असम में अब CISF जवान को भेजा गया डी-वोटर नोटिस, लोगों ने सरकार को घेरा
गुवाहाटी। असम में सीआईएसएफ के एक जवान का नाम डी-वोटर लिस्ट में आया है। रविवार को जवान की ओर से दावा किया गया कि उसे असम के कामरूप जिले के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल की ओर से डाउटफुल वोटर नोटिस भेजा गया है। इस नोटिस की वजह से उसे तुरंत ही पश्चिम बंगाल के बांकुरा स्थित अपने घर से भागकर असम आने को मजबूर होना पड़ा। सीआईएसएफ के जवान अली जो असम के नागरबेरा के दलगांव के रहने वाले हैं, डी-वोटर नोटिस मिलने से हैरान हैं।
यह भी पढ़ें-असम में कारगिल जंग में हिस्सा लेने वाले सैनिक को बता दिया विदेशी नागरिक
सभी डॉक्यूमेंट होने के बाद भी विदेशी
उन्होंने सवाल किया, 25 वर्षों तक सीआईएसएफ के साथ जुड़े रहने और देश की सेवा करने के बाद मुझे नहीं मालूम कि मुझे कैसे अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी चाहिए। क्या सरकार इस तरह से ही मुझे सम्मानित करना चाहती है?' अली ने बताया कि उनके पास सभी डॉक्यूमेंट्स हैं जो जरूरी होने चाहिए। अली के पास सन् 1947 से लेकर अब तक जरूरी सभी डॉक्यूमेंट्स हैं। इसमें उनके पिता के स्कूल सर्टिफिकेट तक शामिल है। अली की मानें तो सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उन्हें इंसाफ चाहिए। कामरूप के डिप्टी कमिश्नर कमल कुमार बैश्य ने बताया कि उन्हें इस नोटिस के बारे में अभी पता लगा है और वह इस मामले को देखेंगे। अली को डी-वोटर नोटिस मिलने के बाद स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन पर उतर आए हैं। स्थानीय नागरिक सरकार से मांग कर रहे हैं कि लोगों का शोषण बंद होना चाहिए।
मई में सेना के जवान को मिला नोटिस
एक प्रदर्शनकारी ने कहा, 'यह बहुत ही दुर्भाग्यशाली है कि सीआईएसएफ और सेना के जवानों को सरकार की तरफ से विदेशी घोषित किया जा रहा है। हमें इंसाफ चाहिए और सरकार को इस बारे में जवाब देना होगा कि वह इस बारे में क्या कर रही है।' मई माह में कारगिल वॉर में हिस्सा ले चुके और असम बॉर्डर पुलिस में सब इंस्पेक्टर मोहम्मद सनउल्लाह को विदेशी घोषित किया गया था। इसके साथ ही उन्हें गोलापारा जिले में स्थित डिटेंशन कैंप में भेज दिया गया था। जून में मोहम्मद सनाउल्ला रिहा हुए और फिर गुवाहाटी हाई कोर्ट की ओर से उन्हें जमानत दी गई। इसी तरह के एक केस में 59 वर्षीय मधुबाला मंडल को तीन साल पहले गिरफ्तार कर लिया गया था। जून में उन्हें भी कोकराझार जिले में स्थित डिटेंशन कैंप से रिहा किया गया। इस मामले में असम पुलिस ने कोर्ट को बताया कि यह एक 'मिस्टेकेन आईडेंटिटी' का केस था। असम में 100 फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स हैं और इन ट्रिब्यूनल्स की तरफ से ही नागरिकता से जुड़े मामलों पर फैसला लिया जा रहा है। विदेशी घोषित होने के बाद लोगों को राज्य में स्थित छह डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाता है।