केदारनाथ में तबाही मचाने वाली झील फिर पानी से भरी, घाटी पर मंडराया नया खतरा
केदारनाथ धाम के पास फिर दिखा वही प्रलय मचाने वाला गांधी सरोवर, जांच में जुटे वैज्ञानिक
नई दिल्ली। केदारनाथ धाम में 6 साल पहले आई तबाही के निशान आज भी मौजूद हैं। 16 जून 2013 को चोराबरी झील, जिसे गांधी सरोवर भी कहा जाता है, ने केदार घाटी में भयंकर तबाही मचाई थी। चोराबरी झील के टूटने से आई उस जल प्रलय का वेग इतना प्रचंड और भयानक था कि केदार घाटी और इसके आस-पास मौजूद कई मंजिला होटल और गेस्ट हाउस ताश के पत्तों की तरह बिखरकर पानी में बह गए। केदार घाटी में विनाश मचाने के बाद यह झील लगभग विलुप्त हो गई थी और इसका इलाका एक समतल भूमि के रूप में दिखाई देने लगा था। विनाश की इस झील को लेकर अब एक बड़ी खबर सामने आई है।
डॉक्टरों ने किया झील दिखने का दावा
दरअसल, केदारनाथ घाटी में स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले डॉक्टरों ने दावा किया है कि चोराबरी झील फिर से पानी से भर गई है। इन डॉक्टरों ने जिला प्रशासन को झील के बारे में सूचना दे दी है। साथ ही इन्होंने देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी को भी सतर्क कर दिया है। सिक्स सिग्मा स्टार हेल्थकेयर के सीईओ और मेडिकल डायरेक्टर डॉ. प्रदीप भारद्वाज ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने एसडीआरएफ की एक टीम, पुलिस और जिला प्रशासन के लोगों के साथ 16 जून के आसपास हाल ही में चोराबरी झील का दौरा किया था। डॉ. प्रदीप भारद्वाज ने बताया कि यह झील एक बार फिर से पानी से भर गई है।
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2013 में इसी झील ने मचाई थी तबाही
आपको बता दें कि साल 2013 में आई आपदा के बाद चोराबरी झील का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा था कि यह झील बाढ़ में पूरी तरह से मिट चुकी है और अब कभी पुनर्जीवित नहीं होगी। वहीं, भूगर्भीय वैज्ञानिकों का मानना है कि यह चोराबरी झील ना होकर, कोई अन्य ग्लेशियर झील हो सकती है। इनका कहना है कि इस मामले में वो उस जगह का दौरा करने के बाद ही कुछ कह पाएंगे। गौरतलब है कि जून 2013 की आपदा में केदारनाथ में बड़े पैमाने पर हुए विनाश का मुख्य कारण चोराबरी झील का फटना ही माना गया था। चोराबरी झील करीब 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी है।
तबाही में हो गया था सबकुछ तहस-नहस
आपको बता दें कि 6 साल पहले केदारनाथ में जब कुदरत का कहर बरसा तो सब तहस-नहस हो गया था। जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा मौत का मंजर अपने साथ बहा कर ले जा रही थी। न जाने कितनी लाशें अलग-अलग शहरों में गंगा से निकाली गईं। उत्तराखंड के हालात इतने बद्तर हो गए थे कि सेना और वायुसेना को राहत कार्य के लिए आना पड़ा था। कई दिनों तक सेना, वायुसेना, जलसेना, आईटीबीपी, बीएसएफ और एनडीआरएफ की टीमें बचाव कार्य में लगी रहीं। केदारनाथ त्रासदी सुनामी के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा थी।
हर तरफ थी केवल और केवल चीख-पुकार
भगवान शिव के 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम में तबाही का वो खौफनाक मंजर जिन आंखों ने देखा होगा, उन आंखों से तबाही के 6 साल बाद भी शायद वो खौफ ना हटा हो। केदार घाटी में तबाही का आलम ऐसा था कि हर तरफ केवल और केवल चीख-पुकार थी। लोग अपनों को अपनी आंखों के सामने मौत के मुंह में समाते हुए देख रहे थे। कुछ समय पहले तक श्रद्धालुओं से गुलजार रहे होटल और गेस्ट हाउस देखते ही देखते प्रलय के महासागर में समा गए। हालांकि तबाही के उस जलजले में भगवान शिव के धाम केदारनाथ मंदिर का बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था। प्रलय के उस भयावह वेग में सबकुछ तहस-नहस हो रहा था, लेकिन लाखों लागों की आस्था का केंद्र केदारनाथ मंदिर अपनी जगह से नहीं हिला। इसकी वजह थी वो शिला, जो प्रलय के साथ बहकर आई और आकर मंदिर के रक्षक के रूप में खड़ी हो गई।
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