चीन अमरीका तनाव : दक्षिणी चीन सागर में क्या होगी भारत की भूमिका?
हाल के दिनों में भारत-चीन विवाद के बाद ये चर्चा होने लगी है कि क्या दक्षिणी चीन सागर के विवाद में भारत की भूमिका बढ़ेगी?
अमरीका-चीन के बढ़ते तनाव के बीच अमरीका ने दक्षिणी चीन सागर में अपनी गतिविधियां तेज़ कर दी हैं.
अमरीका के दो नौसेना विमान वाहक पोतों ने दक्षिणी चीन सागर में सोमवार को युद्ध अभ्यास किया.
यूएसएस निमित्स के कमांडर रियर एडमिरल जेम्स कर्क ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को फ़ोन पर बताया, ”हमने उन्हें देखा और उन्होंने हमें.”
चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा कि अमरीका ने जानबूझकर दक्षिणी चीन सागर में अपने जहाज़ भेजे हैं ताकि वह अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकें और अमरीका पर इलाके के देशों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाया.
ये पहली बार नहीं है कि अमरीका और चीन ने इस इलाके में अपनी ताक़त दिखाने की कोशिश की है, लेकिन इस बार हालात थोड़े अलग हैं, कोरोना महामारी के कारण अमरीका और चीन के बीच तनातनी बढ़ी है और अमरीका लगातार चीन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है.
सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस एंड स्ट्रैटेजी के अध्यक्ष जयदेव रानाडे के मुताबिक,“ चीन यह कह रहा था कि कोरोना महामारी के कारण अमरीका की नौसेना कमज़ोर हो गई है, अमरीका ने ये क़दम चीन को संकेत देने के लिए उठाया कि उसकी ताक़त कम नहीं हुई है और इस इलाके में उसके युद्धपोत मौजूद हैं,“
रानाडे आगे बताते हैं, “इसके साथ ही अमरीका ये भी जताना चाहता है कि दक्षिण चीन सागर एक न्यूट्रल इलाका है और वह वहाँ आ जा सकते हैं”
रानाडे के मुताबिक अभी इलाके में टेंशन बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ी है. उनके मुताबिक, “टेंशन तब बढ़ेगी जब किसी चीनी जहाज़ को रोका जाए या वहाँ चीन जो द्वीपों पर डिफ़ेस सिस्टम लगा रहा है, उन्हें रोकने की कोशिश हो, अभी देखना होगा कि आगे क्या होता है,”
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हालाँकि जानकारों का मानना है कि मामले के बढ़ने की उम्मीद आने वाले समय में कम ही है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार जेएनयू विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह बताते हैं, “फ्रीडम ऑफ नेविगेशन के नाम पर अमरीका ऐसा पहले भी करता रहा है. ये दिखावा ज़्यादा है, वह भिड़ंत नहीं करते हैं. इसके अलावा अमरीका कोविड-19 के दौरान की अपनी नाकामियों को छिपाने की कोशिश में भी ऐसा कर रहा है, इस साल चुनाव भी हैं और ट्रंप ये दिखाना चाहते हैं कि चीन के सामने खड़े होने वाले वह इकलौते नेता हैं.”
दक्षिण चीन सागर का विवाद
इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला समंदर का ये हिस्सा, क़रीब 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताईवान और ब्रुनेई अपना दावा करते रहे हैं. क़ुदरती ख़ज़ाने से लबरेज़ इस समुद्री इलाक़े में जीवों की सैकड़ों प्रजातियां पाई जाती हैं.
एक दशक पहल तक इस इलाक़े को लेकर इतनी तनातनी नहीं थी. लेकिन फिर चीन समंदर में खुदाई करने वाले जहाज़, बड़ी तादाद में ईंट, रेत और बजरी लेकर दक्षिणी चीन सागर पहुंचा. उन्होंने एक छोटी समुद्री पट्टी के इर्द-गिर्द, रेत, बजरी, ईंटों और कंक्रीट की मदद से बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया.
