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Citizenship Amendment Bil: 'कहत जमीर सुनो भई उद्धव, यह कैसी मजबूरी?'

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बेंगलुरू। भारतीय संसद में पेश हो रहे नागिरकता संशोधन विधेयक 2019 पर समर्थन कर हिंदू ह्रदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी को चौंका दिया था। एक हफ्ते पूर्व महाराष्ट्र में गठित महा विकास अघाड़ी मोर्च में शामिल हुई शिवेसना का यह स्टैंड सरकार में सहयोगी कांग्रेस और एनसीपी के स्टैंड के खिलाफ है।

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एक कट्टर हिंदूवादी पार्टी में शुमार शिवसेना द्वारा चला गया यह दांव महाराष्ट्र सरकार को नेस्तनाबूद करने के लिए काफी है। शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन आसान नहीं है, क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति के सरताज बन चुके उद्धव ठाकरे सियासत के लिए किए वैचारिक समझौते की याद गई थी और अब शिवसेना को विधेयक के विरोध में खड़ा दिखना मजबूरी हो गई है।

शिवसेना की राजनीतिक मजबूरी ही है कि अब उसके लिए हिंदू बोझ बन चुके हैं। यह वहीं शिवसेना है, जिसकी स्थापना का उद्धेश्य हिंदू और हिंदूवादी वैचारिकता की रक्षा करना था। नागरिक संशोधन विधेयक 2019 पड़ोसी तीन देशों क्रमशः बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदुओं को नागरिकता देने की वकालत करती है।

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हालांकि विधेयक में पीड़ितों में शामिल सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी को भी नागरिकता देने की बात की गई है, लेकिन मुस्लिम को दूर रखा गया है, क्योंकि जिन तीन देशों के सताए गए नागरिकों को भारत में नागरिकता देने की बात की गई है, वो तीनों ही देश इस्लामिक हैं, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है।

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 सीधे-सीधे पाकिस्तान, अफगानिस्तान में सताए गए हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध नागरिकों को नागरिकता देने की वकालत कर रही है, लेकिन तीनों पड़ोसी देशों में रह रहे इच्छुक ईसाई और पारसी समुदाय को भी नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।

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विपक्ष मुस्लिम को नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 से दूर रखने को वोट बैंक की राजनीति करार दे रही है और बिल का विरोध कर रही हैं। इसमें मूल रूप से कांग्रेस विरोध कर रही है, जिसमें उसके साथ प्रमुख क्षेत्रिय दल टीएमसी, आरजेडी, सपा और एनसीपी शामिल थी, लेकिन अब शिवसेना भी मुखर हो गई है। हालांकि इसे शिवसेना की सियासी मजबूरी की तरह देखा जा रहा है।

शिवसेना मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय में प्रकाशित लेख में शिवसेना ने कहा है कि देश में समस्याओं की कमी है क्या, जो बाहरी बोझ को छाती पर लिया जा रहा है। निः संदेह शिवसेना द्वारा दिया गया यह बयान हिंदू ह्रदय सम्राट बालासाहिब ठाकरे की वैचारिकता के बिल्कुल उलट है।

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यह परस्पर विरोधी पार्टी के साथ सियासत में उतरी शिवसेना की मजबूरी ही है कि वह देश की अर्थव्यवस्था की दुहाई देकर अखंड भारत के हिंदुओं की उपेक्षा पर उतर आई है। शिवसेना संपादकीय में लिखती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में जबरदस्त गिरावट है। ऐसे में पड़ोसी मुल्कों में सताए गए हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों को नागरिकता देने का निर्णय सही नहीं हैं, जिनकी जड़े पूरी तरह से सनातन हिंदू से पूरी तरह से जुड़ी हैं।

महाराष्ट्र की सियासत में उलझकर परस्पर विरोधी पार्टी से गठबंधन कर चुकी शिवसेना ने नागरिक संशोधन विधेयक 2019 के विरोध में अमादा क्यूं है, यह मजबूरी सभी को अच्छी तरह से समझ में आ सकती है, लेकिन उसमें राजनीति ढूंढना शिवसेना की वैचारिक पतन को प्रदर्शित करती हैं। शिवसेना ने गठबंधन राजनीति की मजबूरी में बिल के विरोध में उतर आई है।

