Taiwan को हथियार देने पर चिढ़ा चीन, अमेरिका को जवाबी कार्रवाई की दी धमकी
ताइपे। चीन और अमेरिका के बीच चल रहा तनाव थमने की जगह बढ़ता जा रहा है। चीन पहले ही ताइवान से संबंध बढ़ाने को लेकर अमेरिका पर नाराज था। अब अमेरिका के ताइवान को हथियार बेचने के फैसले ने आग में घी का काम किया है। चीन ने इस सौदे का विरोध करते हुए जवाबी कार्रवाई की धमकी दी है। वहीं ताइवान ने इस हथियार सौदे का स्वागत किया है।
दरअसल ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका ने ताइवान के प्रति अपना समर्थन बढ़ा दिया है। हथियारों की नई खेप उसी का हिस्सा है। इसके पहले अमेरिका के डेलीगेट्स और उपमंत्री स्तर के अधिकारी ताइवान पहुंच चुके हैं जिसे चीन काफी भड़का हुआ है। ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है और वन चाइना पॉलिसी के तहत वहां किसी भी देश के राजनीतिक अधिकारियों का आना-जाना या आधिकारिक संबंध रखने का विरोध करता है। वहीं अमेरिका सीधे हथियार खेप पहुंचा रहा है। यही वजह है कि चीन अब चिढ़ा हुआ है।
पिछले काफी समय से कम्युनिष्ट चीन ताइवान को चीन की संप्रभुता स्वीकार करने के लिए लगातार दबाव बना रहा है। इसी के तहत बीते महीने में चीन के फाइटर जेट्स ताइवान जलडमरू मध्य (Taiwan Strait Mid-line) को पार कर ताइवान की सीमा में घुसे थे। जिन्हें वापस करने के लिए ताइवान को भी अपने जेट भेजना पड़ा था। ताइवान ने हवाई रक्षा प्रणाली सिस्टम की तैनाती भी की थी। माना जा रहा था कि ताइवान को चीन से मुकाबले के लिए और हथियारों की जरूरत होगी।
चीन
ने
कहा
आंतरिक
मामलों
में
हस्तक्षेप
अब
हाल
ही
में
अमेरिका
ने
ताइवान
को
1.8
बिलियल
डॉलर
के
हवाई
सौदे
को
मंजूरी
दी
है।
इस
पर
चीन
के
विदेश
मंत्रालय
ने
विरोध
जताते
हुए
इसे
तुरंत
रोके
जाने
को
कहा
है।
चीन
के
विदेश
मंत्रालय
के
प्रवक्ता
झाओ
लिजियान
ने
कहा
"अमेरिका
का
ये
कदम
चीन
के
आंतरिक
मामलों
में
हस्तक्षेप
के
साथ
ही
चीन
की
संप्रभुता
और
सुरक्षा
हितों
को
नुकसान
पहुंचाता
है।
साथ
ही
ताइवान
की
आजादी
के
लिए
लड़
रही
ताकतों
को
गलत
संदेश
देने
के
साथ
ही
चीन-अमेरिका
संबंधों
के
साथ
ही
ताइवान
जलडमरू
में
शांति
और
स्थिरता
भी
गंभीर
नुकसान
पहुंचा
रहा
है।
झाओ ने कहा कि चीन चुप नहीं रहेगा। आगे कैसी स्थिति होती है इससे देखते हुए चीन इस पर जरूर प्रतिक्रिया देगा।
नए अमेरिकी हथियार पैकेज में सेंसर्स, मिसाइल और आर्टिलरी प्रमुख रूप से हैं। वहीं आगे चलकर जनरल एटॉमिक्स द्वारा बनाए ड्रोन और बोइंग द्वारा बनाई जमीन से मार करने वाली हार्पून एंटी शिप मिसाइल को भी कांग्रेस से मंजूरी मिल सकती है।
