विश्व पर्यावरण दिवस पर चाईनीज़ थिंक-टैंक ने भारत को दिये सुझाव
बेंगलुरु। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अंतर्गत इस वर्ष का थीम 'एयर पॉल्यूशन' यानी वायु प्रदूषण रखा गया है। क्योंकि दुनिया के लगभग सभी देश वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। खास कर सबसे अधिक जनसंख्या वाले दो देश- चीन और भारत। वैसे देखा जाये तो दोनों देश एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। शायद इसीलिये चीन की इंवॉयरनमेंटल थिंक टैंक ने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर भारत को कुछ सुझाव दिये हैं। असल में यह सुझाव चीन के उस कार्यक्रम के अनुभव के आधार पर हैं, जिसमें उसने बेहतरीन सफलता प्राप्त की है।
चीन की इंवॉयरनमेंटल थिंक टैंक ब्लूटेक क्लीन एयर अलायंस ने एक रिपोर्ट जारी की है। "गेनिंग ए रैपिड विन अगेंस्ट एयर पॉल्यूशन: हाउ इंडिया कैन मेक यूज़ ऑफ चाइनाज़ एक्पीरियंस" नाम की रिपोर्ट में चीन ने अपने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के अनुभवों को शामिल किया है, जो 2013 में लॉन्च किया गया था। चीन ने पांच साल में एयर पॉल्यूशन इंडेक्स में पॉल्यूटेंट्स की प्रतिशतता में 22 प्रतिशत की कमी लाने में सफलता हासिल की। इतनी कमी लाने में यूरोप और अमेरिका को दस साल लगे। और खास बात यह है कि भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम लॉन्च किया था, जो अब क्रियान्वयन के स्तर पर आ गया है। जाहिर है, चीन के सुझाव भारत के लिये कारगर साबित हो सकते हैं।
क्या है भारत का प्लान?
भारत के नेशनल क्लीन एयर प्लान के अंतर्गत अगले पांच वर्षों में देश के 103 शहरों में हवा में मौजूद विषैले कणों की प्रतिशतता में 20 से 30 प्रतिशत तक की कमी लाने का लक्ष्य है। ताकि भारत के लोग स्वच्छ हवा में सांस ले सकें। आपको बता दें कि दिल्ली, गुरुग्राम और रायपुर समेत कई शहर हैं, जहां पर प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है।
चीन के अनुभव जो भारत के काम आ सकते हैं
- इस कार्यक्रम को सही से लागू करने के लिये मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की सबसे अधिक जरूरत है।
- डेटा मॉनिटरिंग और एयर क्वालिटी मॉडलिंग पर वैज्ञानिकों के सुझावों के आधार पर कार्य प्रणाली तय करना।
- जिन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बहुत अकिधक है, वहां के लिये अलग से टार्गेट सेट करके योजना बनायी जा सकती है।
- जहां-जहां प्रदूषण के स्रोत समान हैं, वहां के लिये एक अलग योजना बनायी जा सकती है, ताकि समयबद्ध तरीके से कार्य पूरा हो सके।
- एयर क्वालिटी नेटवर्क स्थापित करने के बाद उसकी देखरेख सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि उसी की रिपोर्ट के आधार पर आगे की नीतियां बनायी जायेंगी।
- भारत में हवा को शुद्ध बनाने वाली तकनीकियों को बढ़ावा देना चाहिये। चीन ने क्लीन एयर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में 1.8 ट्रिलियन आरएमबी यानी करीब 18 ट्रिलियन रुपए का निवेश किया, जिसके चलते चीन की जीडीपी में 2 ट्रिलियन आरएमबी की वृद्धि दर्ज हुई।
- चीन ने कोयले पर आधारित पावर प्लांट के प्रयोग को पिछले पांच वर्षों से निरंतर कम किया है। चीन ने वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों पर फोकस किया, जिससे जीएचजी एमीशन 2013 से लेकर 2017 तक खासा नियंत्रित रहा।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
रिपोर्ट को जारी करते वक्त टोनी ज़ी ने मीडिया से कहा कि चीन को यह सफलता इसलिये हासिल हुई, क्योंकि चीन के प्रीमियर ने इस प्रोग्राम को वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग का नाम दिया था। उन्होंने भारत को भी एनएसीपी प्रोग्राम में सफलता की कामना की।
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एसएएफएआर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटीरियोलॉजी के प्राजेक्ट डायरेक्टर डा. गुफरान बेग ने कहा कि भारत का एनसीएपी प्रोग्राम जरूर कारगर साबित होगा। लेकिन सबसे पहले इसके प्रति लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। क्योंकि एयर पॉल्यूशन की कोई सीमा नहीं होती। हवा की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिये नियमों को प्रभावी ढंग से लागू करना होगा।
एनसीएपी की स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी के अनुसार भारत में एनसीएपी को लागू करने के लिये देश के 12 आईआईटी, राष्ट्रीय लैबोरेटरीज़ और विश्वविद्यालय राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों के साथ काम कर रहे हैं। सबसे सकारात्मक बात यह है कि भारत का एनसीएपी आने वाले पांच वर्षों में अपने लक्ष्य को हासिल करने में जरूर सफलता पायेगा।
पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला का कहना है कि भारत और चीन दोनों पूरी तरह अलग हैं। दोनों का राजनीतिक तंत्र अलग-अलग तरीके से कार्य करता है। लेकिन फिर भी प्रदूषित हवा दोनों के लिये समान समस्या है। लेकिन अगर चीन पांच साल में अपने लक्ष्य को पूरा कर सकता है, तो भारत भी जरूर कर सकता है, लेकिन इसके लिये केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और नगर निकायों के बीच सशक्त समन्वय की जरूरत है।