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सेना के मूवमेंट का अब चीन को नहीं चल पाएगा पता, आसानी से पहुंचेगी रसद

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नई दिल्ली- बीते कुछ वर्षो में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन ने देश के सीमावर्ती इलाकों में सामरिक महत्त्व की सड़कों का कायाकल्प कर दिया है और देश सेवा के लिए उसका काम लगातार जारी है। इसी कड़ी में लद्दाख में एक ऐसी सड़क बनकर लगभग तैयार हो चुकी है, जिसपर जवानों के मूवमेंट का ना तो दुश्मनों को पता चल पाए और ऊपर से लगभग पूरे साल जवानों की आवाजाही और रसद की आपूर्ति आसानी से मुमकिन हो सकेगी। बता दें कि अभी ठंड के मौसम में लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में सड़क मार्ग से आवाजाही लगभग ठप सी हो जाती है। लेकिन, ऐसे समय में जब पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेना अभी महीनों तक एक-दूसरे के आमने-सामने डटी रहने वाली हैं, बीआरओ ने दुश्मनों की नजरों से छिपा हुआ मार्ग बनाकर बहुत बड़ा काम कर दिया है।

दुश्मनों की नजरों से दूर रहेगी नई सड़क

दुश्मनों की नजरों से दूर रहेगी नई सड़क

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव के बीच सीमा सड़क संगठन ने कमाल कर दिखाया है। बीआरओ ने सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इलाके की तीसरी सड़क को भी लगभग तैयार कर दिया है, जिसे निम्मू-पद्म-दारचा रोड के नाम से जानते हैं। रणनीतिक संपर्क के लिए बेहद अहम मानी जानी वाली इस सड़क की विशेषता ये है कि यह देश के पड़ोसी मुल्कों की नजरों से ओझल रहेगी। जबकि, बाकी दोनों सड़कों श्रीनगर-कारगिल-लेह और मनाली-लेह रोड अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब होने के चलते दुश्मनों की नजर में रहती है और वो उनपर निगरानी रख सकते हैं। नई सड़क एक और वजह से भी महत्वपूर्ण है। इससे समय की भी बहुत बचत होने वाली है। मसलन, अभी लेह से मनाली की दूरी करीब 12 से 14 घंटों में पूरी होती है। लेकिन, नई सड़क के तैयार होने पर इसे आसानी से 6 से 7 घंटों में ही पूरा किया जा सकता है।

लगभग पूरे साल आवाजाही होगी मुमकिन

लगभग पूरे साल आवाजाही होगी मुमकिन

निम्मू-पद्म-दारचा रोड एक और बड़ी विशेषता है। यह रोड इसीलिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाली है, क्योंकि यह लगभग पूरे साल खुला रहेगा, जबकि, बाकी दोनों सड़कें साल में 6-7 महीने ही खुली होती हैं और नवंबर से बाकी 6 महीने बंद होती हैं। बीआरओ के इंजीनियरों का कहना है कि यह रोड अब चालू है और भारी वाहनों के भी इस्तेमाल के लिए तैयार है। कमांडर 16 बीआरटीएफ के सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर एमके जैन ने कहा है, 'सिर्फ 30 किलोमीटर के हिस्से को छोड़कर रोड तैयार है। अब आर्मी इस सड़क का उपयोग कर सकती है। इस रोड की अहमियत ये है कि मनाली से लेह तक जाने में सेना करीब 5 से 6 घंटे बचा सकती है और इसलिए भी कि दूसरे देश इसका पता नहीं लगा सकते हैं, साथ ही बिना किसी खास सुरक्षा खतरे के भी आर्मी की मूवमेंट हो सकती है। यह सड़क किसी सीमा के भी नजदीक नहीं है।'

सिर्फ 30 किलोमीटर हिस्से में काम बाकी

सिर्फ 30 किलोमीटर हिस्से में काम बाकी

कमांडर 16 बीआरटीएफ के सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर का कहना है कि 'सबसे बड़ी बात ये है कि यह सड़क कम ऊंचाई पर है, जिसे कि लगभग 10-11 महीनों तक वाहनों की आवाजाही के लिए खोला जा सकता है। यह सड़क 258 किलोमीटर लंबी है। हमने इसे अलग-अलग करके और जोड़कर कनेक्टिविटी दी है, जिसमें कि 30 किलोमीटर का हिस्सा अभी पूरा होना बाकी है।' यह मार्ग मुख्यतौर पर जोजिला के रास्ते द्रास-कारगिल से लेह तक रसद और जवानों को लाने-ले जाने का लिए इस्तेमाल होता है। यह वही मार्ग है जिसे 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने बहुत ज्यादा निशाना बनाया था। तब पाकिस्तानियों ने मार्ग के किनारे ऊंची पहाड़ियों पर मौजूदगी का फायदा उठाते हुए खूब बम बरसाए थे। (तस्वीरें-सांकेतिक)

इसे भी पढ़ें- इस बार लद्दाख में चीन की दुखती रग पर भारत ने कैसे रख दिया है हाथ, जानिए

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English summary
China will not be able to know about Indian army movement now, logistics will reach easily
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