महाराष्ट्र सरकार में छिड़ चुका है संग्राम, क्या ये होगा परिणाम ?
Conflict in Maharashtra's Uddhav government, will the government fall?महाराष्ट्र सरकार में शिवसेना और कांग्रेस विधायक नाराज चल रहे हैं। ऐसे में सीएम उद्धव ठाकरे के सामने हर दिन नयी समस्या खड़ी हो रही हैं जो सरकार पर खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। जानिए क्या मिल रहे संकेत?
बेंगलुरु। महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी सरकार के ऊपर से संकट के बादल छंटते नजर नहीं आ रहे हैं। लगभग सवा महीने पूर्व महाराष्ट्र में जोड़-तोड़ की राजनीति करते हुए शिवसेना ने जीत हासिल कर सरकार तो बना ली लेकिन सरकार चलाने में मु्ख्यमंत्री उद्वव ठाकरे के पसीने छूट रहे हैं। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन से जब से यह सरकर बनी है तभी से माना जा रहा है कि तीन पहियों की यह सरकार ज्यादा दिन टिकने वाली नहीं हैं। जिसके आसार एक बार फिर नजर आने लगे हैं।
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बता दें वर्तमान समय में उद्वव ठाकरे के प्रतिनिधित्व की महाअघाडी सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। गठबंधन में शामिल एनसीपी जहां मलाईदार पद पाकर सत्ता का मजा ले रही वहीं गठबंधन में शामिल कांग्रेस सरकार के दोगले रवैये से खासी नाराज चल रही है। इतना ही नही शिवसेना पार्टी जिसके प्रतिनिधित्व की सरकार हैं उसके विधायक भी सरकार से खफा चल रहे हैं। इसके चलते शीघ्र ही महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से हलचल देखने को मिल सकती है।
गठबंधन की सरकार में इसलिए चल रही है खींचतान
महाराष्ट्र सरकार में यह विधायकों की नाराजगी कुर्सी और रुतबे को लेकर हैं। यही कारण है कि कुछ दिनों पहले मंत्रीमंडल के विस्तार के बाद से जो कलह शुरु हुई वह अभी तक खत्म नही हुई है। बता दें महाराष्ट्र मंत्रिमंडल के विस्तार में 36 मंत्रियों को शामिल किया गया था। इस मंत्रीमंडल विस्तार के बाद मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या अब 43 हो गई है जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। शिवसेना खुद इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि मंत्री पद को लेकर इस गठबंधन की सरकार में खींचतान चल रही है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर कुर्सी को लेकर यूं खींचतान चलती रही तो महाराष्ट्र सरकार के लिए संकट खड़ा हो सकता हैं!
कांग्रेस बना रही सरकार पर दबाव
सू्त्रों के अनुसार एनसीपी प्रमुख शरद पवार से सलाह मशविरा करने के बाद विभिन्न दलों के नेताओं ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ मुलाकात के बाद मंत्रियों के विभागों के आवंटन को अंतिम रूप दिया था और सभी मुद्दों को सुलझा भी लिया गया था। लेकिन कांग्रेस कृषि और सहकारिता जैसे ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित कोई भी विभाग न मिलने के कारण नाराज है। मंत्रिमंडल में विभागों और बंगलों के बंटवारे को लेकर मंत्री खुश नहीं हैं। मालूम हो कि कांग्रेस सरकार के गठन के चंद दिनों बाद ही सीएए मुद्दे पर गठबंधन से बाहर होने की धमकी शिवसेना को दी थी। हालांकि तब कांग्रेस के दबाव में आकर शिवसेना ने सीएए पर अपना पैतरा बदल कर भाजपा के विपक्ष में खड़ी हो गयी थी। अब दोबारा शिवसेना पर मलाईदार पदों को लेकर दबाव बना रही हैं।
शिवसेना विधायकों की नाराजगी सरकार के लिए खतरे की घंटी
वहीं करीब दर्जन भर शिवसेना विधायक भी मंत्रिमंडल पद न मिलने से नाराज चल रहे हैं। इनमें कई विधायक अपने कम ओहदे के कारण भी परेशान हैं। बता दें कि शिवसेना के कुल 14 मंत्री बनाए गए हैं जिनमें पूर्व सरकार में मंत्री रहे रामदास कदम, रवींद्र वायकर, शिवसेना नेता दिवाकर रावते, दीपक केसरकर को भी इस बार मौका नहीं मिल पाया है। शिवसेना खुद इस बात को स्वीकार कर चुकी है कि मंत्री पद को लेकर इस गठबंधन की सरकार में खींचतान चल रही है। माना जा रहा है कि अगर शिवसेना के विधायकों की नाराजगी सीएम उद्वव ठाकरे जल्द दूर नहीं करते है तो उनके नेता बागी हो सकते है। ऐसे में उद्वव ठाकरे की सरकार खतरें में पड़ सकती हैं। बता दें औरंगाबाद से पार्टी के विधायक और राज्यमंत्री अब्दुल सत्तार ने पिछली 4 तारीख को शउद्धव ठाकरे कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। अब्दुल सत्तार ने अपना इस्तीफा इसएलिए दिया था क्योंकि कैबिनेट मंत्री ना बनाए जाने से नाराज थे।
