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पंजाब से पहले कांग्रेस ने गुजरात में खेला था युवाओं पर दांव, कैसे फेल हुआ ? जानिए

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अहमदाबाद, 26 जुलाई: कांग्रेस में अब पूरी तरह से राहुल गांधी और उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की चलती दिख रही है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी सिर्फ अपने बच्चों के विचारों के मुताबिक मुहर लगाती नजर आ रही हैं। जाहिर है कि इसके चलते पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की जगह उन नेताओं को तरजीह मिलने लगी है, जो दोनों भाई बहनों के ज्यादा भरोसेमंद हैं। पंजाब में सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की बात को पूरी तरह से खारिज करके नवजोत सिंह सिद्धू पर दांव खेलना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कैप्टन ने सिद्धू के प्रभार संभालने के दौरान कहा था कि जब वे पैदा हुए थे, उस वक्त अमरिंदर बॉर्डर पर थे। यानी उम्र में अमरिंदर के सामने सिद्धू काफी छोटे हैं। पंजाब के बाद राजस्थान से भी संकेत मिल रहे हैं कि वहां भी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच के टकराव को खत्म करने के लिए युवा पायलट को अहम जिम्मेदारी देने की तैयारी चल रही है। यानी कांग्रेस अब युवा नेताओं को आगे बढ़ाना चाह रही है। लेकिन, अगर गुजरात को देखें तो वहां कांग्रेस की यह रणनीति बुरी तरह फेल हो चुकी है।

पंजाब में कांग्रेस का नया प्रयोग!

पंजाब में कांग्रेस का नया प्रयोग!

पंजाब में कांग्रेस ने 79 वर्षीय मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को तरजीह न देकर, 57 साल के नवजोत सिंह सिद्धू के हाथों में पार्टी की कमान सौंपी है। जाहिर है कि पार्टी आलाकमान को सिद्धू के प्रति भरोसा है कि वह 2022 में विधानसभा चुनाव निकाल लेने में कामयाब हो जाएंगे। कहने के लिए तो सीएम के तौर पर अगुवाई कैप्टन के हाथों में है, लेकिन दो साल की खींचतान के बाद जिस तरह से सिद्धू को हाई कमान का आशीर्वाद देकर बिठाया गया है, उससे साफ है कि पार्टी उन्हीं की अगुवाई में चुनाव लड़ेगी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की तिकड़ी के इस फैसले के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि उन्हें बुजुर्ग 'कैप्टन' की जगह युवा 'बल्लेबाज' पर ज्यादा यकीन है। लेकिन, यदि पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रयोग को देखें तो इस कोशिश में वह पूरी तरह से फेल हो चुकी है।

गुजरात में फेल रहा है कांग्रेस का युवा वाला दांव

गुजरात में फेल रहा है कांग्रेस का युवा वाला दांव

2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को गुजरात में तीन युवा नेताओं का साथ मिला था- ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर, दलित ऐक्टिविस्ट जिग्नेश मेवानी और पाटीदारों के हाई प्रोफाइल युवा नेता हार्दिक पटेल। राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस कैडर ने चुनावों में इसे खूब प्रचारित-प्रसारित किया था। लेकिन, पहले ही चुनाव में पार्टी के लिए ये तीनों नेता मोटे तौर पर फिसड्डी ही साबित हुए। आज की तारीख में उत्तर गुजरात के फायरब्रांड ओबीसी नेता अल्पेश ठाकुर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस के लिए प्रदेश में उसके समर्थित निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी का योगदान शून्य के बराबर है। सबसे बड़ा नाम हार्दिक पटेल का है, जिन्हें पिछले साल गुजरात में कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था, वो भी पार्टी के लिए अभी तक अपने नेतृत्व का हुनर दिखा पाने में नाकाम साबित हुए हैं।

कांग्रेस के सीन से गायब दिख रहे हैं हार्दिक

कांग्रेस के सीन से गायब दिख रहे हैं हार्दिक

गुजरात में अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस के पास वहां नेतृत्व का खालीपन नजर आ रहा है। इस साल की शुरुआत में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में पार्टी की भद पिटने के बाद प्रदेश अध्यक्ष अमित चावड़ा और नेता विपक्ष परेश धनानी लगातार तीसरी बार अपना इस्तीफा सौंप चुके हैं। राज्यसभा सांसद और पार्टी के प्रदेश प्रभारी राजीव सातव की कोरोना की दूसरी लहर में हुई मौत ने इस संकट को और ज्यादा गहराया हुआ है। महंगाई से लेकर पेगासस के मुद्दे पर पार्टी कार्यकर्ताओं को गोलबंद करना चाहती है। मन से हो या बेमन से, चावड़ा और धनानी अपनी ओर से पूरा जोर लगाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल का गायब रहना कार्यकर्ताओं में संदेह पैदा कर रहा है।

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क्या आम आदमी पार्टी में जाएंगे हार्दिक पटेल ?

क्या आम आदमी पार्टी में जाएंगे हार्दिक पटेल ?

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं जाहिर होने देने की गुजारिश करते हुए कहा है कि 'दो दशकों से एक परंपरा चल पड़ी है कि बाहर से नेताओं को ले लेते हैं। हमें थोड़ी भी सफलता मिलती है तो फायदा वो उठा लेते हैं और मौका मिलते ही निकल लेते हैं। इससे जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाता है।' एक और नेता का कहना है कि हार्दिक पटेल ने तो 2015 के पाटीदार आंदोलन से अपने पक्ष में एक लहर बनाई थी। लेकिन, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी ने तो कांग्रेस में आकर सिर्फ लाभ ही उठाया है। आज की तारीख में सच्चाई ये है कि पटेल के नजदीकी लोग भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की झाड़ू थामने लगे हैं। ऐसे में हार्दिक की चुप्पी पर संदेह उठना स्वाभाविक है। अटकलें हैं कि वह भी मौके के इंतजार में हो सकते हैं। हालांकि, खुद हार्दिक ने ईटी से बातचीत में इस तरह की संभावनाओं को फिलहाल सिरे से खारिज कर दिया है।

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English summary
Before Navjot Singh Sidhu, Congress had played bets on Hardik Patel, Jignesh Mevani and Alpesh Thakore in Gujarat too, the party completely failed
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