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इसकी बानगी महाराष्ट्र सीएम बनते ही उद्धव ठाकरे द्वारा आरे मेट्रो कार सेड प्रोजेक्ट की रोक लगाने के आदेश और बालासाहेब ठाकरे मेमोरियल के लिए 5000 पेड़ काटने को मंजूरी देने से समझा जा सकता है। इससे पहले भी राजनीतिक मजबूरी के चलते बीजेपी ने महाराष्ट्र में 5 फीसदी आरक्षण मुस्लिमों को देने पर सहमित जता चुकी है, जिसका शिवसेना ने बीजेपी की सरकार में रहते हुए पूरे पांच वर्ष तक विरोध किया था।

विरोध में अंतरात्मा की आवाज नहीं सुन पा रही शिवसेना ने सवाल उठाते हुए कहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 में राष्ट्रहित से ज्यादा वोट बैंक की राजनीति हो रही है। शिवसेना का आगे कहना है कि नागरिकता संशोधन विधेयक लाकर बीजेपी ऐसा कानून बनाने की कोशिश कर रही है, जिसके जरिए हिंदू और मुसलमान में विभाजन कर दिया गया है।

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खैर, यह समझना मुश्किल नहीं है, क्योंकि उपरोक्त भाषा शिवसेना की नहीं हैं, उसके अंतरात्मा की आवाज़ नहीं है। संपादकीय में शिवसेना स्वीकार कर रही है कि तीनों पड़ोसी इस्लामिक देशों में हिन्दुओं के साथ अन्याय हो रहा है, जिन्हें भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद से दूसरे दर्जे का नागरिक माना जा रहा है, इसलिए हिन्दुओं को भारत में शरण लेनी मजबूरी बन गई है।

लेकिन शिवसेना अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को अनदेखा करके अब सियासत पर उतर आई है। मुंह छिपाने के लिए शिवसेना ने कश्मीरी पंडितों का मुद्दा उठा दिया। शिवसेना यह भूल गई कि केंद्र की बीजेपी सरकार ने ही अलगावाद की आग में पिछले 70 वर्षों से जल रहे जम्मू-कश्मीर को मुक्ति कराया है जब अनुच्छेद 377 को खत्म कर दिया गया।

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बड़ा सवाल यह है कि महाराष्ट्र में हिंदूवादी राजनीति करने वाली शिवसेना के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी मोर्च की सरकार कब तक टिकी है, क्योंकि एक बार जब शिवसेना ने नागरिक संशोधन विधेयक 2019 के समर्थन का ऐलान किया तो महाराष्ट्र में साझा सरकार संकट में आ गई। संभवतः यही वह डर था, जिसके चलते कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी सेक्युलरिज्म के रक्षार्थ शिवसेना को समर्थन देने में हिचक रहीं थी।

लेकिन पतन की कगार खड़ी कांग्रेस के लिए खोने को कुछ नहीं था, तो वह शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई। शिवसेना ने बीच रास्ते में ही कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और सियासी लालच में अपनी बात से मुकर गई और अब नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में खड़ी हो गई है, लेकिन आगे राष्ट्रवाद के किसी मुद्दे पर शिवसेना खुद को कैसे संभालेगी, यह देखने वाली बात होगी।

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शिवसेना अपना वजूद और अपनी पहचान से अच्छी तरह से वाकिफ है और वह अच्छी तरह से जानती हैं कि महाराष्ट्र की साझा सरकार की मजबूती उसके सेक्युलर होने और दिखने में हैं, लेकिन शिवसेना की अंतरात्मा और उसके जमीर बार-बार जब हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर उसकी पुराने पहचान का हवाला देकर परीक्षा लेंगी तो शिवसेना क्या करेगी।

गौरतलब है गत 30 नंवबर को शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। अभी तक महाराष्ट्र की साझा सरकार को गठित हुए एक महीने भी नहीं बीता है और महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी मोर्च के रिंग मास्टर यानी एनसीपी चीफ शरद पवार उद्धव को कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से इतर जाने की इजाजत बिल्कुल नहीं देंगे।

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माना जा रहा है कि विपक्ष के अवरोध के बावजदू नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 का संसद में पास हो जाएगा। अगर नागरिकता संशोधन विधेयक पास होता है, तो सबसे अधिक किसी पार्टी का नुकसान होगा तो वह होगी शिवसेना। शिवसेना की पहचान एक हिंदूवादी पार्टी की रही है और सियासत के लिए शिवसेना ने नागरिकता के लिए देश के अंदर और बाहर इंतजार कर रहे हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्ध को बोझ बताकर मुश्किल मोल ली है।

