लद्दाख में सोने और परमाणु हथियार बनाने वाले यूरेनियम का खजाना, इसलिए कब्जा करने की फिराक में चीन
नई दिल्ली। चीन और भारत के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल (एलएसी) के पश्चिमी सेक्टर पर स्थित लद्दाख में टकराव अभी खत्म नहीं हुआ है। 14 जुलाई को दोनों देशों के बीच एक और राउंड कोर कमांडर वार्ता हुई और छह जून से लेकर अब तक चार दौर की बातचीत हो चुकी है। चीन के मामलों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों की मानें तो इस बार चीन के तेवर लद्दाख में काफी आक्रामक हैं। आखिर ऐसा क्या है जो चीन 50 के दशक से भारत के इस हिस्से पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है। अक्साई चिन को हासिल करने के बाद अब लद्दाख के दूसरे हिस्सों पर उसकी कब्जे की सोच जगजाहिर है।
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चीन को है यूरेनियम का लालच
पिछले 15 वर्षों के दौरान भारत में अलग-अलग स्तर पर लद्दाख की भौगोलिक स्थितियों पर कई अध्ययन किए गए हैं। इन अध्ययनों में यही बात निकल कर आई है कि सर्दियों में जिस जगह का तापमान -50 डिग्री तक पहुंच जाता है, उस लद्दाख की बर्फीली चोटियों में यूरेनियम का भंडार है। जी हां, वहीं यूरेनियम जिससे परमाणु ऊर्जा तैयार की जाती है। इसके अलावा लद्दाख में सोने का भी भारी भंडार है। सोने और यूरेनियम का यही लालच चीन को लद्दाख से दूर नहीं होने देता है। साल 2007 में वैज्ञानिकों को पहली बार लद्दाख में यूरेनियम के विशाल भंडार का पता चला था। यूरेनियम वह पदार्थ है जिसकी अहमियत रणनीतिक तौर पर किसी भी देश के लिए काफी ज्यादा होती है। जर्मनी की एक लैबोरेट्री ने इस बात का पता लगाया था कि लद्दाख में यूरेनियम की मात्रा देश के दूसरे हिस्सों की तुलना में 5.6 प्रतिशत तक ज्यादा है।
कई कीमती खनिज भी लद्दाख में
भारत को यूरेनियम की जरूरत अपनी परमाणु ऊर्जा को पूरा करने के लिए है। लद्दाख में जब यूरेनियम का पता लगा था तो उस समय कई लोगों ने राहत की सांस ली थी। हालांकि तब यह भी कहा गया था कि यहां पर माइनिंग में कई वर्षों का समय लग सकता है। लद्दाख की श्योक और सिंधु नदी में कई और प्रकार के कीमती खनिज हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक लद्दाख में यूरेनियम की चट्टानें देश के दूसरे हिस्सों जैसे आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान की तुलना में काफी समृद्धशाली हैं। जियोलॉजिकल साइंटिस्ट्स का मानना है कि लद्दाख में यूरेनियम का ये भंडार देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले काफी नया है। ये करीब 25 से लेकर 100 अरब साल पुराना होगा। देश के दूसरे राज्यों में मिले यूरेनियम भंडार कई हजार अरब साल पुराने माने जाते हैं।
गोगरा पोस्ट के करीब है सोने का पहाड़!
पैंगोंग त्सो और गलवान घाटी, ये लद्दाख घाटी की ऐसी जगहें हैं जहां पर कई दशकों से तनाव जारी है। जब सन् 1962 में चीन के साथ पहली जंग हुई थी तो उस समय भी पीएलए ने गलवान घाटी को पहला निशाना बनाया था। इस बार जब मई में चीन के साथ टकराव हुआ तो चीन ने गलवान घाटी को अपना हिस्सा करार दे डाला है। गलवान घाटी क्षेत्र के आसपास जो पहाड़ियां हैं उनमें बेशकीमती धातु छिपी हुई हैं। पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 17 पर चीन की सेनाएं डटी रहीं और यहां पर निर्माण कार्य कर डाला। पीपी 17 यानी गोगरा पोस्ट और इस पोस्ट के करीब है गोल्डन माउंटेन यानी वह जगह जहां पर सोने की भरपूर मात्रा है। वैज्ञानिकों की मानें तो यहां पर इतना सोना है कि इसे हथिया कर चीन की कई पीढ़ी अमीर हो सकती हैं। यही वजह है कि चीनी सैनिक लगातार आक्रामक होते रहते हैं।
चीन की वजह से नहीं हो पाता सर्वे
चीन की सक्रियता इतनी अधिक है कि भारत सरकार यहां पर सोने की खदानों पर खास सर्वे नहीं कर सकी है। साल 2007 में जम्मू कश्मीर सरकार ने तय किया था कि लद्दाख में सिंधु नदी के किनारे पर स्थित ठंडे रेगिस्तान में सोने की संभावना को तलाशने के लिए खुदाई की जाएगी। राज्य के जियोलॉजी और माइनिंग विभाग की तरफ से कहा गया था कि वह लद्दाख में भूगर्भ वैज्ञानिकों की एक टीम को भेजकर सोने की खदानों का पता लगाएगा।
अरुणाचल में चीन को मिला सोना
उस समय विभाग के डायरेक्टर परवेज अहमद मलिक ने कहा था कि सिंधु नदी की तलहटी में सोने की खुदाई का इतिहास रहा है। लद्दाख से पहले चीन, अरुणाचल प्रदेश में ऊपरी सुबनसिरी जिले से सिर्फ 15 किलोमीटर की दूरी पर खुदाई कर चुका है। इस दौरान उसे काफी सारा सोना और चांदी मिला, जिसकी लागत लगभग 60 खरब डॉलर बताई जा रही है। और खुदाई के लिए चीन के काफी सारी तैयारियां कीं। पूरे इलाके में सड़कों और हवाई अड्डों का एक नेटवर्क भी बनाया गया, जहां हजारों की संख्या चीन के मजदूर, इंजीनियर और भूगर्भ वैज्ञानिक काम में लगे हुए हैं।