सूट-बूट पहनकर कचरा क्यों उठाता है यह बुजुर्ग?
इंडिया गेट पर रोजाना कचरा उठाने के लिए आते हैं 79 साल के सतीश.
वे सूट-बूट पहनकर आते हैं, गले में काली टाई और सिर पर टोपी पहनना कभी नहीं भूलते. आंखों में लगे चश्मे से वे अपने तज़ुर्बे की झलक दे जाते हैं.
उनके कपड़ों और बात करने के अंदाज़ से जब तक हम उनके रूतबे और पैसे के बारे अपने ख़्यालात बना ही रहे होते हैं उतनी ही देर में वे अपनी स्पेशल स्कूटी से उतरते हैं और दिल्ली के इंडिया गेट पर पड़ा कचरा उठाने लगते हैं.
हम बात कर रहे हैं सतीश कपूर की. उनकी उम्र 79 साल हो चुकी है, लेकिन यह उनके लिए महज़ एक आंकड़ा भर है.
लोग उन्हें देख हैरान होते हैं, कुछ लोग हंसते भी हैं लेकिन अपनी झुकी कमर पर हाथ टेक धीरे-धीरे कचरा बीनते सतीश अपने काम में लगे रहते हैं.
जन्मदिन पर आया तो गंदगी देख हैरान रह गया
इस उम्र में जब आमतौर पर बुज़ुर्ग घर पर बैठकर आराम फ़रमाना बेहतर समझते हैं, तब सतीश इंडिया गेट पर सफाई करने क्यों आते हैं?
इस सवाल के जवाब में वे बताते हैं, ''पिछले साल 17 सितंबर को मैं अपना जन्मदिन मनाने इंडिया गेट आया, मैं चाहता था कि शहीदों के इस मंदिर में अपना जन्मदिन मनाऊं, लेकिन यहां पड़ी गंदगी देख मेरा दिल बहुत दुखी हो गया और तभी मैंने सोचा कि क्यों न मैं ही इसे साफ करूं.''
सतीश ग्रेटर कैलाश से रोजाना शाम 4 बजे इंडिया गेट पहुंच जाते हैं और 6 बजे की आरती होने तक वहीं रहते हैं. वे कहते हैं, ''अगर मैं इस काम के लिए किसी की मदद मांगता तो बहुत वक्त लग जाता, इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न अकेले ही इसे शुरू किया जाए. मैं शाम की आरती होने तक यहां कचरा उठाता हूं.''
डंडे वाले अंकल
इंडिया गेट पर सफाई करते हुए सतीश को एक साल से ज़्यादा हो गया है. वे अपने साथ एक छड़ी रखते हैं, जब कभी कोई कूड़ेदान में कचरा नहीं डालता तो सतीश उन्हें डांटने के लिए छड़ी भी दिखाते हैं.
इंडिया गेट पर रेहड़ी-पटरी लगाने वाले भी उन्हें पहचानने लगे हैं. वे कहते हैं कि डंडे वाले अंकल रोज शाम यहां आते हैं और सभी को कचरा कूड़ेदान में डालने के लिए कहते हैं. सतीश को देख अब आस-पास कचरा बीनने वाले भी उनकी मदद करते हैं और जगह-जगह पड़ा कचरा उठाकर उनकी गाड़ी में रखे पॉलीबैग में डाल जाते हैं.
छड़ी दिखाने की अपनी आदत पर सतीश कहते हैं, ''अक्सर लोगों को समझाते-समझाते मुझे गुस्सा आ जाता है, कुछ लोग तो बिल्कुल नहीं मानते और बहुत समझाने के बाद भी कचरा सड़क पर फेंक देते हैं, उन्हीं को डराने के लिए यह छड़ी रखी है. एक-दो बार कुछ युवा इस वजह से मुझसे झगड़ने लगे तो मुझे डर लगा कि कहीं ये मुझे ही उल्टा मारने न लगें, लेकिन फिर भी मैंने छड़ी दिखाना नहीं छोड़ा.''
पिता से मिली प्रेरणा
सतीश बताते हैं कि आज़ादी से पहले उनका परिवार पाकिस्तान में रहता था, लेकिन बंटवारे के वक्त वे हिंदुस्तान आ गए. यहां उनके पिता ने ईंट भट्टा शुरू किया.