महाराष्ट्र में शिवसेना की सियासत की गाड़ी कितनी दूर तक चलेगी, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अगर महाराष्ट्र में परस्पर विरोधी सरकार गिरती है और महाराष्ट्र में मध्यावधि चुनाव कराए जाते हैं तो शिवसेना को हिंदु बहुसंख्यकों वोटों के तरसना पड़ सकता है और किसी दल को सबसे अधिक हिंदू बहुसंख्यकों का वोट मिलेगा, तो वो होगी बीजेपी।

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क्योंकि यह सच्चाई किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों की हालत कैसी है। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध का आविर्भाव हिंदू धर्म से ही हुआ है और उनकी पहली पसंद भी हिंदुस्तान की नागरिकता है।

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 से मुस्लिम समुदाय को किसी दुर्भावना से नहीं बाहर रखा गया है। चूंकि तीना राष्ट्र इस्लामिक हैं, जहां हिंदु, सिख, जैन और बौद्ध को संभावित खतरा है और इसकी गवाही पिछले 70 वर्षों के आंकड़े भी देते हैं। इसके इतर तीनों पड़ोसी राष्ट्रों में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, जिन्हें वहां कोई खतरा है।

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हर लिहाज से इस्लामिक राष्ट्र बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मुस्लिमों का हित सुरक्षित है। शायद यही कारण है कि मुस्लिम को नागरिकता संशोधन विधेयक से दूर रखा गया है, लेकिन बांग्लादेश और म्यानमांर से पश्चिम बंगाल, असम और पूर्वोतर राज्यों में रहे अवैध मुस्लिम की वकालत वही पार्टियां कर रही हैं, जिन्हें उनसे वोट मिलता आया हैं।

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 के विरोध में खड़ी कांग्रेस और टीएमसी का मतलब समझा जा सकता है, लेकिन शिवसेना का विरोध महज सियासी मजबूरी से अधिक कुछ नहीं हैं। कल को अगर महाराष्ट्र की परस्पर विरोधी गठबंधन वाली सरकार गिरती है, तो शिवसेना ही सबसे पहली पार्टी होगी इसके पक्ष में खड़ी दिखेगी।

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उल्लेखनीय है मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि बीते 50 सालों में पाकिस्तान में बसे 90 फीसदी हिंदू देश छोड़ चुके हैं। धीरे-धीरे उनके पूजा स्थल और मंदिर भी नष्ट किए जा रहे हैं। हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्जे के कई मामले सामने आ रहे हैं।

एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 के आंकड़ों में सामने आया है कि यहां 95 फीसदी हिंदू मंदिरों को नष्ट किया जा चुका है। आंकड़ों के अनुसार साल 1990 के बाद से अल्पसंख्यकों के 428 पूजा स्थलों में से 408 को नष्ट कर, वहां समाधि, शौचायल, टॉय स्टोर, रेस्टोरेंट, सरकारी ऑफिस और स्कूल आदि बनाए गए हैं।

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1951 की जनगणना के अनुसार पश्चिमी पाकिस्तान में 1.6% हिंदू जनसंख्या थी, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (आधुनिक बांग्लादेश) में 22.05% थी। 47 वर्षों के पश्चात् 1997 में पाकिस्तान की हिन्दू जनसंख्या में वृद्धि नहीं हुई। वर्ष 1997 तक पाकिस्तान में 1.6% हिन्दू थे और बांग्लादेश में हिन्दू-जनसंख्या भारी गिरावट आई, जहां महज 10.2% हिन्दू ही बचे।

पाकिस्तान में हिन्दू समुदाय की आबादी वर्तमान में करीब 2% आबादी है, जिनमें सिंध में करीब 7 %, थाकारकर जिला में करीब 35 %, मिथि में 80% ,बलूचिस्तान में करीब 1.1% और पंजाब में करीब 1.6 % निवास करती है। नागरिकता संशोधन विधेयक केवल उन्हीं सताए हुए लोगों की चिंता करती है, जो मुस्लिम देशों में अल्पसंख्यक हैं और सताए हुए हैं।

यह भी पढ़ें- नागरिकता संशोधन बिल पर फूटा ओवैसी का गुस्सा, कहा-मुसलमानो को दूसरे दर्जे का नागरिक मानती है मोदी सरकार

Comments
English summary
The political compulsion of Shiv Sena is that Hindus have become a burden for them now. It is the Shiv Sena, whose establishment was intended to protect Hindu and Hinduist ideology. The Civil Amendment Bill 2019 advocates granting citizenship to persecuted Hindus in neighboring three countries, Bangladesh, Pakistan and Afghanistan respectively.
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