अब एनडीए में शामिल अकाली दल भी बोला CAA में मुस्लिमों को भी शामिल किया जाना चाहिए
नई दिल्ली। एनडीए में शामिल अकाली दल ने नागरिकता संशोधन कानून में मुसलमानों को शामिल ना करने को लेकर सवाल किया है। शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि ये कानून प्रताड़ित हो रहे अल्पसंख्यकों की मदद करेगा लेकिन इसमें मुस्लिमों को भी शामिल किया जाना चाहिए। हमारा देश सेक्युलर है, ऐसे में किसी एक धर्म को इस कानून से बाहर करना ठीक नहीं है।
पंजाब में भाजपा के साथ सरकार चला चुके और केंद्र सरकार में शामिल अकाली दल की ओर से कहा गया है कि देश का संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात करता है। ऐसे में किसी भी धर्म के व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। इस कानून में मुस्लिम समुदाय के लोगों का शामिल नहीं होना, ठीक नहीं है।
पार्टी प्रवक्ता ने कहा, हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई जिनकी पाकिस्तान-अफगानिस्तान-बांग्लादेश में प्रताड़ना हुई, उन्हें ये बिल भारत में जगह देगा ये बिल्कुल सही है लेकिन, इसका दूसरा पहलू भी ये है कि मुस्लिम इसमें शामिल नहीं हैं। बता दें कि अकाली दल ने संसद में कानून के समर्थन में वोट किया था।
इससे पहले नागरिकता संशोधन कानून को लेकर असम में सत्तारूढ़ भाजपा के प्रमुख घटक दल असम गण परिषद (एजीपी) ने भी विरोध की घोषणा की है। एजीपी ने कहा है कि वो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी।
हाल ही में संसद से पास हुए विवादित नागरिकता संशोधन कानून का विपक्ष ने जोरदार विरोध किया है। वहीं आम लोग भी देश के कई हिस्सों में इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। नागरिकता कानून के देश के तकरीबन हर हिस्से में विरोध हो रहा है। असम, त्रिपुरा और मेघालय में बीते एक हफ्ते से जनजीवन ठप है। तो दूसरे हिस्सों में भी प्रदर्शन हुए हैं। दिल्ली, बंगाल और कई हिस्सों में हिंसा भी हुई है। वहीं देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों के छात्र भी लगातार कानून के खिलाफ विरोध दर्ज करा रहे हैं।
नागरिकता संशोधन एक्ट, 2019 बीते हफ्ते सदन से पास हुआ है। इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता का प्रस्ताव है। कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दल और कई संगठन भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं।
नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी दो दर्जन से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं। सर्वोच्च अदालत में पीस पार्टी, रिहाई मंच, जयराम रमेश, प्रद्योत देब बर्मन, जन अधिकार पार्टी, एमएल शर्मा, असदुद्दीन ओवैसी, महुआ मोइत्रा की ओर से याचिकाएं डाली गई हैं। इनकी मांग है कि इस कानून को रद्द किया जाए।
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