नागरिकता संशोधन बिल पर ये 8 भ्रामक बातें, सरकार ने दिया जवाब
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन विधेयक को लोकसभा से मंजूरी मिलने के बाद आज राज्यसभा में पेश किया जाएगा।गृहमंत्री अमित शाह इस बिल को राज्यसभा में पेश करेंगे जिसपर दोपहर बाद सदन में चर्चा होगी। बीजेपी ने अपने सांसदों को आज राज्यसभा में उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया है। वहीं, इस बिल का पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में भारी विरोध हो रहा है। असम और त्रिपुरा में इस बिल का भारी विरोध देखने को मिल रहा है। वहीं विपक्ष सरकार पर इस बिल के जरिए मुस्लिमों से भेदभाव करने का आरोप लगा रहा है। इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यक (बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई, हिंदू, पारसी) शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। इस बिल को लेकर 8 भ्रामक बातें फैलाईं जा रही हैं, जिनका सरकार ने एक-एक कर जवाब दिया है।
मिथक- 1. नागरिकता संशोधन विधेयक बंगाली हिंदुओं को नागरिकता प्रदान करेगा
वास्तविकता- नागरिकता संशोधन विधेयक बंगाली हिंदुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान नहीं करता है। यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के छह अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के लिए बनाया जा रहा कानून है। यह बेहद मानवीय आधार पर प्रस्तावित किया गया है क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय के ये लोग धार्मिक उत्पीड़न के कारण इन तीन देशों से भागने को मजबूर हुए थे।
मिथक- 2. नागरिकता संशोधन विधेयक 'असम समझौते' को कमजोर करता है
वास्तविकता- जहां तक कट-ऑफ डेट का सवाल है, ये नागरिकता संशोधन विधेयक असम समझौते को कमजोर नहीं करता है।
मिथक- 3. नागरिकता संशोधन विधेयक असम के मूल निवासियों के हितों के खिलाफ है
वास्तविकता- नागरिकता संशोधन विधेयक केवल असम पर केंद्रित नहीं है। यह पूरे देश के लिए मान्य है। नागरिकता संशोधन विधेयक निश्चित तौर पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ नहीं है।
मिथक 4. नागरिकता संशोधन विधेयक से बंगाली भाषी लोगों का वर्चस्व बढ़ेगा
वास्तविकता- अधिकांश हिंदू बंगाली आबादी असम के बराक घाटी में बसी हुई है, जहां बंगाली को दूसरी राज्य भाषा घोषित किया गया है। ब्रह्मपुत्र घाटी में, हिंदू बंगाली अलग-थलग बसें हैं और उन्होंने असमी भाषा को अपना लिया है।
मिथक 5. बंगाली हिंदू असम के लिए बोझ बन जाएंगे
वास्तविकता- नागरिकता संशोधन बिल पूरे देश में लागू है। धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले व्यक्ति केवल असम में ही नहीं बसें हैं। वे देश के अन्य हिस्सों में भी रह रहे हैं।
मिथक- 6. नागरिकता संशोधन बिल बांग्लादेश से हिंदुओं के नए प्रवासन को बढ़ाने का काम करेगा
वास्तविकता- अधिकांश अल्पसंख्यक पहले ही बांग्लादेश से पलायन कर चुके हैं। इसके अलावा, हाल के वर्षों में बांग्लादेश में उन पर अत्याचारों के मामलों में कमी आई है। जहां तक शरणार्थियों को नागरिकता देने का सवाल है तो 31 दिसंबर, 2014 की कट-ऑफ तारीख है और नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत उन अल्पसंख्यक शरणार्थियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा जो कट-ऑफ तारीख के बाद भारत आते हैं।
मिथक- 7. ये बिल हिंदू बंगालियों को समायोजित कर आदिवासी भूमि हड़पने का एक हथकंडा है
वास्तविकता- अधिकांश हिंदू बंगाली आबादी असम के बराक घाटी में बसे हुए हैं जो आदिवासी इलाके से काफी दूर है। दूसरी अहम बात कि ये बिल आदिवासी भूमि संरक्षण के लिए कानूनों और नियमों में विरोधाभास पैदा नहीं करता है।नागरिकता संशोधन बिल उन क्षेत्रों में लागू नहीं होता जहां ILP और संविधान की छठी अनुसूची के प्रावधान लागू होते हैं।
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मिथक- 8. नागरिकता संशोधन विधेयक मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है
किसी भी देश का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है, यदि वह नागरिकता अधिनियम, 1955 के मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक, ऐसा करने के लिए योग्य है। नागरिकता संशोधन बिल इन प्रावधानों से कोई छेड़छाड़ नहीं करता है। इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए 9 अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है।