चीन
के
साथ
हथियारों
की
रेस
नहीं-
ताइवान
वहीं
राजधानी
ताइपे
में
ताइवान
के
रक्षा
मंत्री
येन
डे-फा
ने
नए
सौदे
की
मंजूरी
के
लिए
अमेरिका
को
धन्यवाद
दिया
और
कहा
कि
"ये
हथियार
ताइवान
की
रक्षात्मक
क्षमताओं
को
बढ़ाएंगे
जिससे
दुश्मन
के
खतरे
के
साथ
नई
स्थिति
से
निपटने
में
मदद
मिलेगी।"
उन्होंने आगे कहा कि ये सौदा अमेरिका के ताइवान जलडमरू और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा महत्व को भी दर्शाता है। हालांकि येन ने किसी भी तरह के टकराव से इनकार किया। येन ने कहा कि "हम कम्युनिष्ट चीन के साथ किसी भी तरह के हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं हैं। हम अपनी रक्षा क्षेत्र की रणनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उन्हें पूरा करेंगे। अपनी स्थितियों और हितों के रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएंगे।"
ताइवान
बढ़ा
रहा
सैन्य
ताकत
ताइवान
की
सैन्य
ताकत
चीन
के
सामने
काफी
कम
है।
यही
वजह
है
कि
ताइवान
नए
हथियारों
को
शामिल
कर
अपने
को
मजबूत
कर
रहा
है।
वहीं
ताइवान
की
राष्ट्रपति
साई
इंग-वेन
ने
सत्ता
में
आने
के
बाद
से
ही
चीनी
खतरे
के
खिलाफ
निपटने
के
लिए
सैन्य
आधुनिकीकरण
को
प्रमुखता
दी
हैं।
ताइवान
की
आजादी
और
लोकतंत्र
की
समर्थन
वेन
दोबारा
ताइवान
की
राष्ट्रपति
बनी
हैं।
उनके
आने
के
बाद
से
ताइवान
ने
दूसरे
देशों
से
रिश्ते
बढ़ाने
शुरू
किए
हैं।
चीन
की
कम्युनिष्ट
सरकार
वेन
को
खतरा
मानती
है।
ताइवान
में
है
चीन
विरोधी
लहर
चीन
का
कहना
है
कि
ताइवान
उसका
हिस्सा
है
और
एक
दिन
वन
चाइना
पॉलिसी
के
तहत
उसे
मेन
चाइना
में
मिला
लिया
जाएगा।
दूसरे
देशों
की
तरह
अमेरिका
के
भी
ताइवान
से
सीधे
रिश्ते
नहीं
हैं
लेकिन
अमेरिका
ताइवान
को
सपोर्ट
करता
है।
पिछले
महीने
ही
अमेरिका
के
मंत्री
कीथ
क्रैच
ताइवान
पहुंचे
थे
जिससे
चीन
तिलमिलाया
हुआ
था।
चीन
ये
भी
कहता
रहा
है
कि
जरूरत
पड़ने
पर
ताइवान
पर
ताकत
के
बल
पर
कब्जा
किया
जा
सकता
है।
वहीं
ताइवान
के
लोग
खुद
को
एक
अलग
देश
के
रूप
में
देखना
चाहते
हैं।
चीन
में
हांग
कांग
की
तरह
ही
ताइवान
को
लेकर
भी
एक
देश
दो
व्यवस्था
वाले
मॉडल
को
लागू
किए
जाने
की
बात
की
जाती
है
लेकिन
वर्तमान
में
ताइवान
की
राष्ट्रपति
साई
इंग-वेन
ने
इस
मॉडल
को
नकार
दिया
है।
सांई
इंग-वेन
ताइवान
को
एक
संप्रभु
देश
के
तौर
पर
देखती
हैं
और
वन
चाइना
पॉलिसी
का
विरोध
करती
हैं।
2016
में
वेन
के
सत्ता
में
आने
के
बाद
चीन
और
ताइवान
के
रिश्तों
में
दूरी
बढ़
गई
है।
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