क्षेत्रीय दलों से बदतर हो गई है कांग्रेस की हालत, देखें 7 प्रमुख राज्यों में पार्टी की राष्ट्रीय हैसियत
नई दिल्ली। 132 साल पुरानी हो चुकी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत वर्तमान समय में क्षेत्रीय दलों से भी बदतर कहा जाए तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। बावजूद इसके कांग्रेस अपने पुराने चोले से बाहर निकलने का नाम नहीं ले रही है। जिस चोले की बात हम कर रहे हैं, वह चोला हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता की नहीं है, हम उस चोले की बात कर रहे है, जिसके बलबूते पर कांग्रेस लगातार 67 साल तक प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सत्ता का केंद्र में रही है। जी हां, हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के परिवारवाद की, जिसके मोहपाश से देश की जनता उबर चुकी है, क्योंकि यह सिर्फ नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी तक ही सीमित थी।
जानिए, पिछले 6 सालों में किन-किन मुद्दों पर केंद्र से टकरा चुकी हैं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी?
निः संदेह भारत की आजादी के बाद मतदाताओं को एक सूत्र में बांधकर रखने में कांग्रेस कामयाब रही थी, जिसका नतीजा कहेंगे कि भारत में अब तक हुए 14 प्रधानमंत्रियों में 9 प्रधानमंत्री कांग्रेस पार्टी से रहे, लेकिन 1991 के बाद से देश ने अब तक गांधी परिवार को प्रधानमंत्री पद पर आसीन होते नहीं देखा है। 2004 लोकसभा चुनाव में एनडीए सरकार के अवसान के बाद सत्ता में एक बार फिर गांधी परिवार की बहू और कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने की संभावना थी, लेकिन विरोध के चलते उन्हें समझौता करना पड़ा और एक बार फिर पार्टी को गांधी परिवार से इतर डा.मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुनना पड़ा। हालांकि पर्दे के पीछे सत्ता की बागडोर सोनिया गांधी के हाथ में ही रही थी।
कृषि कानून 2020 को निरस्त करने पर अड़े किसानों की मंशा पर उठ रहे हैं सवाल
आइए जानते हैं कि हरियाणा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली कांग्रेस पार्टी की हालत कैसी है। राष्ट्रीय पार्टी के संदर्भ में लोकसभा चुनाव में पार्टी की सीटों की संख्या को आधार बनाते हुए समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे कांग्रेस क्षेत्रीय दल में तब्दील होती गई है। कई राज्यों में जहां 2018 में कांग्रेस वापसी करने में कामयाब रही, लेकिन लोकसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन फिर भी नहीं सुधर सका है।
पालतू कुत्ते को बचाने के लिए जान पर खेल गया मालिक, जंगली भालू के जबड़े से निकालकर लिया दम
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एक लोकसभा और 7 विधानसभा सदस्य हैं
देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के 14 मुख्यमंत्री बन चुके है और वर्तमान में यूपी में कांग्रेस की हालत किसी से छिपी नहीं है। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटें देश का प्रधानमंत्री चुनने में अग्रणी भूमिका निभाती हैं, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में पंरपरागत सीट अमेठी को भी हारने वाली कांग्रेस महज 1 ही सीट जीत पाई। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में सपा के साथ गठबंधन करके महज 7 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस के यूपी के जनाधार की तस्वीर उपचुनाव में साफ हो गई, जब उसके खाते में एक भी सीट नहीं आई।
बिहार में कांग्रेस का 1 लोकसभा सदस्य और 19 विधानसभा सदस्य है
बिहार में 20-20 मुख्यमंत्री चुन चुकी कांग्रेस पार्टी की हालत बेहद नाजुक है। पिछले लोकसभा चुनाव में महज 1 सीट पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस की हालत बिहार विधानसभा चुनाव में भी पतली रही। कांग्रेस महज 19 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कम सीटों पर लड़कर भी 27 सीटें जीत कर आई थी। वर्ष 1995 के बाद से बिहार सूबे में कोई कांग्रेसी मुख्यमंत्री नहीं रहा है, जो यह बताता है कि कांग्रेस का जनाधार बिहार में भी खत्म हो चुका है, जहां वह पिछले कई विधानसभा चुनाव में एक क्षेत्रीय दल की हैसियत से चुनाव लड़ती आ रही है।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस का 1 लोकसभा सदस्य और 96 विधानसभा सदस्य हैं
