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FACT CHECK: गैर-भारतीय मुस्लिमों की सिटिजनशिप पात्रता के खिलाफ नहीं है नागरिकता संशोधन बिल!

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बेंगलुरू। चर्चित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 बुधवार को संसद के उच्च सदन राज्यसभा में पेश कर दिया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोपहर 12 बजे राज्यसभा में बिल सदन के पटल पर रखा और बिल को लेकर पूरे देश में फैलाए जा रहे भ्रांतियों पर सफाई देते हुए कहा कि बिल में कहीं भी चिन्हित तीन देशों के मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता हासिल करने से नहीं रोकती है।

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गृह मंत्री के मुताबिक बिल में तीन पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ित हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी अल्पसंख्यकों को नागरिकता की हिमायत करते हुए उन्हें प्राथमिकता देती है।

गौरतलब है मुस्लिम समुदाय को नागरिक संशोधन विधयेक 2019 में शामिल नहीं करने के पीछे तर्क यह है कि जिन तीन पड़ोसी देशों में सताए गए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी लोगों को भारत में आसानी से नागरिकता देने की बात करती हैं, उसमें मुस्लिम पीड़ितों के दायरे में नहीं आते हैं।

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क्योंकि चिन्हित तीनों पड़ोसी देश मसलन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान पूर्ण व आंशिक रूप से इस्लामिक राष्ट्र हैं, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और वहां उनका हित ज्यादा सुरक्षित हैं। हालांकि बिल कहीं भी तीनों मुस्लिम देशों के मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता लेने से प्रतिबंधित नहीं करती हैं।

बावजूद इसके नागरिकता संशोधित विधेयक 2019 को मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है। लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री ने स्पष्ट कहा था कि मुस्लिमों को बिल से बाहर रखने की वजह चिन्हित तीनों देशों के मुस्लिम राष्ट्र होना है, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं।

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उसके बावजदू अगर कोई मुस्लिम भारत की नागरिकता के लिए आवेदन करता है तो उसके आवेदन पर विचार किया जाएगा, उस पर किसी प्रकार प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा। गृह मंत्री ने हाल ही में भारतीय नागरिकता हासिल करने वाले मशूहर संगीतकार अदनान सामी का नाम लेते हुए बताया कि ऐसे सैंकड़ों लोग जिन्हें भारतीय नागिरकता उनके आवेदन पर दिया जा चुका है।

गृह मंत्री ने सदन में यह भी साफ कर दिया कि देश के मूल नागरिकों में शामिल मुसलमान को इस बिल से कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि जो भारत के मूल नागरिक हैं उन्हें कोई खतरा नहीं। बिल से इस देश के किसी भी मुसलमान का कोई लेना देना नहीं है, यहां का मुसलमान सम्मान से जिएगा। शाह ने कहा कि पड़ोसी देशों में मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती है।

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इसलिए इस बिल में उन्हें जगह नहीं दी गई और अगर ऐसा हुआ तो यह भारत उन्हें भी इसका फायदा देने पर विचार करेगा। साथ ही दावा किया कि यह बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ बिल्कुल नहीं है, क्योंकि यह बिल भारतीय मुसलमानों की नागरिकता पर सवाल नहीं उठाता है।

वहीं, बिल पर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जा रहे समानता के अधिकार का उल्लंघन पर पलटवार करते हुए अमित शाह ने कांग्रेस को याद दिलाया कि पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 1971 में निर्णय किया था कि बांग्लादेश से आए लोगों को भारत की नागरिकता दी जाए, लेकिन तब पाकिस्तान से आए लोगों के साथ भेदभाव किया गया।

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इसी तरह कांग्रेस शासन काल में युगांडा से आए लोगों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन तब इंग्लैंड से आए लोगों से भेदभाव किय गया। उसके बाद राजीव गांधी ने असम समझौता किया। उसमें भी 1971 की ही कट ऑफ डेट रखी तो क्या समानता हो पाई? शाह ने कहा कि देश में हर बार तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता दी जाती रही है इसलिए यह कहना कि मुस्लिमों के साथ भेदभाव किया गया सरासर गलत है।

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उल्लेखनीय है कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां नागरिक संशोधन विधेयक 2019 को मुस्लिमों के खिलाफ बता रही हैं। इसके उनका तर्क हैं कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं देनी चाहिए। जबकि 18 दिसंबर, वर्ष 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने राज्यसभा में पड़ोसी राज्यों के अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता की मांग की थी। आज कांग्रेस को क्या हो गया है? गृह मंत्री बुधवार को राज्यसभा में जवाब देते हुए कहा कि धर्म के आधार पर देश के बंटवारे को स्वीकृत देने वाली कांग्रेस विधेयक पर राजनीति कर रही हैं।

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कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा धर्म के आधार पर टू नेशन थ्योरी की ठीकरा वीर सावरकर पर फोड़ दिया जबकि टू नेशन थ्योरी का ईजाद 1876 में सर सैय्यद अहमद खां द्वारा किया गया था। सर सैय्यद अहमद खां ने वर्ष 1876 में टू नेशन थ्योरी का ईजाद बनारस में तब दिया था जब वहां उर्दू, फारसी के शब्दों को कचहरी आदि से हटाकर हिंदी के शब्दों को शामिल करने के लिए आंदोलन चल रहा था। दिलचस्प बात यह है कि इस घटना के 7 साल बाद वीर सावरकर का जन्म हुआ था।

