राजनीतिक रूप से पिटे हुए चेहरों का आश्रय गृह बनता जा रहा है कांग्रेस
बेंगलुरू। 100 वर्ष पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वर्तमान समय में बेहद ही खराब दौर से गुजर रही है। नेतृत्व की कमी से जूझ रही कांग्रेस को राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद एक नेता नहीं मिल सका है, जिसे वो पार्टी की कमान सौंप सकें। अंतरिम अध्यक्ष चुनी गईं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की उम्र और सेहत भी वैसी नहीं रही जैसा नेतृत्व कांग्रेस और यूपीए गठबंधन को वर्ष 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी की ओर से पार्टी को मिला था। 2014 से पहले पूरे एक दशक तक पार्टी की बागडोर संभालने वाली सोनिया गांधी अब तक 72 वर्ष की हो चुकी हैं और उनका स्वास्थ्य भी अब पहले जैसा नहीं रहा है।
राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद अब कांग्रेस में ऐसा कोई काबिल नेता उभरकर सामने नहीं आ सका है, जिसमें पार्टी एक सूत्र में चलाने का माद्दा हो। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद सीधा अध्यक्ष चुनने के बजाय अंतरिम अध्यक्ष चुनना पड़ा। क्योंकि निकट महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी।
पार्टी किसी ऐसे चेहरे को पार्टी की कमान सौंपने को कतई तैयार नहीं है, जिससे पार्टी में टूट की संभावना को बल मिले। परिणाम स्वरूप सोनिय गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने तीनों विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्ण्य किया है। इसका एक सीधा फायदा यह होगा कि पार्टी का मुखिया गांधी परिवार से होने से पार्टी में आसन्न टूट की संभावना झीण हो जाएगी और विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस को किसी भी राज्य में आंशिक सफलता भी मिल गई तो कार्यकर्ताओं को शांत करने में सहूलियत होगी और कांग्रेस अध्यक्ष चुनने में भी आसानी होगी।
कांग्रेस में काबिल और युवा चेहरों की कमी नहीं है, लेकिन कांग्रेस किसी बाहरी को पार्टी की कमान सौंपने के जोखिम से अच्छी तरह से वाकिफ है। इनमें राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट, महाराष्ट्र के युवा नेता मिलिंद देवड़ा, एमपी कांग्रेस में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और यूपी के युवा नेता जितिन प्रसाद जैसे अन्य सक्षम नेता शामिल हैं।
लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी युवा चेहरों के हाथ में कमान देने की इच्छुक नहीं है। यह इससे समझा जा सकता है कि जब कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के विकल्प में एक नए अध्यक्ष चुनने की कवायद चल रही थी तब एक चेहरा रेस में सबसे आगे चल रहा था वो चेहरा था 90 वर्षीय वयोवृद्ध नेता मोतीलाल वोरा का।
100 वर्षीय कांग्रेस की कमान जब 90 वर्षीय मोतीलाल वोरा को सौंपने की कवायद चल रही थी तो सबसे बड़ा सवाल यही उठा था कि क्या कांग्रेस के पास काबिल और युवा नेताओं की कमी है, जो कांग्रेस बूढ़ों पर पार्टी की कमान सौंपने जा रही है। अंततः काबिलियत पर गांधी परिवार भारी पड़ गया। मोतीलाल वोरा को पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाया गया।
पार्टी ने युवा पर अनुभव को तरजीह देते हुए सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाकर एक साथ दो तीन साधन की कोशिश जरूर कर ली। एक, सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपने से पार्टी पर संभावित टूट का खतरा फिलहाल टल गया है। दूसरा, तीनों विधानसभा चुनाव में से पार्टी अगर एक भी राज्य की सत्ता में वापसी कर पाई तो पार्टी में नई ऊर्जा का संचार होगा और भविष्य में गांधी परिवार के खिलाफ जाकर टूट की संभावना खत्म हो जाएगी।
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कांग्रेस में लगातार हो रही है पिटे हुए चेहरो की एंट्री
