गलतियों से कांग्रेस का याराना हो गया लगता है, इसलिए हारती है चुनाव
बंगलुरू। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने हाल ही में कांग्रेस पार्टी के ज्ञान चक्षु खोलने की कोशिश करते हुए पार्टी को सलाह देते हुए कहा कि कांग्रेस को अब मोदी सरकार के दुष्प्रचार से कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। जयराम रमेश की सलाह आंख खोलने के लिए काफी है, क्योंकि वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव से लगातार चुनाव दर चुनाव हार रही कांग्रेस पार्टी का हश्र किसी से छिपा नहीं है।
किसी जमाने में 404 लोकसभा सीट जीतकर केंद्र की सत्ता में काबिज हुई कांग्रेस की हालत वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में सबसे बुरी रही थी जब पार्टी महज 44 सीटों पर ही सिमट गई थी। कमोबेश यही हाल वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी का रहा। कभी देश के अधिकांश राज्यों में सत्तासीन रही अथवा किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी आज महज 4 राज्यों में सिमट कर रह गई है, लेकिन कांग्रेस पार्टी हार से सीखने को तैयार नहीं है कि आखिर उससे चूक कहां हो रही है।
जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा कि पीएम मोदी ऐसी भाषा में बात करते हैं, जो उन्हें लोगों से जोड़ती है और जब तक हम यह न मान लें कि वो ऐसे काम कर रहे हैं, जिन्हें जनता सराह रही है और जो पहले नहीं किए गए, तब तक हम मोदी का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। निःसंदेह मोदी के हर कदम के विरोध कर मुंह की खाती आ रही कांग्रेस को आत्मावलोकन तो करना ही पड़ेगा। मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ किए गए सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का फायदा बीजेपी शायद उतना नहीं मिलता जितना कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगकर बीजेपी को कराया है।
कांग्रेस पार्टी ने राजनीतिक विरोधी बीजेपी के हर उस फैसले का आंख मूंद कर विरोध किया, जिस पर देश की जनता आंख खोलकर भरोसा कर रही है। इनमें मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने का फैसला प्रमुख है, जिसका राहुल गांधी समेत पार्टी के अधिकांश नेताओं ने विरोध किया। जम्मू-कश्मीर प्रदेश से अनुच्छेद 370 हटने का पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा था और 72 वर्षों बाद जब मोदी सरकार ने यह फैसला लिया तो मोदी सरकार के प्रति उन लोगों की श्रद्धा बढ़ गई जो कभी मोदी को देखना और सुनना भी पंसद नहीं करते थे।
हालांकि जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसले को लेकर तब कांग्रेस में दो फाड़ हो गया जब ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई बड़े नेताओं ने मोदी सरकार के फैसले का स्वागत किया, लेकिन राष्ट्रीय अस्मिता के विषय पर कांग्रेस के प्रथम श्रेणी नेताओं के विरोध ने जनता को कांग्रेस से दूरी बनाने के लिए मजबूर किया है।
कांग्रेस पार्टी में जयराम रमेश जैसे नेताओं की कमी का खामियाजा ही कहेंगे कि पार्टी आत्मावलोकन पर फोकस नहीं कर सकी है। नेतृत्व की समस्या से पिछले 7 महीने से जूझ रही कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक बार कांग्रेस की गद्दी सौंप कर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्री कर ली है। क्योंकि कोई पार्टी नेता अथवा कार्यकर्ता पार्टी सुप्रीमो पद के लिए गांधी परिवार से इतर बोलने और निर्णय लेने के वक्त हथियार डाल देता है। ऐसा पहली बार हुआ है जब जयराम रमेश ने पार्टी को आईना दिखाने की कोशिश की है।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दत्तात्रेय ब्राह्मण घोषित करके मंदिर-मंदिर घुमाकर देश के प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करने की पार्टी कोशिश का क्या हुआ, यह चुनाव परिणामों ने बता दिया है। मूल बात यह है कि कांग्रेस राष्ट्रीय मुद्दों और राष्ट्रीय अस्मिताओं से जुड़े विषयों पर जुबान खोलने से क्यों इतराती है, जिसका सीधा फायदा केंद्र की मोदी सरकार को चला जाता है।
हिंदू हित और हिंदुस्तान की बात जैसे मुद्दों पर पार्टी और पार्टी नेताओं की नकारात्मक टिप्पड़ी कांग्रेस की छवि भारत विरोधी बना देती है, क्योंकि बहुसंख्यक हितों के लिए सिर पर आसमान उठा लेने वाले कांग्रेसी नेता बहुसंख्यक हिंदू हित के मुद्दों पर अक्सर किसी दूसरे देश के राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार करने लग जाते हैं।
2009
में
जीत
से
चमके
थे
राहुल
गांधी
वर्ष
2009
में
हुए
लोकसभा
चुनाव
में
कांग्रेस
वर्ष
2004
के
मुकाबले
और
ज्यादा
मजबूत
होकर
सामने
आई
थी।
इसका
श्रेय
राहुल
गांधी
को
ही
दिया
गया.
