पार्टी में कभी कम नहीं हो सकता राहुल गांधी का रुतबा और कद!
नई दिल्ली। कभी जोकर, कभी अमूल बेबी तो कभी पप्पू, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को लिए यह टाइटल कभी जनता ने तो कभी उनकी पार्टी के ही अपने लोगों ने प्रयोग किए हैं।
पहले मिलिंद देवड़ा, प्रिया दत्त और सत्यव्रत चतुर्वेदी, फिर केरल के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता, फिर राजस्थान के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता की ओर से राहुल गांधी की नेतृत्वशीलता पर सवाल उठाए गए हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक पार्टी की समस्या यह है कि राहुल गांधी को अभी तक असफलताओं के बावजूद एक-एक करके पुरस्कार मिलते गए लेकिन कभी कोई भी आवाज उनके खिलाफ नहीं गई।
अब जबकि पार्टी को लोकसभा चुनावों में एतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है तो पार्टी के अंदर से आवाजें आने लगी हैं। कांग्रेस अब इस पसोपेश में पड़ गई है कि आखिर वह राहुल गांधी के लिए वह क्या कहे और क्या न कहे, क्या करे और क्या न करे के कन्फ्यूजन में पड़ गई है।
कभी पार्टी के स्टार कैंपेनर राहुल गांधी की हालत लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद और भी ज्यादा खराब हो गई है। इसके बावजूद पार्टी की ओर से राहुल गांधी के कद में कोई कमी नहीं जाती है।
उनका कद और पद हार के बाद भी बरकरार रहता है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा है कि पार्टी के अंदर सिर्फ उच्च तबके और परिवारवाद वाले लोगों को ही बढ़ावा मिलता है। अच्छे और योग्य लोगों को हमेशा ही किनारे कर दिया जाता है।
एक नजर डालिए कि राहुल गांधी के पिछले 10 वर्षों के ट्रैक रिकॉर्ड और उनकी पार्टी से ही उनके खिलाफ उठती आवाजों पर।
पार्टी को मिलीं 145 सीटें
राहुल गांधी ने अमेठी से पहला लोकसभा चुनाव लड़ने के साथ ही सक्रिय राजनीति में कदम रख दिया। इन चुनावों में पार्टी को 145 सीटें हासिल हुईं। कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनाकर केंद्र में आई और राहुल का कद पार्टी में बढ़ता गया।
पार्टी को मिलीं सिर्फ नौ सीटें
वर्ष 2005 में बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए। फरवरी में हुए चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तो फिर अक्टूबर-नवंबर में चुनाव कराए गए। लेकिन दोनों ही बार पार्टी का डिब्बा गोल ही रहा। फरवरी में जहां पार्टी को 10 सीटें हासिल हो सकीं तो अक्टूबर में हुए चुनावों में पार्टी सिर्फ नौ सीटें ही जीत सकी। इन चुनावों में राहुल गांधी ने पार्टी के लिए पूरे राज्य में प्रचार किया था।
बनाए गए पार्टी के महासचिव और मिली हार
वर्ष 2007 में राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनाया गया। साथ ही उन्हें यूथ कांग्रेस की जिम्मेदारी भी दे दी गई। इसी दौरान उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, गुजरात और मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए। राहुल ने कांग्रेस के लिए जमकर प्रचार किया लेकिन कुछ हाथ नहीं लग सका। पार्टी को यूपी सिर्फ 22 सीटें ही हासिल हो सकीं तो गुजरात में भी पार्टी की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं रही। पंजाब में भी पार्टी का हाल बुरा हुआ।
मध्य प्रदेश में हो गई बत्ती गुल
वर्ष 2008 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, मिजोरम, जम्मू कश्मीर, नागलैंड, मेघालय, त्रिपुरा और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए। जहां पार्टी को कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा तो वहीं राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम में उसकी सरकार बन सकी।