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नेतृत्व में पार्टी को लगातार दो लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा। राहुल गांधी की राजनीतिक परिपक्वता पर सवाल उठना लाजिमी था, क्योंकि राहुल गांधी ने ऐसे पिटे हुए चेहरों को कांग्रेस में आश्रय गृह बना दिया, जिनका राजनीतिक कैरियर खत्म होने के कगार पर था। इनमें दो सर्वप्रमुख नाम है अभिनेता से नेता शत्रुघ्न सिन्हा और क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू। दोनों नेताओं से कांग्रेस को राजनीतिक रूप से फायदा तो कुछ नहीं मिला अलबत्ता दोनों नेताओं के ऊल-जुलून बयानों का रायता अलग साफ करना पड़ा। अभी हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुईं पूर्व आम आदमी पार्टी नेत्री अलका लांबा को भी इस क्रम में रखा जा सकता है। इससे पहले इस श्रेणी में पूर्व बीजेपी सांसद उदित राज का नाम भी लिया जा सकता है, जो दिल्ली से कांग्रेस की टिकट पर लड़कर चुनाव हार चुके हैं।
कांग्रेस में कद्वावर चेहरों को नहीं मिल रहा सम्मान
कांग्रेस पार्टी एक सफेद हाथी की तरह हो गई है, जहां सत्ता का विकेंद्रीकरण नहीं होने से घाघ टाइप के नेताओं की तूती बोलती है। गांधी परिवार के नजदीकी होने के चलते ऐसे नेताओं के खिलाफ कोई आवाज तक नहीं उठा पाता है। लोकसभा चुनाव कांग्रेस से जुड़ी अभिनेत्री से नेत्री बनी उर्मिला मातोंडकर ने महज 5 महीने में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी में कुछ नामचीन लोगों को वरीयता दी जाती है और उन्हीं लोगों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, जिनका रिजल्ट जीरो रहा है।
अमेठी राजघराने के संजय सिंह ने पत्नी समेत पार्टी छोड़ी
कांग्रेस पार्टी जहां पिटे हुए चेहरों को पार्टी में शामिल कर रही हैं, लेकिन इसी दौरान कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने उन चेहरों को पार्टी में तवज्जो दिया, जिन्होंने चुनाव दर चुनाव पार्टी को विस्तार में योगदान किया है। इसमें सबसे बड़ा नाम अमेठी राजघराने के संजय सिंह और उनकी पत्नी अमिता सिंह का नाम लिया जा सकता है, जिन्होंने अभी हाल में कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है। अमेठी की पारंपरिक सीट हारने के बाद कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका माना जा सकता है, क्योंकि संजय सिंह कांग्रेस के कद्वावर नेता माने जाते हैं। बीजेपी ने महाराष्टर में एनसीपी के आला नेताओं को तोड़कर कांग्रेस को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले पटखनी दे दी है। बीजेपी ने हरियाणा की मशहूर डांसर सपना चौधरी को शामिल नहीं करवा पाई, जो हरियाणा विधानसभा में बीजेपी के लिए क्राउड पुलिंग का काम करेगी। कांग्रेस सिर्फ बात में लगी रही और बीजेपी में सपना चौधरी को बीजेपी की सदस्यता भी दिलवा दी है।
कांग्रेस नेतृत्व को धौंस दिखाने लगे हैं पार्टी नेता
पूर्व हरियाणा सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हाल ही में रोहतक में आयोजित एक महारैली में कांग्रेस नेतृत्व को घुटने टेकने को मजूबर कर दिया और पार्टी को भूपेंद्र हुड्डा के शर्तों के सामने झुकना पड़ गया। कमोबेश राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस नेताओं के बीच आपसी खींचतान से कौन बेखबर है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी कसरत किससे छिपी हुई है। उधर, मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजिय सिंह के आपसी गठजोड़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीतिक कैरियर दांव पर लग चुका है। कई बार ऐसी खबरें आईं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया परेशान होकर बीजेपी ज्वाइन कर लेंगे। यही वजह थी कि सीएम कमलनाथ को दिल्ली तलब किया गया था।