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हालांकि नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 से मुस्लिमों को बाहर रखने का आधार सिर्फ भौगोलिक नहीं है, क्योंकि बिल में चिन्हित तीनों देशों के संविधान के मुताबिक इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान एक इस्लाम राज्य का धर्म है। इसी तरह पाकिस्तान का संविधान कहता है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान का धर्म इस्लाम है।

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वहीं, बांग्लादेश का संविधान भी इस्लाम को राज्य का धर्म बताता है। 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों द्वारा अपने अल्पसंख्यकों के संरक्षण का संकल्प लिया गया है। एक तरह जहां भारत में नेहरू-लियाकत समझौता का गंभीरता से पालन किया गया, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए जुल्म हुआ।

इसकी तस्दीक बिल में चिन्हित पाकिस्तान, बांग्लादेश और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति और आबादी से स्पष्ट हो जाती हैं। वर्ष 1947 में पाकिस्तान की कुल आबादी में हिंदुओं की आबादी 25 फीसदी थी, लेकिन अभी उनकी जनसंख्या कुल आबादी का मात्र 1.6 प्रतिशत रह गई है।

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वहां गैर-मुस्लिमों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होना आम बात है। यही नहीं, 24 मार्च, 2005 को पाकिस्तान में नए पासपोर्ट में धर्म की पहचान को अनिवार्य कर दिया गया और स्कूलों में इस्लाम की शिक्षा दी जाती है, जो यह बताने के लिए काफी है कि पाकिस्तान में गैंर-हिंदू कितनी प्रताड़ना में जिंदगी गुजारते हैं, जहां अल्पसंख्यकों के लिए धार्मिक आजादी तक नहीं है।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों इस्लामिक देशों में गैर-मुस्लिमों, खासकर हिंदुओं के साथ असहिष्णु व्यवहार किया जाता है। जनजातीय बहुल इलाकों में अत्याचार ज्यादा है। इन क्षेत्रों में इस्लामिक कानून लागू करने का भारी दबाव है। हिंदू युवतियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म, अपहरण की घटनाएं आम हैं।

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पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को जबरन इस्लामिक मदरसों में रखकर मतांतरण का दबाव डाला जाता है। गरीब हिंदू तबका बंधुआ मजदूर की तरह जीने को मजबूर है। अफगानिस्तान में हिंदू और सिख अल्पसंख्यक राजनीतिक और सामाजिक भेदभाव का शिकार रहे हैं। यही कारण था कि 70 के दशक में हिंदू और सिखों की एक बड़ी संख्या देश छोड़कर चली गई।

कमोबेश यही हालत बांग्लादेश में हैं, जहां हिंदू अल्पसंख्यकों की संख्या तेजी से घटी है। हाल ही में बांग्लादेश ने "वेस्टेड प्रापर्टीज रिटर्न (एमेंडमेंट) बिल 2011"को लागू किया है, जिसमें जब्त की गई या मुसलमानों द्वारा कब्जा की गई हिंदुओं की जमीन को वापस लेने के लिए क्लेम करने का अधिकार नहीं है। इस बिल के पारित होने के बाद हिंदुओं की जमीन कब्जा करने की प्रवृति बढ़ी है और इसे सरकारी संरक्षण भी मिल रहा है।

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इसका विरोध करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर भी जुल्म ढाए जाते हैं। इसके अलावा हिंदू इस्लामी कट्टरपंथियों के निशाने पर भी हैं। उनके साथ मारपीट, दुष्कर्म, अपहरण, जबरन मतांतरण, मंदिरों में तोडफोड़ और शारीरिक उत्पीड़न आम बात है। अगर यह जारी रहा तो अगले 25 वर्षों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी ही समाप्त हो जाएगी।

इतिहास गवाह है कि तीनों पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर धर्म-परिवर्तन के लिए दबाव, उनकी महिलाओं पर प्रताड़ना, बच्चियों को उठाकर ले जाने जैसे अपराध से दो चार होना पड़ा, जिसके चलते उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी है। चूंकि इस्लामी मुल्कों में मुसलमानों पर ज़ुल्म नहीं हो सकता इसलिए बिल में मुसलमानों का नाम नहीं लिया गया है।

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सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे उस झूठ से पर्दा उठ चुका है, जिसमें कैब और एनआरसी की आड़ में मुसलमानों के ख़िलाफ़ एजेंडा चलाया जा रहा था, क्योकि दुनिया कोई ऐसा देश नहीं है जो अपने नागरिकों का लेखा-जोखा नहीं करता है। वर्तमान समय में पूरी दुनिया अवैध आव्रजन और घुसपैठियों से परेशान हैं।

यह भी पढ़ें- जानिए नागरिकता संशोधन बिल पर समर्थन देने से क्यों डर रही शिवसेना ?

Comments
English summary
Citizenship amendment Bill 2019 talks about granting citizenship to Hindus, Sikhs, Jains, Buddhists, Christians and Parsis of three neighboring countries where muslims are in majority and they do not come under the purview of the victims. Mentioned three neighboring countries like Pakistan, Bangladesh and Afghanistan, are fully and partially Islamic nations and compared to other minorities muslims interests are more secure there. However, the bill does not prohibit Muslims from the three Muslim countries from granting Indian citizenship.
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