पहले एक बंदरगाह बनाया गया. फिर हवाई जहाज़ों के उतरने के लिए हवाई पट्टी. देखते ही देखते, चीन ने दक्षिणी चीन सागर में एक आर्टिफ़िशियल द्वीप तैयार कर के उस पर सैनिक अड्डा बना लिया.
चीन ने इस छोटे से सागर पर मालिकाना हक़ के एक अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फ़ैसले को मानने से इनकार कर दिया.
अमरीका की भारत से उम्मीद
हाल के दिनों में भारत-चीन विवाद के बाद ये चर्चा होने लगी है कि क्या दक्षिणी चीन सागर के विवाद में भारत की भूमिका बढ़ेगी?
भारत दक्षिणी चीन सागर को एक न्यूट्रल जगह मानता रहता है. भारत मानता है कि ये न्यूट्रैलिटी कायम रहनी चाहिए और ये किसी भी देश का समुद्र नहीं है.
जानकार मानते हैं कि पिछले कुछ समय में चीन से बिगड़ते रिश्तों के कारण भारत अमरीका के क़रीब आया है लेकिन ये समझना कि दक्षिणी चीन सागर में भारत कोई बहुत बड़ी भूमिका अदा करेगा, ये सही नहीं है
जयदेव रानाडे के मुताबिक, “अमरीका भारत को एक ताक़त की तरह देखता है, उसे भारत से उम्मीद रहेगी की अपने स्टैंड पर कायम रहे, ये भी एक तरह का सपोर्ट है, क्योंकि चीन ऐसा नहीं चाहता.”
स्वर्ण सिंह बताते हैं, “कोई भी देश उस इलाके में पेट्रोलिंग में अमरीका का साथ नहीं देता, एक बार ब्रिटेन ने दिया था, लेकिन बाकी सारे देश बस अमरीका को सैद्धांतिक सहमति ही देते हैं. साल 2015 में जब ओबामा भारत आए थे तब एक साझा बयान में भारत ने कहा था कि वो दक्षिणी चीन सागर में स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है,”
चीन के इस बयान के बाद आक्रोश दिखाया था. उसके बाद भारत ने कभी सीधे तौर पर चीन का नाम लेकर इस मुद्दे का जिक्र नहीं किया. कई बार भारत ने बिना नाम लिए चीन के विस्तारवाद की बात की है और दक्षिण चीन सागर की तरफ़ इशारा किया है.
भारत अभी इसी स्थिति पर कायम रह सकता है. जानकार मानते हैं कि अगर विवाद ज़्यादा बढ़ता है तो फ़िर 'क्वॉड’ की भूमिका अहम हो सकती है.
क्या है क्वॉड?
दि क्वाड्रिलैटरल सिक्युरिटी डायलॉग (क्यूसिड) जिसे क्वॉड (QUAD) के नाम से भी जाना जाता है, ये अमरीका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच अनौपचारिक राजनीतिक वार्ता समूह है.
पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा के मुताबिक, “जब साउथ चाइना समुद्र में चीन ने अपनी प्रभुता दिखानी शुरू की तो सबको चिंता होने लगी कि दुनिया के नियमों को ताक पर रख चीन अपनी मर्ज़ी चलाने लगेगा. भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया का कारोबार इस रास्ते से होता है. क्वॉड कोई आक्रामक रवैया नहीं है, ये कुछ देशों के विचारों का मिलन है कि दुनिया नियमों और क़ानूनों से चलनी चाहिए. क्वॉड की शुरुआत एक सकारात्मक सोच के साथ हुई है."
लेकिन 2007 में शुरू होने के बाद क्वॉड अगले 10 सालों तक निष्क्रिय रहा. साल 2017 में एक बार फ़िर क्वॉड के देश मिले.
2019 में बैठक का स्तर बढ़ा और चारों देशों के विदेश मंत्रियों ने इसमें हिस्सा लिया. हालांकि क्वॉड भी कोई सैन्य गठबंधन नहीं है, इसलिए सीधे तौर पर दक्षिणी चीन सागर में किसी और देश की सेना के दखल की उम्मीद अभी नहीं करनी चाहिए.