राहुल को मिला थोड़ा प्रोत्साहन
वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनावों ने पार्टी में राहुल का कद बढ़ाने का काम किया। इन चुनावों के दौरान पार्टी को 206 सीटें हासिल हुईं और यहीं से पार्टी का राहुल पर भरोसा बढ़ता गया। पार्टी के अंदर लोगों को लगने लगा कि शायद यह राहुल गांधी के करिश्मे का कमाल है जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि 2009 में पार्टी को सिर्फ मनमोहन सिंह की वजह से ही सीटें हासिल हो सकी थीं।
पार्टी का मनोबल बढ़ाने को काफी
कांग्रेस को वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान यूपी में 80 में 21 सीटें हासिल हुई थीं और इन सीटों की वजह से पार्टी का मनोबल भी बढ़ा। यूपी में जो सीटें पार्टी को मिलीं उसकी वजह से पार्टी राहुल को एक बड़ी जिम्मेदारी देने पर विचार करने लगी।
राहुल गांधी की गलतियां जिम्मेदार
विशेषज्ञ मानते हैं कि की वर्ष 2009 के बाद जबसे पार्टी को सत्ता हासिल हुई पार्टी की छवि भ्रष्टाचार और दूसरी वजहों से खराब होती चली गई। राहुल गांधी कभी भी किसी भी मुद्दे पर न तो अपना रुख लोगों के बीच रखते और न ही उन्होंने कभी भी भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर पार्टी के किसी नेता के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई की।
लेकिन राहुल को मिलती रही तारीफ
राहुल गांधी का कद कभी पार्टी में कम नहीं हुआ। वर्ष 2012 में गोवा, गुजरात और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मुंह की खाने के बावजूद जनवरी 2013 में राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया गया।
वर्ष 2013 में हर तरफ से बुरी खबर
दिसंबर 2013 में दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनावों पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी पार्टी ने कभी राहुल गांधी पर कोई उंगली नहीं उठाई।
राहुल पर उठने लगे सवाल
अप्रैल और मई में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों ने शायद पार्टी को आईना दिखाने का काम किया है। पार्टी के कुछ नेताओं की ओर से राहुल के विरोध में आवाजें भी उठने लगी हैं। कई नेता दबी आवाज में यह बात मानते हैं कि राहुल गांधी की वजह से काबिल है सक्षम लोगों को पार्टी में हमेशा ही किनारे रखा जाता है।
राय देने वालों के साथ ही लेने वाले भी जिम्मेदार
राहुल गांधी पर पहला हमला कांग्रेस के युवा नेता और साउथ मुंबई से पूर्व सांसद मिलिंद देवड़ा ने किया। मिलिंद ने राहुल गांधी की टीम पर निशाना साधते हुए कहा कि टीम की ओर से राहुल को सही तरह से सलाह नहीं दी गई। लेकिन साथ ही वह यह कहने से भी नहीं चूके कि सलाह देने के साथ ही साथ जिम्मेदारी सलाह लेने वालों की भी होती हैं।
केरल कांग्रेस से निकाले गए नेताजी
गुरुवार को केरल कांग्रेस के नेता टीएम मुस्तफा ने राहुल गांधी को एक जोकर करार दिया और कहा कि राहुल की वजह से ही पार्टी को चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। नतीजा पार्टी ने मुस्तफा को शुक्रवार को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
भंवर लाल शर्मा ने भी राहुल पर डाली जिम्मेदारी
शनिवार को राजस्थान कांग्रेस के नेता भंवर लाल शर्मा ने तो यहां तक कह डाला कि राहुल गांधी के पास न तो कोई नीति है और न ही उनके पास कोई दिशा। भंवर लाल ने राहुल को जोकरों की टीम का एमडी तक करार दे दिया।
साथी दलों के निशाने पर युवराज
एनसीपी और यूपीए का हिस्सा रहने वाली दूसरी पार्टियां भी अब राहुल को हार के लिए जिम्मेदार बता रही हैं। उनका मानना है कि राहुल गांधी ही पार्टी को मिली इतनी बड़ी हार की वजह बन गए हैं।