प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साक्षात्कार की 2014 से तुलना, जानिए क्या है बड़ा फर्क
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में इस साल का पहला साक्षात्कार दिया था। नए वर्ष के मौके पर पीएम मोदी का साक्षात्कार तमाम मीडिया की सुर्खियां बना। इस साक्षात्कार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की और कई सवालों के जवाब दिए। प्रधानंत्री ने यह साक्षात्कार एएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश को दिया था, जिसमे उन्होंने राम मंदिर, राफेल डील, आगामी चुनाव समेत तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की। लेकिन अगर प्रधानमंत्री के इस साक्षात्कार की तुलना 2014 के साक्षात्कार से करें तो यह कई मायनो में अलग था।
2014 में पीएम मोदी का जबरदस्त आत्मविश्वास
प्रधानमंत्री साधारण तौर पर राष्ट्रीय चैनल्स को साक्षात्कार कम देते हैं लेकिन चुनावी साल में पीएम मोदी ने यह साक्षात्कार दिया है। इससे पहले 2014 में पीएम मोदी टीवी ने एबीपी न्यूज को भी इंटरव्यू दिया था। एबीपी न्यूज के घोषणापत्र में दिए अपने साक्षात्कार में पीएम मोदी ने तीन पत्रकारों के सवालों का सामना किया। उस इंटरव्यू में पीएम ने तत्कालीन यूपीए सरकार पर जमकर हमला बोला था और उस वक्त पीएम मोदी का आत्मविश्वास जबरदस्त था। पीएम ने उस साक्षात्कार में यहां तक कहा था कि कोई भी इस बार भाजपा की सरकार बनने से नहीं रोक सकता है, जोकि बाद में सच साबित हुआ। उन्होंने भरोसा जताया था कि भाजपा को पूर्ण बहुमत हासिल होगा, लेकिन इस बार पीएम मोदी के आत्मविश्वास में 2014 का भरोसा देखने को नहीं मिला।
2019 में पीएम का सधा हुआ बयान
पीएम
मोदी
के
2014
और
2019
के
साक्षात्कार
मे
जो
सबसे
बड़ा
फर्क
है
वह
यह
कि
2011
जनवरी,
2019
को
पीएम
ने
अपने
साक्षात्कार
में
इस
बात
को
कहा
कि
भाजपा
की
सरकार
एक
बार
फिर
से
बनेगी।
लेकिन
इस
बार
के
साक्षात्कार
में
पीएम
मोदी
के
बयान
में
अतिआत्मविश्वास
देखने
को
नहीं
मिला।
हालांकि
उन्होंने
यह
जरूर
कहा
कि
अगर
किसी
नेतृत्व
पर
लोगों
को
भरोसा
है
तो
वह
भाजपा
का
नेतृत्व
है।
लेकिन
2014
के
पीएम
मोदी
के
साक्षात्कार
की
तुलना
करें
तो
इस
बार
पीएम
बचाव
की
मुद्रा
में
दिखे
जबकि
2014
में
वह
आक्रामक
मुद्रा
में
दिखते
थे।
4
में
पीएम
मोदी
ने
तथ्यों
के
आधार
पर
यूपीए
सरकार
की
विफलताओं
को
गिनाया
था,
जबकि
2019
में
दिए
गए
साक्षात्कार
में
पीएम
यह
कोशिश
कर
रहे
थे
कि
अपने
कामों
का
तथ्य
सामने
रख
सके।
पीएम
मोदी
को
इस
बार
लोगों
की
आलोचना
का
भी
सामना
करना
पड़
रहा
है।
एक
तरफ
जहां
पिछले
चुनाव
में
उन्होंने
लोगों
को
बेहतर
विकल्प
देने
की
बात
कही
थी
तो
इस
बार
पीएम
यह
कोशिश
करते
दिखे
कि
अभी
भी
उस
वकिल्
पर
भरोसा
किया
जा
सकता
है।
पीएम की बड़ी चुनौती
पीएम मोदी के 2014 और 2019 के साक्षात्कार मे जो सबसे बड़ा फर्क है वह यह कि 2014 में पीएम मोदी ने तथ्यों के आधार पर यूपीए सरकार की विफलताओं को गिनाया था, जबकि 2019 में दिए गए साक्षात्कार में पीएम यह कोशिश कर रहे थे कि अपने कामों का तथ्य सामने रख सके। पीएम मोदी को इस बार लोगों की आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां पिछले चुनाव में उन्होंने लोगों को बेहतर विकल्प देने की बात कही थी तो इस बार पीएम यह कोशिश करते दिखे कि अभी भी उस वकिल् पर भरोसा किया जा सकता है।
2014-2019 में यह है समानता
हालांकि 2014 और 2019 में प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक बार समान है वह यह कि पिछले लोकसभा चुनाव की ही तरह इस बार के चुनाव में भी विपक्ष बतौर प्रधानमंत्री के चेहरे की तलाश में जूझ रहा है। विपक्ष के पास अभी भी ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सके। बहरहाल जिस तरह से 2018 में तीन राज्यों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, उसके बाद भाजपा की स्थिति में काफी बदला हुआ है, लिहाजा आने वाले चुनाव में एकतरफा परिणाम की उम्मीदें कम हो गई हैं।
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