उत्तर
प्रदेश
में
कांग्रेस
के
21
सांसद
जीत
को
राहुल
गांधी
की
उपलब्धि
बताकर
पेश
किया
गया।
तकरीबन
यही
वो
समय
था
जब
राहुल
और
कांग्रेस
के
माथे
पर
एक
के
बाद
एक
हार
लिखे
जाने
का
सिलसिला
शुरू
हुआ।
2012
में
चार
राज्यों
में
हारी
कांग्रेस
वर्ष
2012
में
कांग्रेस
पार्टी
को
सबसे
पहला
झटका
यूपी
में
मिला
जबकि
पार्टी
वर्ष
2009
के
लोकसभा
चुनाव
में
यूपी
से
21
सांसद
जीतकर
संसद
पहुंचे
थे।
यूपी
विधानसभा
चुनाव
में
कांग्रेस
पार्टी
403
विधानसभा
सीटों
में
से
महज
28
सीटें
ही
जीत
सकी।
पंजाब
में
कांग्रेस
जीत
की
स्वाभाविक
दावेदार
बताई
जा
रही
थी,
लेकिन
यहां
अकाली-भाजपा
गठबंधन
सबको
चौंकाते
हुए
दोबारा
सरकार
बनाने
में
कामयाब
रही।
पार्टी 117 विधानसभा वाले पंजाब में महज 46 सीटें जीत पाई। ऐसा ही गोवा में हुआ जब दिगंबर कामत वाली कांग्रेस सरकार को हार का सामना करना पड़ा। उत्तराखंड में पार्टी को बीजेपी से बहुत नजदीकी मुकाबले में जीत मिली और वर्ष 2012 के अंत में गुजरात में एक बार फिर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी।
पहले से हारे राहुल गांधी बार-बार हारते रहे
वर्ष 2013 में त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हुए चुनावों में भी कांग्रेस को करारी हार मिली। कर्नाटक में कांग्रेस जीती, लेकिन श्रेय राहुल गांधी को नहीं, बीजेपी के बीएस येदुरप्पा को दिया गया। वर्ष 2014 में आयोजित लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस की ऐतिहासिक हार हुई जब पार्टी महज 44 सीट पर सिमट गई थी। इसी साल पार्टी हरियाणा और महाराष्ट्र में सत्ता खो चुकी थी।
झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी उसकी करारी हार हुई। वर्ष 2015 में बिहार में महागठबंधन में शामिल होकर उसने जीत का स्वाद चखा, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीरो पर पहुंच गईं, जहां पिछले 15 वर्ष शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार में रही थी। वर्ष 2016 भी कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर लेकर नहीं आई। क्योंकि 2016 में कांग्रेस के हाथों से असम जैसा बड़ा राज्य भी फिसल गया। केरल में उसकी गठबंधन सरकार हार गई और पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उसका सूपड़ा साफ हो गया।
हिमाचल प्रदेश में वापस लौटी बीजेपी सरकार
वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने गुजरात के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रही। हालत यह हो गई थी कांग्रेस पार्टी लोकसभा चुनाव और विधानसभा ही नहीं, विश्वविद्यालय से लेकर स्थानीय निकाय के चुनावों में भी हार का मुंह देख रही थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी अपनी किसी भी हार से कोई सबक सीखने को तैयार नहीं थी।
राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी लगातार हार रही थी और उधर उन्हें अध्यक्ष बनाने की मांग उठने लगी। हालांकि राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जीतकर वापसी के संकेत दिए, लेकिन वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में गलतियों से न सीखने वाली कांग्रेस ने फिर गलती की और जीएसटी और नोटबंदी जैसे आत्मघाती फैसले के बाद भी मोदी सरकार सत्ता में धमाके के साथ वापसी की।
राहुल के इस्तीफे के बाद मां सोनिया को पार्टी की कमान
2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की, लेकिन पार्टी उन्हें करीब 7 माह तक राहुल गांधी को मनाती है और इस बीच पार्टी नेतृत्वविहीन बनी रही। अंततः कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई गई और तमाम ड्रामेबाजी के बीच कमेटी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाकर गांधी परिवार से इतर कुछ सोचने में नाकाम साबित हुई।
72 वर्षीय सोनिया गांधी की बागडोर में पार्टी अब महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव जीतने की उम्मीद कर ही है, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करके कांग्रेस तीनों राज्यों में चमत्कार की उम्मीद कर रही है, तो वो गलतफहमी की शिकार है, क्योंकि देश की अस्मिता के खिलाफ दिए गए कांग्रेसी नेताओं के बयान सुनकर तीनों राज्यों की जनता ने अब तक तो अपना मत किसे नहीं देना है यह तय कर चुकी है।
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