भारत में अवैध यूरेनियम बरामद होने पर अब चीन बोला
मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप यानी NSG की सदस्यता लेने की पुरज़ोर कोशिश की थी लेकिन चीन ने रोक दिया था. ऐसे में अवैध यूरेनियम मिलना भारत की प्रतिष्ठा के लिए और झटका है.
भारत में सात किलो अवैध यूरेनियम बरामद किए जाने का मामला अब तक पाकिस्तान में उठा था लेकिन मंगलवार को पाकिस्तान की सरकारी समाचार एजेंसी असोसिएटेड प्रेस ऑफ पाकिस्तान (एपीपी) ने चीन के विदेश मंत्रालय के सामने भी उठाया.
मंगलवार को चीनी विदेश मंत्रालय की दैनिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में एपीपी ने पूछा कि पिछले हफ़्ते भारतीय सुरक्षाबलों ने महाराष्ट्र के मुंबई से सात किलो रेडियोएक्टिव यूरेनियम बरामद किया था. जिनके पास ये बरामद किया था, उन्हें भारतीय सुरक्षाबलों ने गिरफ़्तार भी किया है. आप इस पर क्या कहना चाहेंगी?
इस सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआं चनयिंग ने कहा, ''परमाणु आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. ये सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि परमाणु सामग्रियों को लेकर जवाबदेही लें और उन्हें सुरक्षित रखें. परमाणु तस्करी को रोक कर ही परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है.''
''हम उन देशों से आग्रह करते हैं कि जो परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी के हिस्सा नहीं हैं, वे इसमें शामिल हो जाएं. परमाणु मटीरियल की सुरक्षा इंटरनेशल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के मानकों के तहत होनी चाहिए. हम परमाणु प्रसार के ख़िलाफ़ हैं क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए ज़रूरी है.''
इससे पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मुंबई में अवैध यूरेनियम बरामद होने पर चिंता जताई थी और भारत सरकार से जांच की मांग की थी. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ज़ाहिद हफ़ीज़ चौधरी ने कहा था कि परमाणु पदार्थों की सुरक्षा सभी देशों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए. इस मामले की गहराई से जाँच की ज़रूरत है."
महाराष्ट्र पुलिस के एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (एटीएस) ने बीते हफ़्ते जिगर जीएस पांड्या और अबू ताहिर अफ़ज़ल चौधरी नाम के दो लोगों को मुंबई के बाहरी इलाक़े से गिरफ़्तार किया था. एटीएस ने उनके क़ब्ज़े से सात किलो 100 ग्राम प्राकृतिक यूरेनियम बरामद किया था, जिसकी क़ीमत बाज़ार में 21 करोड़ रुपए बताई गई है.
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एनआईए ख़ुद करेगी इस मामले की जाँच
समाचार एजेंसी पीटीआई ने ख़बर दी है कि जाँच एजेंसी ने गृह मंत्रालय के आदेश पर रविवार को इस मामले में एफ़आईआर दोबारा दर्ज करके इस केस को पूरी तरह अपने हाथ में ले लिया और जाँच शुरू कर दी.
इससे पहले मुंबई पुलिस ने इस केस की एफ़आईआर एटीएस के काला चौकी पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई थी.
एटीएस की तरफ़ से जारी की गई प्रेस रिलीज़ में बताया गया था कि पुलिस के ख़ुफ़िया विभाग ने सूचना मिलने के बाद 14 फ़रवरी को अभियुक्त जिगर पांड्या को यूरेनियम की कुछ मात्रा के साथ गिरफ़्तार किया था. पांड्या इस यूरेनियम को बेचने के लिए एक ग्राहक की तलाश में था.
https://twitter.com/ForeignOfficePk/status/1390909692273217538
भारत की प्रतिष्ठा के ख़िलाफ़
मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में शामिल होने की भरपूर कोशिश की थी लेकिन चीन ने रोक दिया था. इस ग्रुप में वही शामिल किए जाते हैं जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत के लिए बाक़ी के देश तैयार थे लेकिन चीन ने कहा था कि अगर भारत को शामिल किया जा सकता है तो पाकिस्तान को भी किया जाना चाहिए.
अमरीका ने भारत से वादा किया था कि वो भारत को सभी परमाणु निर्यात व्यवस्था का सदस्य बना देगा, उसमें भारत की मदद करेगा जबकि ये बात पूरी तरह से अमरीका के हाथ में नहीं था.
भारत दरअसल, एनएसजी की सदस्यता सिर्फ़ इसलिए चाहता है ताकि वो अन्य सदस्य देशों के साथ मिलकर परमाणु मसलों पर नियम बना सके. ये एक स्टेटस और प्रतिष्ठा की बात है. हालांकि भारत को साल 2008 में ही परमाणु पदार्थों के आयात के लिए सहूलियत मिली हुई है.
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप वर्ष 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद ही साल 1975 में बना था. यानी जिस क्लब की शुरुआत भारत का विरोध करने के लिए हुई थी, अगर भारत उसका मेंबर बन जाता है तो ये उसके लिए एक बड़ी उपलब्धि होती. इसकी सदस्यता में ये बात भी देखी जाती है कि किसी देश में परमाणु सामग्री की सुरक्षा कितनी अच्छी है.
कई सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है कि मुंबई में अवैध यूरेनियम का मिलना भारत की प्रतिष्ठा के लिए अच्छी बात नहीं है. भारत जिस आधार पर एनएसजी की सदस्यता मांग रहा था, ये उसके भी ख़िलाफ़ है.
चीन ने कहा था कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तख़त नहीं किए हैं. इसलिए उसे एनएसजी की सदस्यता नहीं मिल सकती है, क्योंकि सदस्यता के लिए यह बुनियादी शर्त है. चीन ने कहा था कि अमरीका पूरी दुनिया नहीं है. उसके समर्थन का मतलब यह नहीं है कि भारत ने पूरी दुनिया का समर्थन जीत लिया है. भारत ने इस बुनियादी तथ्य की अनदेखी की.
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