शुरुआत में वे पहाड़गंज इलाके में रहते थे, उनके पिता साइकिल से भट्टे तक जाते थे. अपने पिता को याद करते हुए सतीश बताते हैं,'' उनकी मेहनत की वजह से ही आज हम सुकून भरी ज़िंदगी जी रहे हैं, मैंने अपने पिता को मेहनत करते देखा था और इसीलिए मैंने सोचा मैं भी आखिरी दम तक कोई न कोई अच्छा काम करता ही रहूंगा.''
सतीश बताते हैं, ''मैंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं की और काम-धंधे में लग गया, पहले मैंने किराए पर गाड़ियां देने का बिज़नेस किया फिर इसी तरह कई कामों में हाथ आजमाया. मैं एक जगह रुककर रहने वाला इंसान नहीं हूं.''
स्पेशल स्कूटी डिजाइन करवाई
जिस स्कूटी से सतीश रोज इंडिया गेट आते हैं वह भी काफी ख़ास है. उन्होंने उसे थ्री व्हीलर में तब्दील कर दिया है. जिसकी छत पर एक सोलर पैनल लगा है. इस स्कूटी को मॉडिफाई करवाने में उनका लगभग डेढ लाख रुपया खर्च आया.
सतीश बताते हैं, ''कचरा उठाने के लिए मुझे बार-बार झुकना पड़ता है इस वजह से मेरी कमर और रीढ़ की हड्डी पर ज़ोर पड़ता है, मेरे डॉक्टर ने मुझे झुकने से मना किया है इसलिए मैंने स्कूटी को थ्री व्हीलर बनवाया, जिसे चलाना मेरे लिए आसान है.''
सतीश अपने साथ हाथ धोने के लिए सैनिटाइज़र और पानी भी रखते हैं, स्कूटी के आगे उन्होंने एक छोटा सा तौलिया भी लगाया है. जब कोई कचड़ा उठाकर उनके पॉलीबैग में डालता है, सतीश उनके हाथ धुलवाना कभी नहीं भूलते.
सर्दियों में स्कूटी को चार्ज करना मुश्किल हो जाएगा इसलिए वे जल्दी ही इलैक्ट्रिक चार्ज वाली स्कूटी लेने वाले हैं. उनकी स्कूटी में एक लाउडस्पीकर और माइक भी है. साथ ही पेनड्राइव में रिकॉर्ड उनकी आवाज़ भी लगातार चलती रहती है.
लाउडस्पीकर के बारे में सतीश बताते हैं, ''इस उम्र में ज़्यादा ज़ोर से बोलना मुश्किल होता है, इसलिए माइक और लाउडस्पीकर भी साथ लेकर चलता हूं. कई बार ज़्यादा बोलने से सांस फूलने लगती है इसलिए मैंने पेनड्राइव में अपनी आवाज़ रिकॉर्ड कर ली है और उसे भी स्पीकर पर चला देता हूं.''
'लोग मजाक बनाते हैं लेकिन बदल भी रहे हैं'
इंडिया गेट पर रोजाना सैकड़ों लोग आते हैं. सतीश उनके लिए किसी अजूबे से कम नहीं. लोग उन्हें देख हंसते हैं, बदले में सतीश भी मुस्कुराते हुए कह देते हैं कि 'हंस लो लेकिन कचरा कूड़ेदान में डालो.'
क्या एक साल में लोगों के व्यवहार में कुछ बदलाव आया? इस पर सतीश कहते हैं, ''धीरे-धीरे लोग बदल रहे हैं, अगर वो मेरी गाड़ी देख लेते हैं तो कचरा उठाने लगते हैं लेकिन फिर भी बहुत काम करना बाकी है, कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं कब तक लोगों को डांटता-समझाता रहूंगा.''
अपने बूढ़े कदमों से धीरे-धीरे कचरा उठाते सतीश को देख लगता है कि शायद अपने इसी जवां जज़्बे के दम पर एक दिन वे इंडिया गेट पर पड़ा हर एक तिनका समेट लेंगे.