इस बार चीन को सता रहा है अक्साई चिन के खोने का डर इसलिए LAC की स्थिति बदलने की कोशिश में लगा
नई दिल्ली। पूरी दुनिया जहां चीन से निकले कोरोना वायरस से जूझ रही, यह देश, दूसरे देशों पर कब्जे की कोशिशों में लगा हुआ है। न्यूज चैनल इंडिया टुडे की तरफ से जो दावा किया गया है उससे तो यही लगता है। चैनल ने अपनी एक रिपोर्ट में पुराने नक्शों का हवाला देते हुए कहा है कि चीन, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) यथा स्थिति को बदलने की कोशिशों में लगा हुआ है। कहा जा रहा है कि चीन, लद्दाख के कई इलाकों पर कब्जे के लिए तैयार हो चुका है। आपको बता दें कि पूर्वी लद्दाख में पिछले 25 दिनों से भारत और चीन के बीच टकराव की स्थिति है।
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हमेशा से भारत का हिस्सा है अक्साई चिन
सन् 1909 के लद्दाख तहसील रेवेन्यू मैप और चीन के सन् 1893 के आधिकारिक नक्शे से यह बात साबित हो जाती है कि अक्साई चिन, लद्दाख का हिस्सा था। एलएसी पर गलवान नदी घाटी जहां पर इस समय चीन के सैनिक मौजूद हैं, वह भी इन नक्शों में लद्दाख का हिस्सा नजर आ रहा है। हैरानी की बात है कि चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स अपने एक आर्टिकल में लिखता है कि गलवान घाटी डोकलाम नहीं है और यह अक्साई चिन का हिस्सा है, जो शिनजियांग प्रांत में आता है। अखबार के मुताबिक चीनी सेना के पास एडवांस इंफ्रास्ट्रक्चर का फायदा है और अगर भारत ने कोई भी गलती की तो उसे बहुत भारी कीमत चुकानी होगी।
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क्या है अक्साई चिन का इतिहास
ग्लोबल टाइम्स भले ही अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बता रहा है, वह भारत का हिस्सा है। लेकिन सन् 1950 में चीन ने इस पर नियंत्रण कर लिया और अब वह एलएसी की स्थिति को बदलने की कोशिशों में लगा हुआ है। इतिहासकारों के मुताबिक सन् 1865 में भारत-चीन सीमा का ब्रिटिश सर्वेयर विलियम जॉन्सन ने सर्वे किया और जॉनसन लाइन के हिसाब से बताया कि अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। इसके बाद 1899 में एक और ब्रिटिश सर्वेयर ने अक्साई चिन को मैकार्ने मैकडोनल्ड लाइन के हिसाब से अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया। फिर इसके 50 साल बाद चीन ने अक्साई चिन पर कब्जे का पहला कदम रखा और यहां सन् 1951 में सड़क बनानी शुरू कर दी।
अक्साई चिन में सड़क बनाकर तिब्बत से जुड़ा चीन
जो सड़क चीन ने तैयार की उसके जरिए चीन का शिनजियांग प्रांत तिब्बत से जुड़ गया। कहते हैं कि जिस समय चीन यह सारी हरकतें कर रहा था, उस समय की भारत सरकार इसे नजरअंदाज करती रही। भारत की नजरअंदाजगी की वजह से सन् 1957 में चीन ने 179 किलो मीटर लंबी सड़क बनाकर अपने इरादे जाहिर कर दिए। इसके बाद सन् 1962 में दोनों देशों के बीच जंग हुई और भारत का अक्साई चिन चीन के पास चला गया। बहुत से राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भारत सुस्त रवैये के कारण चीन इतनी आसानी से अक्साई चिन को निगलने में कामयाब हो गया।
अक्साई चिन रणनीतिक लिहाज से अहम अक्साई चिन
अक्साई चिन रणनीतिक लिहाज से बहुत अहम है। अक्साई चिन मध्य एशिया की सबसे ऊंची जगह है, जिस वजह चीन हमेशा से इस पर नजरें जमाए बैठा था। अक्साई चिन, चीन के दो अहम राज्यों शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ता है। इस पर कब्जा होने से चीन को सदियों से भारत पर एक बड़ा फायदा मिलता है। यह वह जगह है जो ऊंचाई पर है और इस वजह से चीनी सेना को हमेशा भारतीय सेना पर एक बड़ा फायदा मिलता है। सूत्रों के मुताबिक फिलहाल एलएसी पर शांति बनी हुई है, गलवान घाटी में चीनी सैनिक अपने कैंप में ही हैं। सूत्रों की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक चीनी सेना ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) में गलवान नाला इलाके में मई के पहले हफ्ते में अपने जवान भेजने शुरू कर दिए थे।
चीन को जवाब देने की तैयारी पूरी
भारत की तरफ से एलएसी पर चीन को जवाब देने के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है। भारत अब दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी पर बन रही सड़क को चीन की तरफ से होने वाले खतरे को लेकर भी चिंतित है। गलवान नदी पर बना रास्ता भारत ने अपनी तरफ बनाया है। इस 255 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन पिछले वर्ष रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। इसके साथ हा श्योक नदी पर इस रास्ते पर बने 1400 फीट ऊंचे पुल का उद्घाटन भी रक्षा मंत्री ने किया है। बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि सीमा पर हालात स्थिर और नियंत्रण में हैं।