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सिर्फ कंपनियों पर बैन से नहीं बनेगी बात, धूर्त चीन की नकेल यहां भी कसनी पड़ेगी

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नई दिल्ली- हाल के दिन में भारत ने चीन की कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के ताबड़तोड़ फैसले किए हैं। लेकिन, सच्चाई ये है कि शायद हम जहां तक समझ भी नहीं पा रहे हैं, चीन भारत में वहां-वहां से घुसपैठ कर चुका है। क्योंकि, हाल के वर्षों में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा लगातार घटा है। लेकिन, क्या सच्चाई इतनी ही भर है। शायद नहीं, चीन तीसरे देश के कंधे पर बेताल की तरह सवार होकर भी भारत में प्रवेश कर चुका है। अगर चीन को रोकना है तो उसके छिपने के हर ठिकाने पर वार करनी पड़ेगी। वैसे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बुधवार को ही साफ कह चुके हैं कि चीन अगर तीसरे रास्ते से भी घुसने की कोशिश करता है तो उसे इसकी इजाजत अब कतई नहीं मिलेगी।

धूर्त चीन की नकेल यहां भी कसनी पड़ेगी

धूर्त चीन की नकेल यहां भी कसनी पड़ेगी

भारत को संदेह है कि चीन हॉन्ग कॉन्ग और सिंगापुर जैसे थर्ड पार्टी के जरिए भी भारत में निवेश कर रहा है या अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज के जरिए माल की सप्लाई में लिप्त है। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक इस विषय की जानकारी रखने वाले एक शख्स ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि यह न केवल गैर-कानूनी है, बल्कि घरेलू उद्योगों को भी नुकसान पहुंचा रहा है। आंकड़ों से पता चलता है कि जिन देशों के साथ भारत का फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, प्रेफेंसियल ट्रेड एग्रीमेंट या दूसरे वाणिज्यिक समझौते हैं, वहां से चाइनीज सामान और निवेश में अप्रत्यक्ष रूप से काफी इजाफा हुआ है। क्योंकि, आंकड़े तो बताते हैं कि चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी आई है, लेकिन कई भारतीय कंपनियों को चाइनीज इंवेस्टमेंट मिले हैं। इसी तरह चीन से आयात में थोड़ी कमी आई है, लेकिन उसी दौरान हॉन्ग कॉन्ग और सिंगापुर से आयात बढ़ गए हैं। अर्थव्यवस्था से जुड़े मंत्रालय में काम करने वाले शख्स न बताया कि कुछ न कुछ गड़बड़ तो जरूर है, जिसे जांचने की जरूरत है।

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तीसरे देश के जरिए भारत में घुसपैठ कर चुका है चीन

तीसरे देश के जरिए भारत में घुसपैठ कर चुका है चीन

इसी तरह फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेश का कहना है कि 2019 में चीन के साथ व्यापार घाटा कम हुआ है और यह 650 करोड़ डॉलर घटकर 5,125 करोड़ डॉलर रह गया है। लेकिन इसी दौरान हॉन्ग कॉन्ग से व्यापार घाटा 580 करोड़ डॉलर बढ़ गया है। इसी तरह पिछले साल सिंगापुर से व्यापार घाटा 582 करोड़ डॉलर का रहा। एफआईईओ के डायरेक्टर जनरल और सीईओ अजय सहाय के मुताबिक 'हॉन्ग कॉन्ग से मुख्य आयात इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रनिक उत्पादों का हुआ है, जिसमें बहुत ज्यादा इजाफा दर्ज किया गया और यह 2017 और 2019 के बीच 13 करोड़ डॉलर से बढ़कर 86 करोड़ डॉलर का हो गया है।' उन्होंने कहा कि 'अगर ये सामान मेड इन चाइना हैं और हॉन्ग कॉन्ग और सिंगापुर होकर पहुंचते हैं, तो कस्टम आयातकों से सवाल पूछ सकता है कि वो दिखाएं कि यह बने कहां हैं।' उन्होंने भारत सरकार को सिंगापुर के मामले में ज्यादा सावधान रहने को कहा है। क्योंकि, भारत सिंगापुर के बीच कंप्रीहेन्सिव इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एग्रीमेंट के साथ-साथ इंडो- आसियान के तहत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट है, जिसके कारण हो सकता है कि चाइनीज प्रोडक्ट को प्रेफेंशियल टैरिफ का एडवांटेज मिल रहा हो।

संदेहास्पद एफडीआई की जांच की जरूरत

संदेहास्पद एफडीआई की जांच की जरूरत

ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मोहित सिंगला कहते हैं, 'कई बार चीन में बना कोई प्रोडक्ट अगर सिंगापुर, वियतनाम या यहां तक कि हॉन्ग कॉन्ग होकर भी भारत आता है तो हम टैक्स के रूप में मिलने वाले कुछ राजस्व गंवा दे सकते हैं। सामान्य भाषा में समझें तो अगर उपभोक्ता को सस्ते आयात मिलेंगे, तो घरेलू उत्पादकों के मार्कट शेयर और प्रॉफिट मार्जिन को नुकसान होगा।' अर्थव्यवस्था से जुड़े एक और मंत्रालय के दूसरे शख्स ने कहा कि, 'यहां तक कि चाइनीज एफडीआई इनफ्लो भी संदेहास्पद नजर आता है।' आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 2019 अप्रैल से लेकर 2020 मार्च तक चीन से 2378.71 करोड़ डॉलर का एफडीआई पहुंचा, जो कि दो दशकों में देश में आए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 0.51 प्रतिशत है। उस व्यक्ति ने कहा कि ,'एफडीआई के आंकड़े संभवत: भारत में चीन के सही निवेश नहीं दिखाते हैं और हो सकता है कि कुछ निवेश बिना पकड़े किसी तीसरे देश के माध्यम से देश में पहुंचे हों। ऐसे सभी संदेहास्पद निवेशों की अच्छे से जांच की आवश्यकता है। ' एचटी के मुताबिक वित्त और वाणिज्य मंत्रालय ने ई-मेल से भेजे गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया।

भारत ने पहले ही नकेल कसनी शुरू कर दी थी

भारत ने पहले ही नकेल कसनी शुरू कर दी थी

हालांकि, लगता है कि भारत को लद्दाख से पहले ही चीन की हरकतों की भनक लग गई थी। इसलिए उसने अप्रैल महीने में ही चीन के एफडीआई प्रस्तावों को पाकिस्तान जैसे दुश्मन देशों की श्रेणी में रख दिया था। इसके लिए निवेश करने वाले देशों के लिए निवेश से पहले सरकार से पूर्व इजाजत लेना अनिवार्य होता है। भारत ने ये कदम इसलिए उठाया था, ताकि कोरोना वायरस महामारी के दौरान भारतीय कंपनियों का चीन अपने फायदे के लिए इस्तेमाल न कर सके। इस बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी साफ किया है कि हाइवे प्रोजेक्ट या एमएसएमई में अगर चीन ज्वाइंट वेंचर के जरिए भी घुसने की कोशिश करेगा तो उसके लिए अब सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं।

इसे भी पढ़ें- चीन को भारत ने दिया सबसे तगड़ा झटका, हाइवे प्रोजेक्ट में भी चाइनीज कंपनियों पर बैनइसे भी पढ़ें- चीन को भारत ने दिया सबसे तगड़ा झटका, हाइवे प्रोजेक्ट में भी चाइनीज कंपनियों पर बैन

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English summary
China is also investing through third party, India will have to be cautious
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