शिवसेना और कांग्रेस में इस बात हो चुकी खींचतान
इतना ही नहीं कैबिनेट मीटिंग के दौरान मुख्यमंत्री के बगल में बैठने को लेकर मंत्रियों में खींचतान की भी घटना का खुलासा हो चुका है। पिछले दिनों कैबिनेट मीटिंग के दौरान कांग्रेस नेता और कैबिनेट मंत्री अशोक चव्हाण और एनसीपी नेता छगन भुजबल में बैठने को लेकर बहसबाजी हो गई। दरअसल मुख्यमंत्री जब कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता करते हैं तो उनके आसपास बैठने वाले मंत्रियों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर सीट आवंटित की जाती है। छगन भुजबल को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के करीब बैठाए जाने से कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण नाराज हो गए। उनका मानना था कि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते छगन भुजबल (एक पूर्व उप मुख्यमंत्री) से ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए था। हालांकि छगन भुजबल ने सीट को लेकर हुए ऐसी किसी बहस से साफ इनकार किया।
'अगर मंत्री लड़ते रहे तो CM उद्धव दे देंगे इस्तीफा'
ऐसे ही कुछ संकेत कांग्रेस के पूर्व सांसद यशवंतराव गडाख के बयान से मिल रहे है। सोमवार को उन्होंने महाराष्ट्र की उद्वव सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि अगर कांग्रेस और एनसीपी के मंत्री बंगलों और विभागों के आवंटन जैसे मुद्दों पर ऐसे ही सरकार के कार्यों में बाधा डालते रहे तो, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
सांसद नारायण राणे ने ये किया है दावा
वहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में भाजपा के कोटे से राज्यसभा सांसद नारायण राणे ने दावा किया है कि शिवसेना के 35 अपनी पार्टी के नेतृत्व से नाखुश हैं। राणे ने दावा किया है कि ये सभी विधायक अपनी पार्टी के नेतृत्व से संतुष्ट नहीं है, जिसकी वजह से ये विधायकों में रोष है। उन्होंने इस बात का भरोसा जाहिर किया है कि प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बन सकती है। नारायण राणे ने कहा कि प्रदेश की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार प्रदर्शन नहीं कर रही है। प्रदेश में सरकार बनाने में इन्हें पांच हफ्ते का समय लग गया। प्रदेश में भाजपा के 105 विधायक हैं और शिवसेना के 56 विधायक। लेकिन 56 में से 35 विधायक अपने नेतृत्व से खुश नहीं हैं। राणे ने कहा कि महाराष्ट्र की सरकार ने वादा किया था कि वह किसानों का कर्ज माफ करेगी, लेकिन उनका यह वादा खोखला निकला। अभी तक इस कर्जमाफी को लागू करने की तारीख का ऐलान नहीं किया गया है।
खींचतान की वजह से देर से हुआ था मंत्रीमंडल विस्तार
गौरतलब है लंबी खींचतान के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने छह मंत्रियों के साथ 29 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। मुख्यमंत्री को अपने शुरूआती मंत्रियों को पोर्टफोलियो बांटने में 14 दिन लग गए। इसके 18 दिन बाद उन्होंने कैबिनेट विस्तार किया और उसके भी 5 दिन बाद बाकी मंत्रियों में विभाग बांटे। ज्ञात हो कि एनसीपी के अनिल देशमुख को गृह मंत्रालय, शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को शहरी विकास मंत्रालय, कांग्रेस नेता बालासाहेब थोराट को राजस्व विभाग, अशोक चव्हाण को पीडब्ल्यूडी मंत्री इसके अलावा शिवसेना नेता और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को पर्यटन और पर्यावरण मंत्रालय सौंपा गया है।
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