100 के हुए तीनों सेनाओं में सेवा दे चुके कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल, जानिए पिता ने विमान उड़ाने से क्यों रोका था
नई दिल्ली- रिटायर्ड कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल 100 साल के हो गए हैं। वह भारतीय सेना के एकमात्र ऑफिसर हैं, जिन्होंने इंडियन एयर फोर्स, इंडियन नेवी और इंडियन आर्मी (आर्टिलरी) तीनों में अपनी सेवाएं दी हैं। इन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान जंग में भी भारत माता की सेवा की है। कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल का पूरा जीवन एक मिसाल की तरह है। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान रॉयल इंडियन एयर फोर्स में पायलट के तौर पर काम शुरू किया और बाद में इंडियन नेवी से जुड़ गए। 1965 के भारत-पाकिस्तान जंग के दौरान उन्होंने गनर ऑफिसर रहते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे किए। उनका सबसे लंबा सेवाकाल आर्मी में रहा और वह कर्नल रैंक तक पहुंचे और फिर समय से पहले रिटायरमेट ले लिया। आखिरकार मणिपुर में असम राइफल के सेक्टर कमांडर के तौर पर भी अपना योगदान दिया।
एयर फोर्स में फ्लाइट कैडेट से शुरू की भारत माता की सेवा
हर जांबाज सैनिक की तरह रिटायर्ड कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल एकबार सेना में शामिल हुए तो हमेशा के लिए सेना के होकर रह गए। उन्हें तीनों सेनाओं में सेवा देने का जो गौरव प्राप्त है, वह हर भारतीय सैनिक के लिए नजीर की तरह है। क्योंकि, ऐसा सौभाग्य पाने वाले वो अकेले भारतीय सिपाही हैं। उनकी सेवा एयर फोर्स से शुरू हुई और नेवी होते हुए आर्मी में योगदान देने तक जारी रही। बाद में उन्होंने पैरा मिलिट्री फोर्स असम राइफल्स में भी अपनी सेवाएं दीं। अंग्रेजों के जमाने में वह 1942 में रॉयल इंडियन एयर में फ्लाइट कैडेट के तौर पर कराची में शामिल हुए थे। एक इंटरव्यू में इन्होंने बताया था कि जब उनके पिता को मालूम पड़ा कि वह हवाई जहाज उड़ाते हैं तो उन्होंने कैसे रियेक्ट किया था?
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पिता ने विमान उड़ाने से रोका था
कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल ने जब एक साल से कुछ ज्यादा वक्त रॉयल इंडियन एयरपोर्स में काम कर लिया था तो इनके पिता को एक दोस्त से पता चला कि वह विमान बहुत ही अच्छे से उड़ा लेते हैं। तब उन्होंने बताया कि उनके पिता ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने कहा, 'मुझे विमान उड़ाने से रोक दिया गया। मेरे पिता को डर था कि मैं एयर क्रैश में मर जाऊंगा।' वह हार्वार्ड विमान उड़ाना सीख गए थे। लेकिन, उनके पिता को लगता था कि उनके लिए एयर फोर्स सही जगह नहीं है। दिलचस्प बात ये है कि उनके पिता हरपाल सिंह खुद एक सैनिक थे और आर्मी में कैप्टन रह चुके थे।
कर्नल बनकर समय से पहले रिटायरमेंट ली
एयर फोर्स का करियर छोड़ने की वजह से उनमें जो विद्रोह का भाव था, उसने उन्हें नेवी की ओर प्रेरित किया। वह सिर्फ 23 साल की उम्र में दोबारा नेवी से जुड़ गए और वहां भी 5 साल तक योगदान दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने नेवी में रहते हुए ही अपनी भूमिका निभाई। इसके बाद कुछ साल तक उन्होंने एक सरकारी एजेंसी के लिए काम किया और फिर अप्रैल 1951 में आर्टिलरी रेजिमेंट में शामिल हुए। यहां उनकी नियुक्ति में नेवी में उनके बंदूक चलाने का अनुभव काम आया। आर्मी में उन्होंने लंबे समय तक सेवाएं दीं और जब कर्नल रैंक में पहुंच गए तो 1970 में समय से पहले रिटायरमेंट ले ली।
1965 की जंग को यादगार मानते हैं
आगे उन्होंने अपने बारे में विस्तार से बताते हुए कहा था कि 'मेरी सर्विस का सबसे यादगार हिस्सा 1965 का भारत-पाकिस्तान का युद्ध था, जिसमें 'मैं 71 मीडियम रेजिमेंट को कमांड कर रहा था।........जंग के दौरान पाकिस्तानियों ने हमारी बंदूकों में से एक ले लिया, लेकिन हम उसके पीछे गए और वापस लेकर लौटे। एक गनर के लिए उसकी बंदूकें पवित्र और पूजनीय होती हैं और उसे बस ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता।' इम्फाल में असम राइफल के सेक्टर कमांडर बनने से पहले वह जम्मू-कश्मीर, पंजाब और नॉर्थ-ईस्ट में सभी जगह अपनी सेवाएं दे चुके थे। 1920 में पटियाला में जन्मे कर्नल पृथ्वीपाल सिंह गिल अपनी लंबी उम्र का श्रेय अपनी वंशानुगत जीन और अनुशासित पृष्ठभूमि को देते हैं, जिसमें स्वास्थ्य को अहमियत दी जाती है।
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