बिना आपकी मर्जी ओवरटाइम नहीं करा पाएंगी कंपनियां, देना होगा दोगुना वेतन
नई दिल्ली- नरेंद्र मोदी सरकार एक नया प्रस्ताव लेकर आई है, जिसके तहत कंपनियां या कोई भी प्रतिष्ठान बिना कर्मचारियों की लिखित मर्जी के ओवरटाइम नहीं करा सकेंगी। यही नहीं जब कभी भी कोई कर्मचारी ओवरटाइम करेगा तो उस दौरान कंपनियों को उसे दोगुना पैसे देने होंगे। नए कानून में बेसिक सैलरी, डीए और रिटेन्शन पे को भी शामिल किए जाने का प्रस्ताव है।
ओवरटाइम के लिए आपकी इजाजत जरूरी
पेशेगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2019 को पिछले हफ्ते लोकसभा में पेश किया गया है। इस बिल को सदन में रखते हुए केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि,"किसी भी वर्कर को ओवरटाइम करने की जरूरत नहीं होगी, जबतक कि नियोक्ता उस काम के सिलसिले में उससे पहले लिखित में पूर्व सहमति न ले ले।" इस बिल के तहत यदि किसी कर्मचारी से ओवरटाइम कराया जाता है, तो उसे उस अवधि के लिए दोगुना वेतन दिए जाने का भी प्रावधान है।
क्या कहता है एनएसओ सर्वे
नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) के पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2017-18 के अनुसार, देश में ज्यादातर वर्कर हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा काम करते हैं, जो कि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक है। सर्वे के मुताबिक सैलरिड या नियमित कर्मचारी हफ्ते में 53 से 56 घंटे तक काम करते हैं। जबकि खुद के रोजगार में लगे लोग हफ्ते में 46 से 54 घंटे और कैजुअल वर्कर 43 से 48 घंटे तक काम करते हैं। मोदी सरकार इस प्रस्ताव के द्वारा उस पुराने प्रस्ताव को हटा रही है, जिसके तहत किसी कर्मचारी से ओवरटाइम कराने की अनुमति मिली हुई थी। इसकी जगह केंद्र या राज्य सरकार ओवरटाइम की भी एक समय-सीमा का सुझाव दे सकती है। इस बिल के प्रारूप को पिछले वर्ष सार्वजनिक किया गया था। तब कहा गया था कि एक दिन में 10 घंटे से ज्यादा का काम नहीं कराया जा सकता, लेकिन मौजूदा बिल में वह प्रावधान शामिल नहीं किया गया है।
न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का भी प्रस्ताव
इसके साथ ही केंद्र सरकार श्रमिकों की हितों की रक्षा के लिए संगठित और असंगठित क्षेत्र के लिए श्रम कानून सुधार बिल 2019 के जरिए न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने की कोशिशों में भी जुटी है। पिछली बार ऐसी कोशिश 2017 में हुई थी, जब इसे लोकसभा में रखा गया था, लेकिन स्टैंडिंग कमेटी में भेजे जाने के बाद ये पास नहीं हो सका। इस बिल में श्रमिकों के वेतन से जुड़े चार मौजूदा कानूनों-पेमेंट्स ऑफ वेजेज एक्ट-1936, मिनिमम वेजेज एक्ट-1949, पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट-1965 और इक्वल रेमुनरेशन एक्ट-1976 को एक कोड में शामिल करने का प्रावधान है। कोड ऑन वेजेज में न्यूनतम मजदूरी को हर जगह एक समान लागू करने का प्रावधान है, ताकि पूरे देश में एक सामान सैलरी सुनिश्चित की जा सके।
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