LAC पर भारत को उलझाकर चीन ने नेपाल में शुरू किया बहुत बड़े प्रोजेक्ट पर काम
नई दिल्ली- चीन ने नेपाल में 30 करोड़ डॉलर से ज्यादा के रेल प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू कर दिया है। सामरिक महत्त्व की इस रेलवे परियोजना पर 10 साल से काम अटका पड़ा था, लेकिन अब चीन ने इसपर काम तेज कर दिया है। माना जा रहा है कि वह इस रेल प्रोजेक्ट के जरिए बहुत जल्द नेपाल-भारत सीमा तक अपनी पहुंच बढ़ाने की फिराक में है। हालांकि, तिब्बत से चलकर भारतीय सीमा तक बिछने वाली इस रेलवे लाइन का निर्माण तकनीकी रूप से बहुत ही चुनौतीपूर्ण है, लेकिन लगता है चीन ने अब ठान लिया है कि उसे किसी भी सूरत में इस प्रोजेक्ट को 2025 तक पूरा करके ही दम लेना है।
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नेपाल में चीन के बहुत बड़े प्रोजेक्ट पर काम शुरू
चीन ने भारत को लद्दाख में एलएसी पर उलझाकर तिब्बत और नेपाल के बीच प्रस्तावित बहुत बड़े रेलवे प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। सामरिक तौर पर बहुत ही अहम यह रेल प्रोजेक्ट चाइनीज कब्जे वाले तिब्बत की राजधानी ल्हासा से लेकर नेपाल की राजधानी काठमांडू तक प्रस्तावाति है। यही रेलवे लाइन आखिर में आगे भारत-नेपाल सीमा के पास लुंबिनी तक भी आएगी, जो महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली है। गौरतलब है कि चीन ने इस प्रोजेक्ट को तब फिर से जीवित किया है, जब भारत और चीन के बीच तो तनाव का माहौल तो है ही, नेपाल की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की वजह से दोनों देशों के संबंधों में भी कुछ खटास आई गई है। चीन ने इस रेलवे प्रोजेक्ट के सर्वे से जुड़ी तस्वीरें भी जारी की हैं। तस्वीरों से जाहिर होता है कि चाइनीज रेलवे के इंजीनियर इस प्रोजेक्ट पर तेजी से काम शुरू करना चाहते हैं।
लुंबिनी तक रेल लाइन बिछा रहा है चीन
बता दें कि नेपाल-चीन रेलवे प्रोजेक्ट की योजना 2008 में ही पहली बार बनाई गई थी, लेकिन बाद में इसपर ज्यादा काम नहीं हो पाया था। लेकिन, मौजूदा हालातों में इसकी डेडलाइन 2025 तय कर दी गई है, जिससे अंदाजा लगता है कि चीन कितनी तेजी से इसपर अब काम बढ़ाना चाह रहा है। सूत्रों के मुताबिक रेल कॉरिडोर के निर्माण का काम शुरू तो नहीं हो पाया है, लेकिन जितनी तेजी से सर्वे शुरू किया गया है, उसके बाद इसमें वह जल्द से जल्द हाथ लगाने की भी कोशिश करेगा। 2008 में बनी इस रेल कॉरिडोर की योजना के मुताबिक पहले इस तिब्बत के ल्हासा से शिगास्ते को जोड़ना है और फिर नेपाल सीमा के पास केरूंग तक इसका विस्तार किया जाएगा। अंतिम चरण में इसे काठमांडू और भगवान बुध की जन्मस्थली लुंबिनी तक लाया जाना है।
बड़ी लागत के चलते अटका हुआ था प्रोजेक्ट
माना
जा
रहा
है
कि
12
साल
तक
इस
महत्वाकांक्षी
प्रोजेक्ट
के
लटके
रहने
की
वजह
ये
है
कि
इसका
मौजूदा
अनुमानित
लागत
ही
30
करोड़
डॉलर
से
पार
कर
रहा
है।
लेकिन,इसमें
हाथ
लगने
के
बाद
इसमें
और
इजाफे
की
भी
संभावना
है।
वजह
ये
है
कि
यह
प्रोजेक्ट
बहुत
ही
चुनौतीपूर्ण
है,
जिसमें
पहाड़ों
को
काटकर
उसमें
से
कई
सुरंगें
निकाली
जानी
हैं
और
नदियों
और
झीलों
पर
बड़े-बड़े
पुल
बनाए
जाने
हैं।
जानकारी
के
मुताबिक
