार्टी के नेता ट्रैक से उतर गए। मोदी की अगुवाई में बीजेपी (BJP) तेजी से उन इलाकों में भी बढ़ती गई, जहां कभी कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होता था। लेकिन, कांग्रेस (Congress) सबक लेने के लिए तैयार नहीं हुई। उसे कर्नाटक विधानसभा में हार मिली, मोदी के खिलाफ सारे नरेटिव सेट करने के बावजूद भी गुजरात विधानसभा चुनाव में वहां की जनता ने मोदी नाम पर भरोसा कायम रखा, लेकिन कांग्रेस नहीं संभली। मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनावों में मोदी की वजह से ही बीजेपी कांग्रेस से उखड़ नहीं पाई। छत्तीसगढ़ में तीन टर्म तक सरकार चलाने के बाद रमन सिंह सरकार एंटी-इंकम्बेंसी के चलते चली गई। लेकिन, कांग्रेस और उसके सिपहसलारों ने मान लिया कि मोदी का जादू खत्म हो गया और राहुल गांधी 'तुरूप का इक्का' साबित हो रहे हैं। अगर कांग्रेस ने पीछे हुए इन सभी चुनावों का तथ्यों पर आधारित विश्लेषण करके लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाई होती, तो शायद उसे आज वह दिन नहीं देखना पड़ता जो उसे देखना पड़ रहा है। ऐसे में देखने वाली बात है कि राहुल गांधी और उनकी टीम कब तक सकारात्मक विपक्ष की भूमिका में नजर आते हैं? क्योंकि, अभी भी वो 52 सांसदों के साथ भी इंच-इंच लड़ने की बात कर रहे हैं। क्या विपक्ष में रहने का मतलब सिर्फ लड़ना होता है या वह सरकार की गाइड की भूमिका भी तो निभा सकता है। ऐस में वाकई अगर इसबार कांग्रेस में यह बदलाव आ गया, तो भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बहुत ही शुभ संकेत होगा।