मध्य प्रदेश में 22 मुख्यमंत्री चुन चुकी कांग्रेस पिछले विधानसभा चुनाव में करीब 15 वर्षों के अंतराल के बाद सत्ता में वापसी की थी, लेकिन उसके हाथ से एक बार फिर सत्ता जाती रही। कांग्रेस का जनाधार बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान में रसातल में पहुंच गया था। पिछले चुनाव में भी बीजेपी ने कड़ी टक्कर दिया और कांग्रेस के लगभग बराबर सीट ले आई। जनता ने किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया था। कांग्रेस निर्दलीय और बसपा के सहयोग से सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया को अलग-थलग करने के चक्कर में कांग्रेस के हाथों से मध्य प्रदेश का सूबा फिर छिटक गया और उप चुनाव में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस को नकार दिया।
राजस्थान में लोकसभा चुनाव में जीरो और विधानसभा में हीरो रही है कांग्रेस
राजस्थान में लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में लगातार दो बार जीरो स्कोर करने वाली कांग्रस की हालत बताती है कि वह सूबे में किस दौर से गुजर रही है। हालांकि विधानसभा चुनावों में अभी भी राजस्थान में कांग्रेस का जनाधार बना हुआ है, जहां बीजेपी और कांग्रेस 5 साल में अदल-बदल कर सरकार बनाती आ रही हैं। हालांकि कभी लगातार राजस्थान में लगातार कांग्रेसी मुख्यमंत्री चुने जाते रहे हैं, लेकिन अब वह दौर खत्म हो गया है। हाल में उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बगावत के बाद राजस्थान सरकार भी संकट में आ गई थी, लेकिन अंततः कांग्रेस सरकार बचाने में कामयाब रही।
महाराष्ट्र में कांग्रस का 1 लोकसभा सदस्य और विधानसभा सदस्य 44 हैं
महाराष्ट्र में अकेले दम पर कभी लगातार 15 कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देख चुकी कांग्रेस के जनाधार में गिरावट 2010 के बाद हुई है। 2014 लोकसभा चुनाव में 48 सीटों में महज 2 सीट और 2019 लोकसभा चुनाव में 1 सीट पर सिमट गई थी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2014 में पार्टी महज 40 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस 2019 विधानसभा चुनाव 44 से आगे बढ़ गई। यह अलग बात है कि अभी कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार में शामिल है, लेकिन कांग्रेस वर्तमान में महाराष्ट्र में चौथे नंबर की पार्टी है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 2 लोकसभा सदस्य और 68 विधानसभा सदस्य हैं
1 नवंबर 2000 का मध्य प्रदेश को काटकर बनाए गए नए राज्य छत्तीसगढ़ में पहला मुख्यमंत्री कांग्रेस का था, लेकिन उसके बाद लगातार तीन टर्म बीजेपी की सरकार रही। पिछले विधानसभा चुनाव में सरकार में लौटी कांग्रेस का जनाधार कितना है, यह देखने के लिए लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 का आंकड़ा देखना जरूरी है। 2014 में कांग्रेस के हाथ में महज 1 सीट आई थी, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 2 सीट आई है, जबकि 2018 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में पार्टी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई थी।
हरियाणा में कांग्रेस का जीरो लोकसभा सदस्य और 31 विधानसभा सदस्य हैं
हरियाणा प्रदेश में करीब 8 कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देख चुकी कांग्रेस पिछले एक दशक से तेजी से अपना जनाधार गंवाया है। इसकी हकीकत लोकसभा चुनाव की हालत से बेहतर समझी जा सकती है। कांग्रेस ने 2014 लोकसभा चुनाव 10 में से महज 1 सीट जीत पाई थी, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस जीरो पर सिमट गई है। हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में उसने बीजेपी को टक्कर देने में कामयाब जरूर रही, लेकिन सत्ता तक नहीं पहुंच सकी।