सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व जजों ने जस्टिस दीपक मिश्रा के फैसले को गलत माना
नई दिल्ली। जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के भीतर रोस्टर को लेकर विवाद खड़ा हुआ और इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास इस बाबत फैसला लेने का पूरा अधिकार है कि वह किसे कौन सा केस देते हैं। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद जजों के बीच दो अलग-अलग राय खुलकर सामने आई है। जजों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि क्या जस्टिस दीपक मिश्रा को अपने से जुड़े मामले की सुनवाई करनी चाहिए थी, जबकि वह खुद इस पर मौजूद हैं।
दूसरी बेंच का गठन करना चाहिए था
दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एपी शाह का कहना है कि यह सही नहीं है कि मुख्य न्यायाधीश ही अपने से जुड़े मामले की सुनवाई करें, जब यह मामला खुद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के अधिकार से जुड़ा था, तो उनका इस मामले की सुनवाई करना ठीक नहीं है। जस्टिस शाह ने कहा कि सीजेआई को यह मामला नहीं सुनना चाहिए था, यहां तक कि उन्हे इस मामले की सुनवाई के लिए बेंच का भी गठन नहीं करना चाहिए था।
आखिर दूसरा मामला क्यों नहीं सुना
जस्टिस शाह ने कहा कि मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि सीजेआई को इस बात की जानकारी थी कि जिसमे दूसरी याचिका दायर करके कहा गया था कि पांच वरिष्ठ जजों की बेंच को कौन सा केस किस जज को दिया जाना है यह तय किया जाना चाहिए, इसे आखिर सीजेआई के अधिकारों के मामले की सुनवाई के दौरान क्यों नहीं सुना गया। आपको बता दें कि प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि कौन सा केस किस जज को सुनवाई के लिए दिया जाना चाहिए इसे सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जजों को तय करना चाहिए नाकि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को।
व्यवस्था पारदर्शी होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर जस्टिस शाह ने कहा कि व्यवस्था को पारदर्शी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से सीजेआई की ओर से यह सही नहीं किया गया है। यह एक बड़ा मुद्दा है और इसे एक सही बेंच को सौंपा जाना चाहिए था, नाकि खुद सीजेआई को इस मामले की सुनवाई करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि यह एक मौका था जब व्यवस्था में सुधार किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया यह काफी दुखद है।
आखिर कौन करेगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस केटी थॉमस ने कहा कि अगर सीजेआई खुद व्यक्तिगत रूप से इस मामले में पक्षकार थे तो उन्हें इस मामले को दूसरी बेंच को देना चाहिए था। जस्टिस थॉमस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से जुड़े मामले की सुनवाई कौन करेगा इसका फैसला लेने का भी अधिकार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को है। ऐसे में मेरा मानना है कि सीजेआई को इस मामले को खुद नहीं सुनना चाहिए था, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो इस मामले की सुनवाई उनकी ही पसंद की बेंच करती है।
1997 में सीजेआई ने नहीं की थी अपने मामले की सुनवाई
जस्टिस थॉमस ने 1997 के मामले को याद करते हुए कहा कि रोस्टर का मुद्दा पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की बेच के सामने भी आया था, जिसमे जस्टिस एएस आनंद भी शामिल थे। उस वक्त मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वर्मा ने इस मामले की सुनवाई नहीं की थी क्योंकि यह मामला उनसे ही जुड़ा हुआ था। जस्टिस थॉमस ने कहा कि अगर यह मामला सिर्फ जस्टिस दीपक मिश्रा से जुड़ा होता तो इसे कोई और जज सुन सकता था। 1007 में जस्टिस आनंद ने सीजेआई वर्मा के रोस्टर से जुड़े मामले की सुनवाई की थी, क्योंकि इस मामले में राजस्थान कोर्ट ने जस्टिस वर्मा का नाम लिया था जिस वक्त जस्टिस वर्मा राजस्थान हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश थे। यही वजह थी कि जस्टिस वर्मा ने इस मामले की सुनवाई जस्टिस आनंद को दी थी।
सीजेआई के फैसले को सही बताया
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन इस मामले में अलग राय रखते हैं। वह कहते हैं कि मुझे नहीं पता है कि क्या समस्या है, वह प्रशासनिक जज हैं, वह मास्टर ऑफ रोस्टर हैं। यह सभी हाई कोर्ट में कंवेंशन है कि चीफ जस्टिस सभी जजों को काम सौपेंगे। मुझे इस मसले पर कोई सस्या नहीं दिखाई देती है। अगर सीजेआई मामला आवंटित नहीं करते हैं तो आखिर कौन करेगा। हमारा सिस्टम अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की तरह नहीं है, जहां सभी जज एक साथ बैठते हैं।
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