पहले
चीन
चाहता
था
कि
नेपाल
भी
खर्च
का
आधा
वहन
करे
और
इसीलिए
इसमें
इतनी
देरी
भी
हुई
है।
कुछ
लोगों
का
यह
भी
मानना
है
कि
चीन
रेल
प्रोजेक्ट
से
पहले
नेपाल
में
रोड
प्रोजेक्ट
पर
काम
करना
चाहता
है,
जिसकी
लागत
कम
है।
(ऊपर
की
तस्वीरें
सौजन्य:
@shen_shiwei)
भारत-नेपाल रेलवे प्रोजेक्ट
ऐसा नहीं है कि नेपाल में सिर्फ चीन ही रेल प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। भारत ने भी पड़ोसी देश में ड्रैगन के प्रभाव को सीमित रखने के लिए भारत-नेपाल रेलवे लिंक की योजना तैयार कर रखी है। बता दें कि इस समय भारत और नेपाल के बीच 6 रेलवे परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इसके बारे में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव ने कहा है, 'हमने अपने सभी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को सबसे प्राथमिकता पर रखा है। हालांकि, सबसे नए प्रोजेक्ट की टाइमलाइन और डिटेल बाद में ही दी जाएगी।' हालांकि, चीन के मुकाबले भारत और नेपाल के बीच रेलवे लाइन का निर्माण बहुत ज्यादा आसान है, क्योंकि ये दोनों देशों के बीच तराई और मैदानी इलाकों में बनना है, जो कि काफी कम चुनौतीपूर्ण है।
जयनगर-जनकपुर बड़ी लाइन का काम पूरा
जयनगर-जनकपुर
बड़ी
लाइन
का
काम
पूरा
जानकारी
के
मुताबिक
भारत
और
नेपाल
के
बीच
के
6
रेलवे
प्रोजेक्ट
में
से
2
पर
कुछ
काम
आगे
भी
बढ़ा
है।
इनमें
से
तीन
फेज
वाले
जयनगर-जनकपुर-बार्दीबास
के
बीच
69
किलोमीटर
रेलवे
लाइन
बिछाने
की
लागत
5.5
अरब
रुपये
आने
का
अनुमान
है।
पहले
चरण
में
जयनगर
से
कुर्था
के
बीच
34
किलोमीटर,
दूसरे
चरण
में
कुर्था
से
भानगाह
के
बीच
18
किलोमीटर
और
तीसरे
फेज
में
भानगाह
से
बार्दीबास
के
बीच
की
17
किलोमीटर
की
रेलवे
लाइन
शामिल
है।
इनमें
से
जयनगर-जनकपुर
के
बीच
बड़ी
रेलवे
लाइन
पर
ट्रैक
बिछ
भी
चुकी
है
और
बाकी
इंफ्रास्ट्रक्चर
का
काम
भी
हो
चुका
है,
लेकिन
इसपर
ट्रेनों
का
परिचालन
नहीं
शुरू
हुआ
है।
2021 तक बढ़ाई गई है डेडलाइन
बता दें कि इन रेलवे प्रोजेक्ट को लेकर दोनों देशों के बीच तभी सहमति बनी थी, जब नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली जुलाई, 2018 में भारत दौरे पर आए थे। इसपर अक्टूबर, 2018 में ही परिचालन शुरू होने की सहमति बनी थी, लेकिन जानकारी के मुताबिक ट्रेन चलाने, केटरिंग और रोलिंग स्टोक जैसे कुछ मुद्दों पर गतिरोध है, जिसके चलते जयनगर-जनकपुर बड़ी लाइन पर ट्रेनों का परिचालन अटका पड़ा है। इसके अलावा जनकपुर-कुर्था और जोगबनी-बिराटनगर के बीच अब प्रोजेक्ट पूरी करने की डेडलाइन बढ़ाकर 2021 कर दी गई है।
काठमांडू-रक्सौल रेलवे लाइन
बिहार के रक्सौल से नेपाल की राजधानी काठमांडू के बीच भी 136 किलोमीटर की रेल परियोजना पर काम बाकी है। भारतीय रेलवे की टीम इसकी शुरुआती औपचारिकताएं पूरी भी कर चुकी है। यह पूरी तरह से इल्क्ट्रीफाइड रेल लाइन बननी है। गौरतलब है कि रक्सौल अभी भी नेपाल के लिए माल ढुलाई का सबसे बड़े एंट्री प्वाइंट है, जो दिल्ली और कोलकाता से सीधे रेल लिंक से जुड़ा हुआ है। सड़क परिवहन के लिए भी यह रास्ता दोनों देशों के नागरिकों के लिए हमेशा से लोकप्रिय रहा है।
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